कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के प्रवक्ता की तरह व्यवहार करने वाले न्यूज चैनलों की सामत आ गयी है। लोगों का गुस्सा इन न्यूज चैनलों पर फूट पड़ा है। वहीं राष्ट्रवादी पत्रकारिता और हिंदू धर्म को सही परिप्रेक्ष्य में पेश करने वाले न्यूज चैनल लगातार नंबर वन की रेस में आगे बढ़ रहे हैं। यह संकेत है कि ‘पेटिकोट’ और ‘पीडी’ पत्रकारिता के दिन लद चुके हैं। और यह संकेत राजनीतिक पार्टियों के लिए भी है कि 2019 में जनता सेक्यूलरिज्म का भांग पीने को तैयार नहीं है। वह राष्ट्र के साथ है, और जो राष्ट्र को आगे लेकर जाएगा, उसे ही जनता का समर्थन मिलेगा।
BARC द्वारा टीआरपी की रेटिंग के आधार पर लगातार आ रहे परिणाम दिखाते हैं कि हिंदी में जी न्यूज सबसे आगे है। वहीं आजतक जैसा न्यूज चैनल लगातार पिछड़ रहा है। वह आजतक जो हमेशा पहले नंबर पर रहता था और उसके व दूसरे नंबर के चैनल के बीच 4-5 अंकों का फासला रहता था, आज वह लगातार पिछड़ रहा है। आजतक का पूरा टोन कांग्रेसी है। आजतक को संचालित करने वाले ग्रुप के मालिक अरुण पुरी ने सोनिया गांधी की चापलूसी की पराकाष्ठा करते हुए उन्हें अपने एक कार्यक्रम में भारत माता नहीं कहा, बांकी सब कह दिया था। उसके बाद से ही आजतक की रेटिंग लगातार गिर रही है।
गुजरात चुनाव हो या कर्नाटक चुनाव, जनता ने साफ-साफ अरुणपुरी और ग्रुप के संपादक राहुल कंवल को कांग्रेस के नेताओं के साथ गुपचुप बैठक करते हुए देखा है। यही नहीं, हार्दिक पटेल की सभा में अरुणपुरी और राहुल कंवल देखे जा चुके हैं। हर चुनाव में आजतक कांग्रेस का साफ-साफ न केवल पक्ष लेता है, बल्कि कर्नाटक चुनाव में तो एग्जिट पोल ही कांग्रेस के पक्ष में कर दिया था और उसे बहुमत दिखा दिया था, जबकि परिणाम आने पर कांग्रेस 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी। आज हिंदू धर्म और भारत को एक राष्ट्र के रूप में न मानने वाल हर पत्रकार आजतक और इंडिया टुडे के बैनल तले जमा है।
इसी तरह एबीपी काम्युनिस्ट कार्डधारी अविक सरकार के आनंद बाजार पत्रिका का न्यूज चैनल है। आज यह सातवें नंबर पर है। इससे उपर वह आज भी नहीं सकता। हिंदुओं का विरोध इस चैनल का मुख्य टोन है। बेवजह मोदी सरकार का विरोध इस चैनल का मुख्य एजेंडा है। मुसलिम व ईसाई तुष्टिकरण और कम्युनिस्टों का एजेंडा चलाना ही इस चैनल का मुख्य मकसद है। बेवजह मोदी सरकार की आलोचना और उसके विरोध में फर्जी सर्वे आदि चलाना ही इसका धंधा है। आजतक के बाद हर मोदी विरोधी पत्रकारों की छतरी यही चैनल है। इसकी दुर्गति बता रही है कि जनता ने इसे किस तरह से लिया है। हिंदू धर्म, राष्ट्र और मोदी सरकार की सबसे बड़ी विरोधी एनडीटीवी तो जैसे वजूद की लड़ाई लड़ रहा है।
दूसरी तरफ हिंदी में जी न्यूज ने जबरदस्त तरीके से अपने आप को उभारा है। जेएनूय मामला हो या फिर कठुआ मामला, ग्राउंड रिपोर्टिंग केवल और केवल जीन्यूज ने ही किया है। इसकी वजह से कम्युनिस्ट और कांग्रेसियों का हर एजेंडा ध्वस्त करने में जी न्यूज कामयाब रहा है। जी न्यूज से कांग्रेसी और कम्युनिस्ट इतने नफरत करते हैं कि इसे ‘छी’ न्यूज कहते हैं। लेकिन दूसरी तरफ देश की आम जनता का प्यार इसे लगातार मिल रहा है। नौ बजे के DNA शो के आसपास भी किसी न्यूज चैनल की रेटिंग नहीं है। रजत शर्मा का इंडिया न्यूज उपर-नीचे होता रहता है। रजत शर्मा ने जिस तरह से कठुआ मामला, नोटबंदी, जीएसटी आदि पर फेक न्यूज और नरेशन पेश किया उसका प्रभाव दिख रहा है और जनता उसे भी लगातार नकार रही है।
अंग्रेजी में अर्णव गोस्वामी के रिपब्लिक न्यूज चैनल ने उस मिथक को ध्वस्त कर दिया है कि अंग्रेजी चैनल हिंदी के दर्शक नहीं देखते। नेशन फर्स्ट का नारा देने वाले रिपब्लिक का पूरा टोन राष्ट्रवादी है और यही वजह है कि भाषा के बैरियर को तोड़ते हुए देश की जनता उसे पसंद कर रही है। दूसरे नंबर पर टाइम्स ग्रुप का टाइम्स नाउ चैनल है। ग्रुप के अन्य अखबारों या चैनलों के विपरीत इस अंग्रेजी न्यूज चैनल का टोन भी राष्ट्रवादी और हिंदू धर्म के प्रति है इसलिए उसकी रेटिंग भी जबरदस्त है। इसके मुकाबले आजतक का इंडिया टुडे और एनडीटीवी घिसट-घिसट कर चल रहे हैं।
एग्जिट और सैंपल सर्वे करने वाले इन न्यूज चैनलों को जनता के मूड को समझ जाना चाहिए। अभी भी देर नहीं हुई है। राष्ट्र और हिंदू धर्म को गाली देना बंद करो, वर्ना जनता तुम्हारे चैनलों पर ताले लटका देगी। यह सोशल मीडिया का युग है। तुम्हारी एकतरफा रिपोर्टिंग और कांग्रेस का गुणगान सुनने को जनता अब तैयार नहीं है। सुधरो या मिटो, जनता का बस एक ही पैगाम है!
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