कुछ समय पूर्व तक अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कलिखो पुल का शव पंखे से लटका मिला! मैं कुछ अखबारों के वेब एडिशन को देख रहा हूं तो संदेह गहरा रहा है कि यह आत्महत्या है या हत्या! अखबारों के वेब ने बिना जांच के आत्महत्या का संदेह जताते हुए यह तक लिख दिया है कि एक बार गरीबी से तंग आकर नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या करने का वह पहले भी प्रयास कर चुके हैं! शायद अखबार जांच से पहले ही आत्महत्या साबित करने के लिए इतने बेचैन हैं कि वह कलिखो के गरीबी के दिनों को कुरेद रहे हैं!
इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो जैसे चुप्पी ही साध रखी है! इसलिए मेरा संदेह गहरा रहा है कि कलिखो की कहीं हत्या तो नहीं हुई? ऐसा इसलिए कि जांच से पहले ही मीडिया सबूत मिटाने की भूमिका में आ चुका हैं और यह हर उस बार होता है, जब किसी कांग्रेसी नेता की संदिग्ध मौत होती है! आखिर कलिखो पुल ने कांग्रेस आलाकमान पर मिलने का समय न देने और अपने विधायकों का सम्मान न करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस तोड़ कर अरुणाचल में बागियों की सरकार बनाई थी! उन्हें सजा तो मिलना ही था!
अदालती आदेश के कारण मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद कलिखो अवसाद में नहीं थे कि आत्महत्या करते! जानकारी के मुताबिक भाजपा द्वारा उत्तर-पूर्व राज्यों के लिए गठित मोर्चे को लेकर भी वे सक्रिय थे! कहीं ऐसा तो नहीं कि 1995 से लगातार जीतते आ रहे कद्दावर नेता कलिखो पुल भाजपा के साथ मिलकर उत्तर-पूर्व में कुछ ऐसा करने के प्रयास में थे, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता था? सवाल तो कई हैं! मीडिया चाहे न उठाए, सोशल मीडिया तो सवाल उठाएगी!
मीडिया का कवर-अप प्लान देखिए
आजतक वेब लिखता है- ‘अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल का शव उनके घर में पंखे से लटका मिला। 47 साल के कलिखो पुल के सुसाइड का संदेह जताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि कलिखो पुल ने रात को सुसाइड किया. उस वक्त उनकी पत्नी घर के दूसरे कमरे में थीं।’ सवाल उठता है कि आजतक से कौन संदेह जता रहा है? वह कौन है जो उसे बता रहा है? कहने को पत्रकारों के सूत्र होते हैं, लेकिन यकीन मानिए यह सब स्थानीय पुलिस मीडिया में प्लांट करवाती है! लेकिन सच और भी है और वह यह है कि पुलिस के जरिए बड़े कद वाला सत्ता का व्यक्ति मीडिया में इसे प्लांट करवाता है! मैं खुद लंबे समय तक अपराध संवाददाता रहा हूं और न जाने कि कितनी ही बार बड़े मीडिया हाउस की किसी खबर पर गिरोहबंदी के उलट जाकर इन्हें एक्सपोज कर चुका हूं! ये सब केवल मोहरे की तरह इस्तेमाल होते हैं! यह अपने अनुभव से आपको बता रहा हूं! हत्या को आत्महत्या बनाने का खेल पुलिस बहुत आसानी से खेलती है!
जनसत्ता देखिए क्या लिखता है- ‘कलिखो पुल 11 साल की उम्र में भी खुदकुशी करने पुल पर चले गए थे’! अर्थात जनसत्ता ने बिना जांच के ही आत्महत्या भी घोषित कर दिया और पाठक संदेह न कर सकें, इसलिए पूर्व की एक घटना का जिक्र भी कर दिया कि कलिखो तो पहले भी आत्महत्या का कदम उठा चुके हैं, इसलिए इस बार भी यह आत्महत्या ही है! दैनिक जागरण दो कदम और आगे बढ़ गया और घोषणा कर दी कि ‘ पूर्व सीएम कलिखो पुल ने की खुदकुशी, पंखे से लटका मिला शव।’ खाता न बही, जो दैनिक जागरण कहे वही सही! अंग्रेजी एनडीटीवी वेब लिख रहा है कि ‘स्रोत बता रहे हैं कि पुल ने एक डायरी छोड़ी है, जिसकी जांच पुलिस कर रही है’! लेकिन एनडीटीवी ने शीर्षक में लिख दिया है कि ‘डायरी में सुसाइड नोट पाया गया है’, जबकि अंदर खबर में कहीं सुसाइट नोट की चर्चा ही नहीं है! कहने का तात्पर्य यह कि बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट आए मीडिया ने कलिखो पुल की मौत को आत्महत्या घोषित कर दिया! अब आगे जाकर पोस्टमार्ट रिपोर्ट भी पुलिस और सत्ता के कहने पर आ जाएगी और मीडिया सहित इस मामले को दबाने की कोशिश करने वाले लोग सही साबित हो जाएंगे!
कांग्रेस को तोड़ने वाले कलिखो की मौत में कांग्रेस पर आखिर कोई क्यों नहीं उठा रहा सवाल?
गौरतलब है कि कलिखो पुल कांग्रेस से बगावत कर 19 फरवरी 2016 से 13 जुलाई 2016 तक अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। उन्होंने कांग्रेस के 12 बागी विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बनाई थी, जिसे भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कांग्रेस की सरकार को वापसी का मौका दिया, जिसके बाद कांग्रेस के पेमा खांडु राज्य के मुख्यमंत्री बने। कालिखो पुल 1995 से लगातार पांच बार विधायक के रूप में जीते थे। मुख्यमंत्राी गेगांग अपांग के कार्यकाल में वह राज्य के वित्त मंत्री भी रह चुके थे। इसके अलावा वह कांग्रेस सरकार में विभिन्न मंत्री पद पर भी रह चुके थे! आखिर क्या कारण है कि वह तब तक जीवित रहे, जब तक कांग्रेस से वफादारी करते रहे, लेकिन कांग्रेस से दगा करते ही उन्हें न केवल सत्ता छोड़नी पड़ी, बल्कि जीवन भी छोड़ना पड़ा! मीडिया का काम सवाल पूछना होता है, लेकिन एक भी मीडिया ने यह सवाल उठाने की जगह, बिना जांच के ही उनकी मौत को आत्महत्या घोषित कर दिया! हो सकता है उन्होंने आत्महत्या ही की हो, लेकिन मीडिया का यह धर्म तो नहीं ही है कि बिना सवाल उठाए वह पुलिस का प्रेस रिलीज ले आए और छाप दे!
कांग्रेस के अधिकांश नेताओं की मौत संदिग्ध ही क्यों होती है?
आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी, पूर्व कांग्रेसी मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर, अच्छे-खासे स्वस्थ्य और अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख – यह अभी केवल कुछ महीनों और वर्षों के उदाहरण हैं, जो दर्शाते हैं कि कांग्रेस के आंतरिक स्तर में जो कभी बेहद खास थे, बाद में संदिग्ध हालात में मरे पाए गए! मीडिया इन संदिग्ध मौतों से इस मौत को जोड़कर शायद ही देख पाए, क्योंकि पिछले एक दशक से मीडिया केवल वही देखती, सुनती, दिखाती और छापती रही है, जो उसे कांग्रेस की ओर से दिखाने और छापने को कहा जाता रहा है! कभी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बीमारी का राज और राहुल गांधी के विश्व भ्रमण का राज आपको किसी मीडिया ने बताया? नहीं बताएगी, इसका आदेश उन्हें नहीं मिला है! कलिखो की संदिग्ध मौत को भी हत्या बनाकर संदेह जाहिर करने का आदेश मीडिया के पास नहीं है, इसलिए जो व्यक्ति पिछले महीने तक मुख्यमंत्री था, उसे बिना कोई ठोस कारण बताए मीडिया, पंखे से लटका बता रही है!