भारतीय सभ्यता में बुजुर्ग बच्चों का गाल थपथपा कर हमेशा से उसे प्रेरित करते रहे हैं! तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने एक महिला पत्रकार के साथ यही किया, यह वह महिला भी मानती है, लेकिन उसे उसने गाल सहलाने से जोड़ दिया। उसने यह तक कहा कि कई बार रगड़ रगड़ कर उसने अपना मुंह धोया!
आज यदि आप किसी दलित के छूने पर यह लिख दें तो आप दलित विरोधी हो जाएंगे, किसी महिला के छूने पर आप लिख दें तो महिला विरोधी हो जाएंगे और किसी अल्पसंख्यक के छूने पर आप लिख दें तो इस देश में अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षा का वीतराग शुरु हो जाएगा! लेकिन वामपंथी महिला यदि राज्यपाल के खिलाफ यह लिखे तो वह फेमिनिस्ट, प्रगतिशील, अपनी आवाज बुलंद करने वाली बन जाती है और फिर राज्यपाल को माफी भी मांगनी पड़ती है! और जब आपके नाम में ‘पुरोहित’ लगा है तो आपको वामपंथी चाल, चरित्र, चेहरा का अध्ययन करना चाहिए था! नहीं किया तो भुगतिए! उनका सबसे बड़ा हथियार ही ‘यौन’ है! इसे तो लेनिन के जमाने से सभी जानते हैं! पता नहीं संघ विचारधारा के लोग क्यों जानना या समझना नहीं चाहते?
उस वामपंथी महिला पत्रकार ने गाल पर थपकी को ‘यौन’ से जोड़ दिया और भारतीय सभ्यता पर हमेशा से हमलावर वामपंथी व अंग्रेजी मीडिया ने स्लो मोशन में उसे दिखा-दिखा और बोल-बोल कर गाल छूना, गाल सहलाना, sexual harassment आदि साबित कर दिया! स्लो मोशन की जगह सामान्य वीडियो में देखिए तो साफ पता चलता है कि उन्होंने हल्के से गाल पर थपकी देकर उस महिला को एक बच्चे की तरह पुचकारा और प्रेरित किया है।
Washed my face several times. Still not able to get rid of it. So agitated and angered Mr Governor Banwarilal Purohit. It might be an act of appreciation by you and grandfatherly attitude. But to me you are wrong.
— Lakshmi Subramanian (@lakhinathan) April 17, 2018
वामपंथी पत्रिका ‘The week’ की वह महिला पत्रकार लक्ष्मी सुब्रहमण्यम खुद अपने पोस्ट में लिखती है- “राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से मैं काफी गुस्से में हूं। हो सकता है कि यह उनके लिए प्रोत्साहन और दादाजी जैसा रवैया हो, लेकिन मेरे लिए गलत है।” वह लिखती है-“मैंने अपना चेहरा कई बार धोया, लेकिन मैं इस भाव से छुटकारा नहीं पा रही। यह अव्यवहारिक रवैया है। किसी भी अनजान को उसकी सहमति के बिना छूना, खासतौर से महिला को, यह गलत है।”
तमिलनाडु की विपक्षी दल डीएमके प्रमुख करुणानिधि की 2जी वाली बेटी कनिमोझी लिखती है- “अगर संदेह नहीं भी किया जाए तब भी संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति को इसकी मर्यादा समझनी चाहिए। एक महिला पत्रकार को छू कर गरिमा का परिचय नहीं दिया जा सकता है।”
यानी महिला पत्रकार लक्ष्मी सुब्रहमण्यम और इस पर राजनीति कर रही डीएमके की महिला नेता भी यह मानती है कि राज्यपाल का रवैया गलत नहीं था, लेकिन उन्हें नहीं करना चाहिए था! यहां तक उन दोनों का कहना ठीक है। राज्यपाल को उसका गाल नहीं छूना चाहिए था। लेकिन जिस तरह इसे आगे बढ़ाते हुए इन दोनों महिलाओं ने इसे ‘यौन’ रूप दिया और स्लो मोशन में चला-चला कर वामपंथी व अंग्रेजी मीडिया ने इसके विमर्श को ‘यौन शोषण’ बनाने का प्रयास किया, वह घृणित है।
लेकिन यदि वामपंथियों की लड़ाई की तकनीक, उनकी शब्दावली और उनके व्यवहार का अध्ययन आपने किया है, तो आप समझ जाएंगे कि दूसरी विचारधारा के व्यक्ति को कुंठा से भरने, उसे समाज से तिरस्कृत कराने, झटपट प्रसिद्धि पाने व अपने हिसाब से विमर्श खड़ा करने और खुद को पीडि़त दिखाने के लिए ‘यौन’ इनका सबसे बड़ा हथियार है!
कठुआ रेप केस में देखिए:- डोगरा हिंदू समाज, उनके कुलदेवता, उनके मंदिर को अपमानित कर रोहिंग्याओं के प्रति उनके विरोध को कम करने और रोहिंग्याओं को बसाने हेतु केंद्र सरकार व सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने के लिए इन्होंने एक मासूम बच्ची के बलात्कार का जम्मू से लेकर दिल्ली तक फायदा उठाया और उसका उपयोग किया? वर्ना आज तक किसी अन्य मामले में न तो कोई पीडि़ता का नाम जानता था और न ही उसका धर्म। इन्होंने पीडि़ता को मुसलिम बच्ची और आरोपियों को हिंदू के रूप में चित्रित कर दिया। आरोपियों की ओर से सीबीआई जांच की मांग की जा रही है, लेकिन सीबीआई जांच से इनकार कर ये प्रगतिशील बने हुए हैं! न्याय का सारा सिद्धांत दम तोड़ रहा है, लेकिन इनका झूठा विमर्श ही मुख्य विमर्श बन गया है।अब मुसलिम रोहिंग्या वहां बसेंगे भी और हिंदू का प्रतिरोध भी डर के मारे कम हो जाएगा। और यह सब ‘यौन’ का इस्तेमाल कर किया गया है!
देखिए न पूर्व में संघ के कार्यकर्ता रह चुके हमारे माननीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदजी हों या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी वे भी उसी विमर्श पर बोलते हैं, जिस पर वामपंथी हल्ला मचाते हैं! कठुआ पर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री दोनों बोल गये, नकली दलित रोहित वेमुला पर भी इन्होंने बोला- लेकिन आसाम, बिहार आदि में हुए मासूमों से रेप, अन्य जगहों पर हुए दलितों की हत्या आदि पर कौन बोलेगा?
त्रिपुरा या केरल जीत लेने से वामपंथ नहीं हारेगा, वामपंथ विमर्श को बदलने से हारेगा, जिसके लिए आप लोगों को उनकी कार्यशैली, शब्दावली और व्यवहार को समझने में अभी दशकों लगेंगे! अभी तो आप केवल उनके विमर्श पर ही प्रतिक्रिया दीजिए, उनके विमर्श के ही जाल में फंसिए! इसीलिए तो वो संघी, भाजपाई, राष्ट्रवादी, हिंदूवादी-सभी को प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी कहते हैं! वो जानते हैं, विमर्श पैदा करना आपके वश में नहीं, उनके विमर्श पर केवल प्रतिक्रिया देना और उन्हें न समझते हुए उन्हें नये-नये विशर्म का विषय देना ही आपका काम है!
सोवियत संघ में कम्युनिस्ट क्रांति के बाद दुनिया भर में ‘हनी ट्रैप’ का जाल बिछाया गया। संदीप देव की पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ में भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन और रूस में भारत के तत्कालीन राजदूत को किस तरह से ‘यौन’ का उपयोग कर अपना हित साधा गया, इसका उल्लेख सबूतों के साथ किया गया है।
इसलिए India speaks daily का मानना है कि आप वामपंथी जमात, वामपंथी महिलाएं और वामपंथी मीडिया के विमर्श से अनजान हैं तो बेवजह कुछ ऐसा मत कीजिए, जिस कारण आपको शर्मिंदगी उठानी पड़े, आप बार-बार माफी मांगते फिरें और वो पूरी दुनिया में हिंदू और हिंदुस्तान को बदनाम करने के लिए झूठे विमर्श चलाते रहें। राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित यदि वामपंथी विमर्श से परिचित होते तो आज उन्हें क्षमा नहीं मांगना पड़ता। राज्यपालजी आप भले ही दादाजी की भूमिका में हों, वामपंथियों को ‘यौन’ के मैदान में खेलने का अवसर आपने दे दिया है। आप माफी मांग रहे हैं, और वह महिला पत्रकार कह रही है कि ‘मैं इसे स्वीकार करती हूं, लेकिन आपकी मंशा पर अभी भी शक है।’ और यकीन मानिए यह शक तब तक रहेगा जब तक कि आपकी पूरी इमेज को यह ध्वस्त न कर दें! यही वामपंथ का छल, छद्म और वैचारिक युद्ध का तरीका है।
Your excellency I accept your apology even though I am not convinced about your contention that you did it appreciate a question I asked https://t.co/NNs13wNqNE
— Lakshmi Subramanian (@lakhinathan) April 18, 2018
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