बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह कांड की आग अभी ठंढी भी नहीं हुई थी कि उत्तर प्रदेश के देवरिया में मां विन्ध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं सामाजिक सेवा संस्थान का मामला उजागर हो गया है। मुजफ्फरपुर कांड मामले को घटना के बाद सीबीआई के हवाले किया गया, जबकि देवरिया में चल रहे सामाजिक सेवा संस्थान का मामला तो पहले से ही सीबीआई के हवाले है, फिर भी वहां रह रही महिलाओं और लड़कियों का दैहिक और मानिसक शोषण की घटनाएं सामने आई हैं। इससे साफ होता है कि हमारी सामाजिक सड़ांध कितनी गहरी है।
देवरिया में चल रहे मां विंध्यवासिनी प्रशिक्षण एवं सामाजिक सेवा संस्थान से एक लड़की ने महिला थाने जाकर संस्था के संचालकों की सारी करतूतों का भंडाफोड़ कर दिया। वहां से अभी 42 में से 24 लड़कियों को छुड़ाने के साथ ही संस्था की संचालिका, उसके पति तथा बेटे को गिरफ्तार कर लिया गया है। मालूम हो कि इससे पहले मुजफ्फरपुर के बालिका आश्रय गृह में बच्चियों के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया गया है। इस मामले में तो बिहार के सत्ताधारी मंत्री से लेकर अफसर और पत्रकार तक के शामिल होने की बात सामने आ चुकी है। देखना है कि देवरिया कांड की जड़ें कहां तक पहुंचती हैं?
देवरिया में मां विन्ध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं सामाजिक सेवा संस्थान अवैध रूप से चल रहा था क्योंकि इसका आर्थिक अनुदान बंद कर दिया गया था। इसमें व्याप्त अनियमितताओं को लेकर सीबीआई जांच चल रही है। मिली जानकारी के मुताबिक संस्थान की एक बालिका किसी तरह वहां से भागकर महिला थाना पहुंची और फिर अपनी आपबीती सुनाकर यहां चल रही सारी अनियमितताओं का भांडा फोड़ दिया। हालांकि अनियमितताओं की ही वजह से इसकी मान्यता स्थगित कर दी गई थी। प्रशासन ने तो यहां से बच्चों को स्थानांतरित करने का आदेश भी दे दिया था लेकिन यहां जबरदस्ती बच्चियों को अवैध तरीके से रखा गया था। इस मामले में स्वयं यूपी की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी का कहना है कि गत वर्ष सीबीआई जांच के बाद देवरिया शेल्टर होम को अवैध ठहरा दिया गया था। यहां की लड़कियों को दूसरी जगह रखने का तथा इसे बंद करने का निर्देश जारी कर दिया गया था। उन्होंने कहा है कि इस आश्रय गृह में कई अवैध गतिविधियां चल रही थीं। शेल्टर होम में पंजीकृत बच्चियों का सही रिकॉर्ड भी नहीं है। इसलिए सारे मामले की जांच चल रही है।
After CBI inspection last year, it was established that Deoria shelter home centre was running illegally. A direction was issued to shift the inmates and shut it. But this order was not followed: Rita Bahuguna Joshi, Women & Child Welfare Minister pic.twitter.com/QyylMfRjNv
— ANI UP (@ANINewsUP) August 6, 2018
भयावह होता जा रहा है मुजफ्फरपुर कांड
बिहार के मुजफ्फरपुर में चल रहे बालिका आश्रय गृह कांड को भले ही सीबीआई के हवाले कर दिया गया हो लेकिन यह कांड दिनानुदिन और भी भयावह रूप लेता जा रहा है। इस आश्रय गृह के संचालक ब्रजेश ठाकुर भले ही न्याययिक हिरासत में हो लेकिन उसके एनजीओ संकल्प की करतूत लगातार बाहर आ रही है। कुछ दिन पहले ही बालिका आश्रय गृह में रह रही 42 में से 34 लड़कियों के बलात्कार और यौन शोषण की पुष्टि होने के बाद एक और मामला सामने आया है। इस सामूहिक बलात्कार कांड में मुजफ्फरपुर पत्रकार ब्रजेश ठाकुर से लेकर नीतीश कुमार सरकार की मंत्री की समाजकल्याण मंत्री मधु वर्मा के पति चंदेश्वर वर्मा और नीतीश सरकार के ही नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा तक का नाम सामने आ रहा है। सोचिए, व्यवस्था कितनी सड़-गल चुकी है कि पत्रकार से लेकर सत्ता में बैठे मंत्रियों और उनका परिवार तक मासूम बच्चियों की दलाली के आरोप से घिरा है!
संकल्प एवं विकास समिति नाम के एनजीओ द्वारा मुजफ्फरपुर में छोटी कल्याणी इलाके में संचालित स्वयं सहायता समूह के परिसर से 11 महिलाओं के लापता होने का मामला सामने आया है। इस मामले में भी ब्रजेश ठाकुर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है। महिला थाना प्रभारी ज्योति कुमारी के मुताबिक इस मामले में समाज कल्याण विभाग के सहायक निदेशक देवेश कुमार शर्मा ने सोमवार को शाम ठाकुर के खिलाफ नई प्राथमिकी दर्ज कर ली है। आश्रय बालिका गृह में 34 बच्चियों के यौन उत्पीड़न के मामले के सामने आने के बाद ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ द्वारा संचालित अन्य आश्रय गृहों की जांच के दौरान यह नया मामला सामने आया है। ब्रजेश के एनजीओ को काली सूची में डाल दिया गया है।
मालूम हो कि मुजफ्फरपुर जिले में एक बालिका गृह में 34 लडकियों के साथ यौन शोषण मामले की सीबीआई जांच के बीच राज्य के समाज कल्याण विभाग ने मुजफ्फरपुर बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक सहित मुंगेर, अररिया, मधुबनी, भागलपुर और भोजपुर जिलों की बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशकों को भी निलंबित कर दिया गया है। समाज कल्याण विभाग द्वारा जारी अलग-अलग अधिसूचनाओं के अनुसार निलंबन की कार्रवाई जिन बाल संरक्षण इकाइयों के अधिकारियों के खिलाफ की गई है उनमें दिवेश कुमार शर्मा (मुजफ्फरपुर), सीमा कुमारी (मुंगेर), घनश्याम रविदास (अररिया), कुमार सत्यकाम (मधुबनी), गीतांजलि प्रसाद (भागलपुर) और आलोक रंजन (भोजपुर) शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर स्थित बालिका आश्रय गृह में रह रहीं 42 लड़कियों में से 34 के साथ बलात्कार होने की पुष्टि होने के बाद, इस मामले में कई खुलासे हुए। इस भयावह कांड की गूंज अब सत्ताधारी पार्टियों में भी गूंजने लगी है। इसी कारण यह मामला काफी हाई-प्रोफाइल बन गया है। इस आश्रय गृह में रह रही जो बच्चियां बलात्कार और दैहिक उत्पीड़न का शिकार हुई हैं उनकी उम्र 7 से 13 वर्ष है। मुजफ्फरपुर के साहु रोड स्थित इस सरकारी बालिका गृह का संचालन ब्रजेश ठाकुर का एनजीओ सेवा संपल्प एवं विकास समिति कर रहा था। इस बालिका आश्रय गृह के संचालन के लिए बिहार सरकार करोड़ो रुपये अनुदान देती थी। लेकिन सरकारी पैसे पर चल रहे एनजीओ सेवा संकल्प को दल्ला और आश्रय गृह को कोठा में बदल कर ब्रजेश ठाकुर खुद पत्रकार के वेश में दलाल बन बैठा।
मुजफ्फरपुर आश्रय बालिका गृह में चल रही भयावह वेश्यावृत्ति का यह मामला प्रकाश में तब आया जब मुंबई के एक संस्थान टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (टिस) की ‘कोशिश’ टीम ने अपनी समाज लेखा रिपोर्ट में दावा किया था कि बालिका गृह की कई लड़कियों ने यौन उत्पीड़न की शिकायत की है। इसके साथ ही वहां रही बच्चियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है और आपत्तिजनक परिस्थितियों में रखा जाता है। पीड़ित लड़कियों में से कुछ के गर्भवती होने तक की बात सामने आ चुकी है। बताया जा रहा है कि उस आश्रय बालिका गृह में कई प्रकार के इंजेक्शन और दवाइयां मिली है जो साबित करती हैं कि यहां समय से पहले बच्चियों को जवान किया जाता था।
इसी खुलासे के बाद बिहार सामाजिक कल्याण विभाग ने एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी। जिसके तहत बालिका गृह के संचालक ब्रजेश ठाकुर सहित कुल 10 आरोपियों किरण कुमारी, मंजू देवी, इंदू कुमारी, चंदा देवी, नेहा कुमारी, हेमा मसीह, विकास कुमार एवं रवि कुमार रौशन को गिरफ्तार कर जेल भेजा दिया गया। लेकिन ऊंची पहुंच के कारण ब्रजेश ठाकुर को अगले ही दिन तबियत खराब होने के नाम पर अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। कहा जाता है कि अभी तक मुख्य आरोपी दिलीप कुमार वर्मा को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है। वह अभी तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया है। इसलिए उसे दबोचने के लिए पुलिस ने उसके बारे में इश्तेहार देकर उसके घर की कुर्क करने की कार्रवाई की जा रही है।
लेकिन इस मामले के तूल पकड़ने और विपक्षी पार्टियों के दबाव बढ़ने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया है। इस मामले में काफी दिनों तक चुप्पी साधने वाले मुख्यमंत्री ने हाल में ही कहा है कि इस मामले में कोई नहीं बच पाएंगे। उन्होंने कहा है कि इस मामले के दोषी को बचाने वाले भी नहीं बख्से जाएंगे। गौरतलब है कि इस मामले के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के बारे में कहा जाता है कि उसका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी से अच्छे संबंध है। इस मामले में बिहार सरकार के एक मंत्री का नाम भी जुड़ चुका है। इसलिए इस मामले को सीबीआई के हवाले करने पर भी संदेह किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि बड़े लोगों को बचाने के लिए ही इस मामले को सीबीआई के हवाले किया गया है।
कहीं इस कांड का हश्र भी 1983 के बॉबी कांड जैसा न हो जाए
आखिर 1983 में हुआ क्या था? तो चलिए मुजफ्फरपुर में बच्चियों के साथ हुए रेपकांड के बहाने बिहार के चर्चित बॉबी हत्याकांड के बारे में जान लेते हैं। साथ ही यह भी देख लेते हैं कि जिस हाईप्रोफाइल केस में देश और प्रदेश के तारणहार संलिप्त होते हैं उस केस के साथ देश की सबसे ऊंची जांच एजेंसियां किस प्रकार निर्लज्ज हो जाती हैं? कुछ सत्ताधारी नेताओं को बचाने के लिए सीबीआई ने 1983 में हुई श्वेत निशा त्रिवेदी उर्फ बॉबी की हत्या को आत्महत्या साबित कर उसे रफा-दफा कर दिया था।
अब जब सीबीआई ने मुजफ्फरपुर रेपकांड मामले को अपने हाथ में लिया है और मामला दर्ज कर जांच भी शुरू कर दी है तो एक बारगी इसी बिहार में 35 साल पहले घटी घटना जेहन में कौंध उठी है। जब 1983 में सीबीआई ने बॉबी हत्याकांड को दबाव में रफा दफा कर दिया था। इस दोनों मामले में समानता बहुत है लेकिन अंतर बस इतना है कि वहां बॉबी अकेली लड़की थी लेकिन यहां 34 लड़कियों का सवाल है। लेकिन मूल सवाल यही है कि क्या मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह रेपकांड का हश्र वही होगा जो 1983 में बॉबी हत्याकांड का हुआ था। बॉबी हत्याकांड का अपराधी तो सामने आया नहीं इसलिए उसकी बदनामी का तो सवाल ही नहीं उठता लेकिन सीबीआई की ऐसी बदनामी हुई है जैसे हत्यारी वही हो।
सन 1983 की बात है बिहार विधान सभा सचिवालय की बेहद सुंदर महिला टाइपिस्ट बॉबी को जहर दिया गया जिससे 7 मई 1983 को उसकी मौत हो गई। उस समय यह आम चर्चा थी कि किसने जहर दिया? बॉबी बिहार विधान परिषद की सभापति और कांग्रेसी नेत्री राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी थी। उसकी हत्या सभापति के पटना स्थित सरकारी आवास में ही हुई थी। श्वेता निशा त्रिवेदी उर्फ बॉबी की हुई इस रहस्यमय मौत से बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री जग्गनाथ मिश्र की सरकार की जाने तक की नौबत आ गई थी। मौत के बाद इतनी हड़बड़ी मच गई अंतिम संस्कार भी धर्म अनुरूप नहीं किया गया। उसका दाह संस्कार करने की बजाय कब्र में दफना दिया गया। दो डॉक्टरों से जो निधन प्रमाणपत्र लिए गए वो भी जाली निकले और दोनों में मौत के कारण अलग-अलग बताए गए। एक में जहां अधिक रक्तस्राव मौत का कारण बताया गया वहीं दूसरे में हृदयाघात को मौत का कारण बताया गया।
इस हत्याकांड के बारे में जब तत्कालीन ‘आज’ और प्रदीप में खबर प्रकाशित हुई तो पटना के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक किशोर कुणाल ने कब्र से लाश निकलवाई। लाश का पोस्टमार्टम हुआ। बिसरा में मेलेथियन जहर पाया गया। सभापति के आवास में रहने वाले दो युवकों को पकड़कर पुलिस ने जल्दी ही पूरे केस का रहस्योद्घाटन कर दिया। खुद राजेश्वरी सरोज दास ने 28 मई 1983 को अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा कि बॉबी को कब और किसने जहर दिया था? हत्याकांड तथा बॉबी से जुड़े अन्य तरह के अपराधों के तहत प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से कई छोटे-बड़े कांग्रेसी नेता संलिप्त पाए गए थे। एक स्त्री की भावनाओं के साथ अनेक नेताओं द्वारा खेले जाने के बाद उसे खत्म कर देने की कहानी ही अब बॉबी की संक्षिप्त कहानी बची है।
पुलिस कार्रवाई के तहत इस अपराध में संलिप्त नेताओं की गिरफ्तारी होने ही वाली थी कि करीब सौ कांग्रेसी विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ.जगन्नाथ मिश्र का घेराव कर इस केस को सीबीआई के हवाले करने या फिर सरकार से हाथ धो बैठने के चेतावनी दे डाली। सत्ता के आगे एक अदना सा आदेश क्या मायने रखता, वो भी जगन्नाथ मिश्र जैसे मुख्यमंत्री के लिए। उन्होंने 25 मई 1983 को यह केस सीबीआई के हवाले हवाले कर अपनी कुर्सी बचा ली।
इसके बाद जो होना था सो वही हुआ। सीबीआई पर इतना दबाव डाला गया कि सीबीआई को सारी बदनामी अपने ऊपर लेनी पड़ी और केस को रफा-दफा करना पड़ा।
शायद तभी से कहा जा रहा है कि सीबीआई की जांच इसलिए कराई जाती है कि मामले को दबाया जा सका। अब तो सीबीआई पर फंसाने तक का आरोप लगने लगा है। सीबीआई को यह केस इसलिए सौंपा गया कि पटना के एसएसपी किशोर कुणाल किसी के दबाव में नहीं आ रहे थे। सत्ताधारी नेताओं को बचाने की हड़बड़ी में सीबीआई ने ऐसी झूठी कहानी रची जिसे एक बच्चा भी बता दे कि कहानी ऐसी नहीं होती है। जिस हत्या के मामले में डॉक्टर ने दो-दो कारण बताए थे उससे इतर सीबीआई ने उसे आत्महत्या बता कर केस को रफा-दफा कर दिया। सीबीआई ने जांच की फाइनल रिपोर्ट भी दी लेकिन इस दौरान पटना पुलिस से एक बार भी संपर्क तक नहीं किया। क्या ऐसा संभव है? जबकि जांच एजेंसियां कितनी ही बड़ी क्यों हो प्राथमिक जांच की रिपोर्ट उसे पुलिस से ही लेनी पड़ती है।
सीबीआई ने बॉबी हत्याकांड में अपनी फाइनल रिपोर्ट में लिखा कि बॉबी ने सेंसिबल टेबलेट खाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या का कारण प्रेमी से मिला धोखा बताया। उसने यह भी बताया कि सेंसिबल टैबलेट खाने के बाद जब उसे अस्पताल ले जाया गया तब रास्ते में उसे पतली लैट्रिन हो रही थी। डॉक्टरों का कहना है कि सेंसिबल टेबलेट खाने से भयानक रूप से कब्ज हो जाता है। सीबीआई को तो बस उसे आत्महत्या साबित करना था क्योंकि इसी रास्ते सफेदपोश नेता बच पाते, तार्किक परिणति से उसका कोई लेना-देना था नहीं। सीबीआई ने अपनी जो जांच रिपोर्ट दी उसमें अनगिनत विरोधाभास थे।
अगर उसे विरोधाभास रिपोर्ट कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं। सीबीआई की छीछालेदर होती रही लेकिन उसने अपने आका का काम पूरा किया। इतने सारे विरोधाभास होने के बाद भी सीबीआई के जांच अधिकारी केएन तिवारी ने पटना के विशेष न्यायिक दंडाधिकारी एचपी चक्रवर्ती की अदालत में फाइनल रिपोर्ट लगा दी। अदालत ने 18 मई 1984 को इस केस को बंद कर दिया। यानि एक साल के अंदर पूरा केस रफा-दफा कर दिया गया। पूर्व वीसी देवेंद्र प्रसाद सिंह समेत पटना के कुछ गणमान्य लोगों ने चक्रवर्ती के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की। लेकिन हाईकोर्ट ने भी उसे खारिज कर दिया।
चर्चित बॉबी हत्या कांड जहां सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के बड़े-बड़े नेता प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से संलिप्त थे, वही मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह के भीषण यौन शोषण कांड में जिन लोगों की संलिप्तता के आरोप हैं, उनमें अफसर, पत्रकार, समाजसेवी और सत्ताधारी नेता तक शामिल बताए जाते हैं। यदि मुजफ्फरपुर कांड की सीबीआई जांच की सही ढंग से निगरानी नहीं हुई तो इसकी तार्किक परिणति क्या होगी, यह कहना कठिन है? क्योंकि इसकांड के आरोपी भी बॉबी हत्याकांड की तरह काफी ऊपर तक पहुंच रखने वाले हैं। इसिलिए शंका हो रही है कि मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह में बच्चियों के साथ हुए रेपकांड का हश्र भी बॉबी उर्फ श्वेता निशा त्रिवेदी की हत्याकांड जैसा न हो जाए।
URL: After the horrific Muzaffarpur girls shelter house, Deoria case exposed social rot
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