16 अगस्त 1946 का दिन भारतीय इतिहास के सर्वाधिक रक्तरंजित दिनों में शुमार किया जाता है। ये दिन इतिहास में ‘डाइरेक्ट एक्शन डे’ के रूप में कुख्यात है। इस दिन हुए जनसंहार को ‘ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स’ के नाम से जाना जाता है। डाइरेक्ट एक्शन लेने की घोषणा मुस्लिम लीग द्वारा की गई थी और उसके बाद कलकत्ता की सड़कों पर केवल लाशें नज़र आने लगी थी। तत्कालीन मुस्लिम लीग ऐसा करके ब्रिटिश शासन और कांग्रेस को अपनी शक्ति दिखाना चाहता था। इस एक खून से लथपथ दिन में चार हज़ार लोग मारे गए थे। 64 प्रतिशत हिन्दू और 34 प्रतिशत मुस्लिम बेघर हो चुके थे। लगभग एक लाख हिन्दुओं ने 72 घंटे के भीतर कलकत्ता को हमेशा के लिए विदा कह दिया था।
उस काले दिन पर एक फिल्म बनाई गई है। फिल्म का नाम है ‘1946 कलकत्ता किलिंग्स’। फिल्म न केवल इस दिन की बर्बरता को दिखाती है बल्कि जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी के महान कार्यों का भी उल्लेख किया गया है। गत शुक्रवार को ये फिल्म बंगाल में प्रदर्शित नहीं होने दी गई। फिल्म को बंगाल के 100 सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया जाना था।
रिलीज के समय थिएटर मालिकों को धमकियों भरे फोन कॉल्स आना शुरू हो गए थे। शुक्रवार को ये फिल्म बिहार, झारखंड, अगरतला और असम में भी रिलीज की गई फिर बंगाल में इसे प्रदर्शित क्यों नहीं होने दिया गया। फिल्म निर्देशक मिलन भौमिक के मुताबिक थिएटर मालिकों को स्थानीय नेता धमकियाँ दे रहे हैं। कई शहरों में पुलिस ही थिएटर मालिकों से फिल्म प्रदर्शित न करने के लिए कह रही है।
निर्देशक भौमिक ने कहा, ‘ये फिल्म डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि है। फिल्म में 1946 में कोलकाता में हत्याओं के दौर में मुखर्जी की भूमिका को दिखाया गया है। अगर उन्होंने दखल नहीं दिया होता तो पश्चिम बंगाल भी पाकिस्तान का हिस्सा हो गया होता। फिल्म में असली इतिहास को दिखाया गया है।’ बंगाल में क्या चल रहा है ये मूनलाइट सिनेमा के मालिक के बयान से समझा जा सकता है।
सिनेमा मालिक ने कहा ‘फिल्म को शुक्रवार को रिलीज होना था लेकिन गुरुवार से ही मुझे फोन आने शुरू हो गए कि फिल्म को ना दिखाया जाए। ये हैरानी की बात है कि पद्मावत की रिलीज के दौरान पुलिस ने हमें पहले से ही फोन कर पूछा था कि क्या हमें शो दिखाने के लिए सुरक्षा की जरूरत है।’ यानि पुलिस ‘पद्मावत’ के लिए सुरक्षा दे सकती है लेकिन डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी पर बनी फिल्म को सुरक्षा नहीं दे सकती।
जिस राज्य की मुख्यमंत्री दिल्ली आकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देती है, वह अपने ही राज्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला बड़े सुकून से घोंट रही है। भौमिक के मुताबिक उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिट्ठी भी लिखी। उन्होंने इस चिट्ठी को ममता बनर्जी के आधिकारिक आवास पर पहुंचाना चाहा लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी गई।
पश्चिम बंगाल सरकार जब अपनी तरफ से पहल कर ‘पद्मावत’ की रिलीज के लिए सुरक्षा प्रदान कर सकती है तो वो क्यों बंगाल के सपूत डॉ मुखर्जी पर बनी फिल्म के लिए ऐसा क्यों नहीं करती। जब केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने फिल्म को 4 कट्स के साथ रिलीज की अनुमति दी थी तो बंगाल की सरकार कानूनन उसे किसी भी हाल में नहीं रोक सकती है। जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म को हिन्दी में ‘1946 कलकत्ता किलिंग्स’ नाम दिया तो बांग्ला में उसका नाम ‘दंगा- द रॉयट’ क्यों दिया गया।
बंगाल सरकार तो कला और कलाकारों की हितैषी रही है। फिर फिल्म निर्देशक मिलन भौमिक के साथ ये सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है। बंगाल सरकार क्यों नहीं चाहती कि 1946 का वह काला सच नई पीढ़ी इस फिल्म के माध्यम से जान सके। क्या ममता बनर्जी इस बात से भयभीत है कि ये फिल्म बंगाल के हिन्दुओं के सोये स्वाभिमान को जगा सकती है।
URL: ‘1946 Calcutta Killings’ a film about ‘Direct Action Day’
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