देश आज जिस नन परफार्मिंग एसेट (एनपीए) संकट से जूझ रहा है उसके लिए जितना सरकार या भ्रष्टाचारी मंत्री जिम्मेदार है उससे कहीं कम हमारी न्याय व्यवस्था को चलाने वाला सुप्रीम कोर्ट भी नहीं है। सरकार, मंत्रियों तथा राजनेताओं पर तो देश की जनता बड़े कर्जदारों को बचाने का तोहमत लगाकर अपनी भड़ास निकाल भी लेती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर कभी किसी की निगाह नहीं जाती! आखिर उसे बचा कौन रहा है? किसकी आड़ लेकर ये कर्जदार उद्योगपति बैंकिंग व्यवस्था तथा सरकार के साथ कबड़्डी खेलकर बचते रहे हैं।
अगर गौर से देखें तो स्पष्ट दिखेगा कि ये लोग सुप्रीम कोर्ट की आड़ में ही बचते रहे हैं। क्योंकि जब कभी इन कर्जदार उद्योगपतियों के खिलाफ सरकार ठोस कदम उठाने पर आमादा होती है ये लोग अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वकीलों के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की आड़ में दुबक जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट भी ऐन मौके पर उनके पक्ष में फैसला सुनाकर उन्हें बचने का मौका दे देता है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट में बैठकर ऐसे बड़े कर्जदारों के पक्ष में फैसला देनेवालों के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठती। ऐसे में सवाल उठता है कि सरेआम बड़े कर्जदारों के पक्ष में फैसला देने वाले सवालों से परे क्यों हैं? क्या यह सही नहीं है कि देश की अदालतों में बैठे दो-ढाई सौ परिवारों ने देश, संविधान और कानून को बंधक बना रखा है?
Supreme Court stays insolvency proceedings against big ticket defaulters; effectively delays loan recovery by banks.
Not the first time Judiciary is coming to the aid of defaulters.
Not the first time defaulters have cocked a snook at banks.#India https://t.co/tpXUFXjoeM
— Kanchan Gupta (@KanchanGupta) 13 September 2018
अक्सर देखा गया है कि जब कभी बड़े कर्जदारों के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू होती है सुप्रीम कोर्ट उस पर स्टे लगा देता है। इससे बैंकों को अपना कर्ज वसूलने में परेशानी उठानी पड़ती है। साथ ही कर्ज वसूली भी प्रभावित हो जाती है। परिणाम स्वरूप एक तरफ कर्ज बढ़ता चला जाता है तो दूसरी तरफ कर्जदार निडर हो जाते हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि न्यायपालिका कर्जदारों की मदद करने के लिए आगे आई हो न ही कर्जदारों द्वारा बैंकों की अवमानना पहली बार की गई है। बड़े कर्जदारों की न्यायपालिका द्वारा मदद करना और कर्जदारों द्वारा बैंको की अवमानना का खेल अनवरत रूप से चल रहा है।
आरबीआई ने फरवरी महीने में निर्धारित समय सीमा तक कर्ज नहीं चुकाने वालों के मामले को इनसॉल्वेंसी कोर्ट भेजने का सर्कुलर जारी किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश आरएफ नरीमन तथा जज इंदू मल्होत्रा की एक पीठ ने ऐन मौके पर समय सीमा खत्म होने से कुछ घंटे पहले बिजली, चीनी, जहाजरानी और कपड़ा क्षेत्रों के कर्जदारों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया पर रोक लगाकर उन लोगों को राहत दे दी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बैंकरों का कहना है कि इस निर्णय के बाद कम से कम 14 नवंबर तक दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया नहीं शुरू की जा सकती, जब तक अगली सुनवाई नहीं निर्धारित की जाती। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन तथा इंदू मल्होत्रा की पीठ ने बैंकिंग नियामक संस्था आरबीआई को इनसॉल्वेंसी प्रोसिडंग पर यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया है। साथ ही बेंच ने अलग-अलग निचली अदालतों में इससे जुड़े सभी लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने का आदेश दिया है।
भारतीय बैंक द्वारा जारी सर्कुलर तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया पर रोक लगाने के फैसले को आप इस प्रकार परख सकते हैं कि कौन लोग किसके फैसले से नाराज और किसके फैसले से खुश हैं। आरबीआई ने कर्जदारों के खिलाफ जो सर्कुलर जारी किया था उससे बैंकर्स से लेकर कर्जदार तथा वकीलों का एक वर्ग सब नाराज थे। जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बैंकर्स से लेकर कर्जदार तक सब खुश हैं। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट किसके पक्ष में फैसला कर रहा है और क्यों? क्या सुप्रीम कोर्ट को यह पता नहीं कि कर्ज के रूप में लिए गए सारे पैसे देश की जनता के हैं?
सवाल उठता है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बैंकर्स क्यों खुश हैं? यही सवाल बैंकर्स और कर्जदारों के साथ सुप्रीम कोर्ट में बैठे कुछ लोगों के बीच साठगांठ की पोल खोलते हैं। बैंकर्स हो या कर्जदार या फिर वकील सभी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। सवाल उठता है कि आखिर क्यों? सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लाभ किसका हुआ है? सभी जानते हैं कि इस फैसले से लाभ देश को लूटने वालों का हुआ है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाती। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल नहीं खड़े किए जाते। इससे स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट आज भी सामंती मानसिकता से ग्रस्त है। भले ही सामंती व्यवस्था देश से खत्म हो गई हो लेकिन उसका स्वरूप और मानसिकता आज भी विद्यमान है, जिसका पोषक सुप्रीम कोर्ट बना बैठा है। तभी तो जिसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाते आम जनता के पक्ष में निर्णय लेना चाहिए था वे मुट्ठी भर कर्जदार उद्योगपतियों के हाथ का खिलौना बन बैठा है।
अगर गौर से देखें तो आज भी हमारी न्यायपालिका देश के दो-ढाई सौ परिवारों के बीच बंधक बनी हुई है। इन्हीं परिवारों के इशारे पर हमारी न्याय व्यवस्था संचालित है। अगर न्यायव्यवस्था को सही मायने में न्यायसंगत और देशहित में स्थापित करना है तो पूरी न्यायपालिका को नए सिरे से स्थापित करने की जरूरत है ताकि खास परिवारों की बंधक बनी न्यायपालिक स्वतंत्र होकर आम जन के हित में फैसला ले सके।
URL: Bankruptcy Code- those who favoured big bank borrowers, beyond the questions why
Keywords: Supreme Court, RBI Bankruptcy Deadline, NPA, nclt, National Company Law Tribunal, ,Insolvency and Bankruptcy Code, bad loans, सुप्रीम कोर्ट, भारतीय रिजर्व बैंक दिवालियापन की समयसीमा, एनपीए, एनएलटीटी, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल, दिवालियापन और दिवालियापन संहिता, बुरे ऋण