यूपीए शासनकाल के दौरान हैदराबाद की मक्का मसजिद में धमाके की साजिश के आरोपों से स्वामी असीमानंद को NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की विशेष अदालत ने बरी कर दिया है। उनके खिलाफ कोई भी ठोस सबूत नहीं होने कारण उन्हें बरी किया गया है। अब यह जानना जरूरी है कि आखिर वे क्या काम करते थे जिनके कारण वे हिंदू विरोधियों और कांग्रेस की आंख के कांटे बन गए थे। मैं आपको उनके उन कार्यों के बारे में बताता हूं जिसकी वजह से वे हिंदू विरोधी और कांग्रेस की आंखों में चुभने लगे थे।
दरअसल असीमानंद धर्मांतरण रोकने के लिए आदिवासियों के इलाके में काम करते थे। प्रचूर संसाधनों की बदौलत लालच देकर मासूम आदिवासियों को धर्मांतरण के लिए उकसाने वाली ताकतों के खिलाफ चट्टान की भांति खड़े हो गए थे। उन्होंने अपनी संगठन क्षमता की बदौलत आदिवासियों को ईसाई बनाने में सफल नहीं होने दिया। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ाने की कोशिश में सोनिया गांधी की ‘मनमोहन सरकार’ ने असीमानंद को ‘हिंदू आतंकवादी’ घोषित कर दिया था!
मुख्य बिंदु:
* गुजरात के डांग जिले के मुख्यालय आहवा में स्थापित किया शबरी धाम
* आदिवासी इलाके में धर्मांतरण रोक कर ईसाई मिशनरियों को पहुंचाई चोट
* मूलरूप से पश्चिम बंगाल के असीमानंद शुरू से ही आदिवासियों के लिए कर रहे काम
मूलरूप से पश्चिम बंगाल के रहने वाले स्वामी असीमानंद का नाम नब कुमार सरकार है। वे शुरू से ही बनवासियों/आदिवासियों के लिए काम करने के इच्छुक थे। वे शुरू से ही RSS से जुड़े संगठनों के करीबी रहे हैं। उन्हें नजदीक से जानने वालों का कहना है कि वे हिंदू राष्ट्र के प्रबल समर्थकों में से एक हैं। वे अपने मूल्य से कभी समझौता नहीं करते। आदिवासियों के प्रति उनके मन में शुरू से ही सहानुभूति रही है। कहा जाता है कि वे आदिवासियों के बीच इतने रच-बस गए थे कि आदिवासी भी उन्हें अपना मानते हैं। इन्हीं अपनत्व की बदौलत उन्होंने ईसाई मिशिनरियों को आदिवासियों के धर्मांतरण करने के उद्देश्य को पूरा नहीं होने दिया।
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वनस्पति विज्ञान में परास्नातक की डिग्री हासिल करने वाले असीमानंद इस बात को लेकर शुरू से ही स्पष्ट थे कि उन्हें आदिवासी क्षेत्रों में वनवासियों के लिए काम करना है। तभी 1970 के दशक में आरएसएस ने उन्हें अंडमान भेज दिया। उस समय वहां आरएसएस भी संघ को स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। उन्होंने वहां जाकर जहां आदिवासियों के लिए काम किया वहीं आरएसएस को भी मजबूत बनवाया। शुरू में वे रामकृष्ण मिशन से जुड़े थे लेकिन बाद में उनका उनसे मोह भंग हो गया। हालांकि हिंदुओं के लिए किए कार्यों को लेकर उनके मन में विवेकानंद के प्रति गहरी श्रद्धा थी।
1977 के आसपास उन्होंने बीरभूम में आरएसएस के बनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम करना शुरू किया। बाद में असीमानंद ने नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम में भी जाकर आदिवासियों के लिए काम किए। 1995 में गुजरात के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण अभियान रोकने की जिम्मेदारी मिली। यह काम उनके लिए कठिन था। क्योंकि एक तरफ प्रचूर संसाधनों से लैश ईसाई मिशनरी की फौज धर्मांतरण कराने को आतुर थी वहीं दूसरी तरफ संसाधनहीन स्वामी असीमानंद। लेकिन अपनी कार्यशैली से आदिवासियों का दिल जीतने में ही सफल नहीं हुए, बल्कि धर्मांतरण रोकने में भी बहुत हद तक सफल रहे।
उनकी कार्यशैली आदिवासियों के लिए मनमोहक का काम करती थी। वे आदिवासियों के बीच रच-बस जाते थे। उन्होंने आदिवासियों का रहन-सहन ही नहीं अपनाया बल्कि उनकी बोली में ही उनसे बात करने लगे। वे आदिवासियों के बीच में हिंदू पर्वों का आयोजन काफी भव्य तरीके से करवाते थे। इस तरह उन्होंने आदिवासियों को धर्मांतरण करने से रोक लिया। 1995 में गुजरात में कार्य करने के दौरान ही उन्होंने डांग जिले के मुख्यालय आहवा में हिंदू संगठनों के साथ ‘हिंदू धर्म जागरण और शुद्धिकरण’ का काम किया। यहां उन्होंने शबरी माता का मंदिर बनाकर शबरी धाम स्थापित किया।
इसी कारण से वह ईसाई मिशनरियों की आंखों में चुभने लगे थे। ऐसे में कैथोलिक सोनिया गांधी (जेवियर मोरी की पुस्तक ‘रेड साड़ी’ के अनुसार) के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के लिए वह आसान निशाना बन गये और उन्हें ‘हिंदू आतंकवादी’ घोषित कर जेल में सड़ने के लिए डाल दिया गया, ताकि ईसाई मिशननियों की राह आसान हो सके! लेकिन कहते हैं न, ‘ईश्वर के घर देर है, अंधेर नहीं!’ असीमानंद की रिहाई ने एक बार फिर से यह साबित हो गया।
URL: All accused, including Aseemanand, acquitted in Mecca Masjid blasts-6
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