जब दुनिया उन्हें उनके ओजस्वी भाषणों और कविता को याद कर रही है मन व्याकुल हो रहा है एक दशक से ज्यादा वक्त से वे मौन क्यों हैं? मौत से उनकी ऐसी ठनी कि वे मौन व्रत में भी लगातार लड़ते रहे! 2009 में उन्हें स्ट्रोक लगा तब से रोज वे मौत को हराते रहे। लेकिन इन नौ सालों में मीडिया ने न जाने उन्हें कितनी बार मार दिया?
दसियों बार उनकी मौत की खबर मीडिया के गलियारों में कनफर्म करने के लिए घूमती रही। मीडिया रिपोर्ट के आधार पर नेताओं का वाजपेयी जी के सरकारी निवास कृष्णमेनन मार्ग पर चक्कर लगाने का दौर भी न जाने कितनी बार शुरु हुआ। वाजपेयी के घर पर नेताओ की तस्वीर कैमरे में कैद होते ही अफवाहों का बाजार और गर्म होता रहा। टीवी चैनलों के लाइब्रेरी से वाजपेयी जी की कविता निकाले जाने का दौर शुरु होता। टीवी पर वाजपेयी हमेशा टीआरपी का जरिया रहे लिहाजा अफवाह से रंगे वाजपेयी की मौत की खबर को मीडिया ने खुब भुनाया। मुझे याद आता है 2011 और 2013 में अफवाह की ऐसी ही खबर को पुख्ता करने के हमने खुद कृष्णमेनन मार्ग की दौड़ लगाई।
2009 से लेकर आज की तारीख में एक ही बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर दुनिया ने तब देखी जब 2015 में उन्हे भारत रत्न देने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी खुद उनके निवास पर पहुंचे। वह इकलौती तस्वीर ही इस संदेश के लिए काफी है कि वाजपेयी सालों से चुप्पी लादे हैं। उनका शरीर ठीक से काम नहीं कर रहा। बस किसी तरह उन्हें बैठा कर तस्वीर ऐसी ली गई ताकि भारत रत्न के सर्टीफिकेट की ओट में बस उनकी आंखो पर उनका काला चश्मा और ललाट दिख सके।
उस भारत रत्न की हालत सालों तक नाजुक बनी रही। उनका सरकारी निवास नौ साल तक एम्स का ही हिस्सा बना रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत हर बड़ा नेता राजनीतिक उपलब्धि पर वाजपेयी जी से मिलने जाता रहा। यह बस मौखिक खबर बनती रही। कभी कैमरे पर तस्वीर बनकर नहीं उभरे अटल। यह सब सिर्फ इसलिए ताकि वाजपेयी जी को उनके चाहने वालों ने जिस रुप में देखा है उस रुप में ही वे हमेशा बने रहें।
वे 2004 में चुनावी हार को क्या वे बर्दास्त नहीं कर सके? वाजपेयी ने इसकी व्याख्या कभी नहीं की। उस हार के बाद अपनी वाकपटुता के लिए जाने जाने वाले सर्वमान्य नेता की चुप्पी हैरान करने वाली है जिसका कभी कोई जवाब ढूंढा नहीं जा सका। उनकी लगातार जारी इस चुप्पी पर लालकृष्ण आडवाणी 2013 में कैमरे के सामने भावूक हो गए थे। आडवाणी ने कहा था बोलना हमें वाजपेयी जी ने सिखाया। आज उनका बात न करना हमें बहुत परेशान करता है। अपनी ओजस्वी आवाज शानदार भाषण शैली को लेकर जनता को बीच लोकप्रिय वाजपेयी साल 2005 में आखिरी बार मुंबई के शिवाजी पार्क में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रजत जयंती समारोह में उन्होंने जनसभा को संबोधित किया। इसके बाद वे दोबारा कभी भी किसी जनसभा में नहीं बोले।
उस जनसभा में वाजपेयी ने सबसे छोटा भाषण दिया था। उन्होने बस दो पंक्ति में अपना भाषण खत्म कर लिया था। वाजपेयी जैसे अटल ओजस्वी वक्ता के सार्वजनिक मंच पर आखरी बोल थे,”खुली हवा में जरा सांस तो ले लें कब तक रहेगी आजादी भला कौन जाने”। उसी जनसभा में उन्होंने चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा की थी। लगता है वे खुद जानते थे कि उनकी आजादी खत्म होने वाली है। और वे अपने विशाल सरकारी निवास के एक कमरे में कैद हो जाने वाले हैं। वाजपेयी एक-दो साल नहीं करीब 9 साल से बिस्तर पर हैं। पूरी चुप्पी के साथ।
जीवन हमें कई संदेश देता है। खुद की पहचान एक राजनेता और प्रधानमंत्री के बदले एक कवि के रुप में रखने की चाहत वाले ओजस्वी वक्ता को दुनिया खुब बोलते हुए देख रही है। वे अक्सर कोई गंभीर टिप्पणी से पहले कुछ पल के लिए आंखे बंद कर लेते है। जनता खुब ताली पिटने लगती थी। लोग समझ जाते थे कि वे कुछ खास बोलेंगे। फिर वे बस बोलते जाते थे। उनके बोल में वो नशा था कि लोग बस मदमस्त हो जाते थे। वे अबकि बार फिर आंख बंद किए हुए हैं, अबकी बार चुप्पी उनकी लंबी है, बहुत लंबी….देश बेसब्र हो रहा है! अटल जी कुछ तो बोलिए! हम सब बस आपको सुनना चाहते हैं! आप बस बोलते रहिए न…
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