14 अगस्त की रात को ब्रिटेन ने भारत की सत्ता कांग्रेस को हस्तांतरित कर दिया था। विभाजन के कारण देश में गृहयुद्ध की स्थिति थी। नेहरू इस पर नियंत्रण स्थापित करने में असफल साबित हो रहे थे। माउंटबेटन ने लिखा है कि एक दिन नेहरू उनके पास आए और कहा,हम आंदोलन तो चला सकते हैं, लेकिन सत्ता चलाना हमारे वश में नहीं है। आप यह सत्ता फिर से वापस ले लीजिए और ब्रिटिश हुकूमत को कायम रखिए। नेहरू के साथ सरदार पटेल भी थे और पटेल भी नेहरू की बातों से सहमत थे, लेकिन वह थोडे-थोडे क्रोधित भी दिख रहे थे।
माउंटबेटन अभिलेखागार में माउंटबेटन-नेहरू-पटेल के बीच बातचीत का वह दस्तावेज मौजूद है, जिसमें नेहरू ने ब्रिटिश राज से आग्रह किया था कि वह दी गई आजादी वापस ले ले। इतिहासकार हडसन की पुस्तक ‘द ग्रेट डिवाइड’ और डोमिनीक लीपएर व लैरी कॉलिन्स की पुस्तक ‘फ्रिडम एट मिड नाइट’ में भी इसका विस्तार से जिक्र है।
लीपएर व लैरी ने लिखा है कि यदि यह बात भारत व दुनिया के लोगों को पता चल जाता तो नेहरू की पूरी अंतरराष्ट्रीय छवि बर्बाद हो जाती। माउंटबेटन ने नेहरू को बचा लिया। प्रशासन संभालने के लिए एक समिति का गठन कर माउंटबेटन खुद उसका अध्यक्ष बने और पूरे प्रशासन तंत्र को संभाला। प्रधानमंत्री नेहरू उनके दाएं और उपप्रधानमंत्री पटेल उनके बांए चलते थे ताकि जनता में यह भ्रम बना रहे कि जो भी निर्णय होता है वह नेहरू की सरकार करती है, लेकिन सारा निर्णय माउंटबेटन किया करते थे। यह आजादी मिलने के बाद की बात आपको बता रहा हूं। यदि देश का सच्चा इतिहास लिखा जाए तो न जाने कितनी प्रतिमाएं टूट कर विखंडित हो जाए।
मैं अभी वह पूरा दस्तावेज और उसमें लिखी बातें आपको नहीं बताऊंगा, लेकिन हां जैसा कि आपको पता है कि अगले दो महीने में मेरी दो पुस्तक प्रभात प्रकाशन से आ रही है। उसमें से एक पुस्तक में इस पर सारा डिटेल है। जिससे आपको पता चलेगा कि किस तरह 15 अगस्त के बाद नेहरू ब्रिटिश हुकूमत के सामने गिडगिडा रहे थे कि हमसे देश नहीं संभल रहा है आप फिर से ब्रिटिश हुकूमत बहाल कर दीजिए।