बख्तियार खिलजी, जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को मिटा दिया था, बिहार में उसके नाम पर आज भी एक शहर का नाम जैसे इतिहास को चिढ़ा रहा है! अपने एक हमले में बख्तियार खिलजी ने नालंदा की 90 लाख पुस्तकों और पांडुलिपियों को आग के हवाले कर दिया था! और ताज्जुब देखिए कि मार्क्सवादी व मैकालेवादी लेखक, इतिहासकार और पत्रकार इतने बड़े ऐतिहासिक तथ्य को झुठला कर आज तक यही लकीर पीट रहे हैं कि भारत में बौद्ध धर्म का विनाश हिंदुओं ने किया! जबकि सच्चाई यह है कि नालंदा विश्विद्यालय का निर्माण गुप्त वंश के हिंदू शासकों ने किया था और उसे तबाह मुसलिम बादशाह ने, जो गवाह है कि बौद्धों को किसने मिटाया था?
भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने बिहार के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक से मांग की है कि बौद्ध भिक्षुओं और हिंदुओं के नरसंहारी बख्तियार खिलजी के नाम पर आखिर बिहार का बख्तियारपुर शहर क्यों है? और क्यों नहीं इसके नाम को बदला जाता है? बख्तियारपुर बिहार की राजधानी पटना के पास है। जो कभी भारत का पाटलीपुत्र जैसा गौरवशाली नगर होता था, आज उसके पास एक क्रूर शासक के नाम पर कलंकित शहर जैसे भारतीयों को उनकी अस्मिता के रौंदे जाने की याद दिला रहा है। आखिर ऐसे क्रूर तुर्कों, अफगानियों, तुगलकों, खिलजियों, कुतुबों, मुगलों और ब्रिटिशों के नाम पर अपने शहर और सड़कों का नाम रखकर मार्क्सवादी-नेहरूवादी इतिहासकारों ने अब तक क्या साबित करने का प्रयास किया है? यही न कि भारत का अपना कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, ताकि भारतीयों का गौरव जिंदा न हो सके! लेकिन अब ऐसा नहीं होगा?
मुख्य बिंदु
* नालंदा विश्ववद्यालय स्थित तीन भवनों में फैले हुए भव्य पुस्तकालय में रखा था ज्ञान का खजाना
* समूल ब्राह्मणों व श्रमणों का सर कलम कर तलवार के जोर पर इसलाम स्थापित करना चाहता था बख्तियार खिलजी
कुमार गुप्त, नालंदा विश्वविद्यालय के संस्थापक
नालंदा विश्वविद्यालय के उच्चारण मात्र से आप भारतीय ज्ञान के प्राचीन काल में पहुंच जाएंगे। उच्च शिक्षा का यह प्राचीन केंद्र बिहार (प्राचीन राज्य मगध) स्थित नालंदा जिला में था। यह केंद्र तक्षशिला के बाद भारत का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय था। इस विश्वविद्यालय का फैलाव 14 हेक्टेयर में था। पांचवीं सेंचुरी से लेकर 1193 के तुर्कों के हमला तक यह एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था। यहां तिब्बत, चीन, ग्रीस और पर्सिया से छात्र शिक्षा के लिए आते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय समेत सभी प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालय में अत्यधिक औपचारिक तरीके से वैदिक शिक्ष दी जाती थी। गुप्त साम्राज्य ने ही 5 वीं शताब्दी में नालांदा विश्वविद्यालय की स्थापना कर विश्वविद्यालय शिक्षा को संरक्षण देना शुरू किया था। वहां एक मुहर मिली है जिसमें शाकरादित्य नाम खुदा है। इस मुहर को 5वीं शताब्दी का माना जाता है। और इसमें जो शाकरादित्य नाम खुदा है वह दरअसल गुप्त सम्राट के कुमार गुप्त प्रथम हैं। उन्हें ही नालंदा विश्वविद्यालय का संस्थापक माना जाता है।
आहा नालंदा!
इस विश्वविद्यालय में पूरे विश्व से छात्र उच्च शिक्षा हासिल करते आते थे। यहां पर यह भी साक्ष्य मिला है कि विदेशों के राजा भी नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में भवन निर्माण के लिए धन देते थे। पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद है कि इंडोनेशिया के राजा शैलेंद्र ने विश्वविद्यालय परिसर में एक भवन बनवाया था। नालंदा विश्वविद्यालय आवासीय शिक्षा केंद्र था। इसके अलावा इस परिसर में 10 मंदिरों के साथ कक्षाएं, ध्यान योग केंद्र, मठ तथा छात्रावास आदि बने हुए थे। इस विश्वविद्यालय में कुल आठ परिसर थे जिसमें प्रत्येक में झरना और पार्क की व्यवस्था की गई थी। इस विश्वविद्यालय में कुल 10 हजार छात्र होते थे और 2,000 शिक्षक। छात्र-शिक्षकों का अनुपात इससे बेहतर कहीं और नहीं था। इसका गुणा-भाग किया जाए तो पांच छात्रों पर एक शिक्षक नियुक्त थे।
तीर्थ यात्री के रूप में पूर्वी एशिया से आए भिक्षुओं तथा अन्य इतिहासकारों के लिखित अभिलेखों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम भी काफी समृद्ध था। इनमें बुद्धिज्म का महायान, वेद, तर्क शास्त्र, संस्कृत व्याकरण, आयुर्वेद, सांख्य के अलावा शिक्षा के सभी क्षेत्र के विषयों का अध्ययन समाहित था।
तीन महीने तक धूं-धूं कर जलता रहा नालंदा!
लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में विश्व का पथ प्रदर्शित करने वाले इस विश्वविद्यालय को एक विदेशी आक्रांता की नजर लग गई। वह आक्रांता कोई और नहीं बल्कि तुर्की से आया मुसलमान हमलावर बख्तियार खिलजी ही था। तुर्क से आए मुसलिम हमलावर को ही माम्लुक भी कहा जाता था। बख्तियार खिलजी की अगुवाई में मुसलमान हमलावरों ने सन 1193 ईस्वी में इस विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया। नालंदा विश्वविद्यालय परिसर स्थित पुस्तकालय इतना बड़ा था कि उसमें 90 लाख पांडुलिपियां रखी हुई थी। एक प्रकार से वह समग्र ज्ञान का खजाना था। नौ मंजिला विश्विद्यालय के तीन मंजिल पर तो केवल पुस्तकें और पांडुलिपियां थी। बख्तियार खिलजी ने उन सभी को आग के हवाले कर दिया। पारंपरिक तिब्बतियन स्रोत के मुताबिक यह पुस्तकालय नालंदा विश्वविद्यालय परिसर स्थित तीन बहु-मंजिला भवनों में फैला हुआ था। इनमें से एक भवन तो नौ मंजिला था, इन्हीं भवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पांडुलिपियां रखी हुई थी। कहा जाता है कि जब आतताई बख्तियार खिलजी ने इस पुस्तकालय में आग लगवाई तो यह तीन महीने तक जलता रहा।
बख्तियार खिलजी, एक क्रूर तुर्की मुसलिम आततायी।
पहले बख्तियार खिलजी अवध के एक कमांडर की सेवा में था जो बाद में प्रधान बन गया। पर्सियन इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज ने अपनी किताब ‘तबकात-ए-नासिरी’ में कुछ दशकों बाद खिलजी के कारनामों को दर्ज किया। शुरू में खिलजी को बिहार के सीमाई इलाके के दो विवादित गांव सौंपे गए। इसे एक अवसर मानकर उसने बिहार में छापा मारना शुरू कर दिया। अपने इस कारनामे के कारण उसकी पहचान बढ़ी और उसके वरिष्ठों ने उसके इस प्रयास के लिए पुरस्कार भी दिया। इससे उत्साहित होकर खिलजी ने बिहार के किले पर हमला करने का फैसला किया और लूटपाट मचाकर सफलतापूर्व उस पर आधिपत्य भी जमा लिया!
मिनहाजुद्दीन सिराज ने अपनी किताब में उसके हमले के बारे में विस्तार से लिखा हुआ है। उसने चालाकी से किले के साथ वहां के लूटे माल को भी अपने कब्जे में कर लिया। उस समय वहां के रहने वाले अधिकांश ब्राह्मण थे। खास बात ये थी कि उस समय वहां के सारे ब्राह्मण अपना सर मुंडवाकर रखते थे। खिलजी ने उन सारे ब्राह्मणों का सर ही कलम करवा दिया। नालंदा विश्वविद्यालय स्थित पुस्तकालय का जब मुसलमानों ने निरीक्षण किया तो वहां असंख्य किताबें मिलीं। मुसलमानों ने वहां के कुछ हिंदुओं को उन किताबों के बारे में जानकारी देने के लिए बुलाया गया। हो सकता है कि उन लोगों ने उन किताबों की महत्ता के बारे में बता दिया हो। इसके बाद सारे हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी।
Bakhtiyarpur Junction is named after Cruel Muslim Invader Bhatiyar Khiljee. He was the same person who destroyed Nalanda University. And unfortunately we failed to rename it. I request @NitishKumar @SushilModi @PiyushGoyal & @manojsinhabjp Ji to take cognizance of this matter pic.twitter.com/GvmVb2Pmwo
— Ashwini Upadhyay (@AshwiniBJP) June 9, 2018
बौद्ध धर्म को जड़ से उखाड़ कर तलवार के बल पर इसलाम को स्थापित करना चाहता था बख्तियार खिलजी
मिनहाजुद्दीन सिराज ने भी अपनी किताब ‘तबकात-ए-नासिरी’ में लिखा है कि हजारों भिक्षुओं को जिंदा जला दिया गया तथा हजारों भिक्षुओं का सर कलम कर दिया गया। असल में खिलजी यहां बुद्धिज्म को जड़ से उखाड़ कर तलवार के बल पर इसलाम को स्थापित करना चाहता था। कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्ताकलय में आग लगाने के बाद वह महीनों जलता रहा और वहां रखी गई पांडुलिपियों से धुआं निकलता रहा। इतना धुआं निकला कि अगल-बगल की पहाड़ियों पर बादल सा बन गया।
एक अन्य ऐतिहासिक स्रोत के मुताबिक बख्तियार खिलजी एक बार बीमार पड़ गया था। बीमारी असाध्य थी, हकीमों ने तो यहां तक कह दिया था कि उसकी बीमारी अब ठीक होने वाली नहीं है। तभी आयुर्वेद के बुद्धिस्ट विद्वान राहुल श्री भद्र ने खिलजी का उपचार किया था। खिलजी यह जानकर काफी परेशान हुआ कि एक भारतीय विद्वान और शिक्षक उसके दरबार के हकीम से ज्यादा जानता था। तभी उसने इस देश से आयुर्वेद तथा ज्ञान की सभी जड़ों को खत्म करने का फैसला किया। इसलिए उसने नालंदा के महान पुस्तकालय में आग लगवा दी और वहां रखी 90 लाख पांडुलिपियों को जला कर राख कर दिया!
नालंदा विश्वाविद्यालय के आखिरी दिन
नालंदा के अंतिम शासक शाक्य श्रीभद्र 1204 ई. में एक तिब्बतियन अनुवादक Tropu Lotsawa के निमंत्रण पर तिब्बत चला गया। 1235 ई. में जब तिब्बतियन अनुवादक Chak Lotsawa ने नालंदा विश्वाविद्यालय का दौरा किया तो पाया कि 90 वर्षीय एक शिक्षक राहुल श्रीभद्र उस ध्वस्त और लुटे हुए भग्नाशेष के बीच करीब 70 छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे थे। Chak Lotsawa के समय तुर्की के हमलावरों ने एक बार फिर हमला किया ताकि बचे छात्र भी डर के मारे वहां से भाग जाएं। इसके बावजूद बौद्ध समुदाय के लोगों ने संसाधनों के बिना भी 1400 ई.तक संघर्ष जारी रखा। 1400 ई. तक चगल राजा, जिसे नालंदा का अंतिम राजा भी कहा जाता है ने नालंदा विश्विद्यालय को संरक्षण दिया था।
URL: Bakhtiyar Khilji burnt nine lakh manuscripts at Nalanda University
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