इसमें तो कोई दो राय नहीं कि भारतीय न्यायपालिका में अभिजात वर्ग की बहुलता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि न्यायधीशों के ‘कर्म’ उनके बच्चों के प्रतिफल के रूप में बाहर आ रहा है। इसे न्यायधीश यह तो कृष्ण के ‘कर्म-चक्र’ के रूप में समझ लें या न्यूटन की प्रत्येक ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ के रूप में। सच यह है कि आज 40 प्रतिशत जजों के बच्चे मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है। ऐसा ही एक दावा लखनऊ निवासी पुष्कर अवस्थी ने अपने एक ट्वीट में किया है। हालाँकि इंडिया स्पीक्स किसी भी तरह इस दावे की सत्यता की पुष्टी नहीं करता, लेकिन यदि यह सच है तो सभी ‘मी-लॉर्ड्स’ को अपने कर्मो का निरीक्षण अवश्य करने की जरुरत है।
हिंदी में एक कहावत है ‘बढ़े पूत पिता के धर्मे, खेती उपजे अपने कर्मे’। जजों के पारिवारिक स्थिति तथा इस कहावत को मिलाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि अपनी कर्मो के कारण ही आज उन्हें यह परिणाम भुगतना पड़ रहा है। इस कहावत का अर्थ है कि पुत्र का मंगल पिता के धर्म के आधार पर होता है और खेत में अच्छी फसल अपनी मेहनत से उपजती है। कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म चक्र कई पीढ़ियों तक पीछा करता है!
Indian Judiciary is made up of Children of Big Incestous Family. Study shows 40% of THEM suffers either autosomal recessive disorders, congenital physical malformations, or severe intellectual deficits. 14 % having mild mental disabilities.
Judgments Reflects That Exactly. pic.twitter.com/kPb3okqwjD
— Pushker Awasthi (@pushkker) October 1, 2018
पुष्कर अवस्थी के ट्वीट के मुताबिक देश के 40 प्रतिशत जजों के बच्चे या तो ऑटोसमल रिसेसिव विकार से ग्रसित हैं या या जन्मजात शारीरिक विकृतियां या गंभीर बौद्धिक विकृति से पीड़ित है। वहीं 14 प्रतिशत हल्की मानसिक विकलांगता से ग्रसित है। इससे भारतीय मान्यताएं भी पुष्ट होती हैं, जिसके आधार पर कहा जाता है कि कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है, चाहे आप भोगें या आपकी आने वाली पीढ़ी।
हमारी न्यायव्यवस्था का आधार सूत्र ‘भले ही सौ अपराधी छूट जाए लेकिन एक निर्दोष को सजा न हो पाए है लेकिन कुछ जजों ने आज न्यापालिका की जो स्थिति बना रखी है उसकी वजह से कई बार न्याय दम तोड़ता हुआ प्रतीत होता है। किसी मामले में एक व्यक्ति बीस साल तक अदालत में अपनी बारी का इंतज़ार करता है तो किसी मामले में व्यक्ति विशेष के लिए रात के दो बजे और सुबह छ बजे भी अदालत खुल जाता है! कोई जमानत के इंतज़ार में वर्षों से जेल में पड़ा है, तो किसी को घर में ही सारी सुविधाओं के साथ रहने का आदेश सुना दिया जाता है! तभी तो कहा गया है कि ‘निर्बल को न सताइये जाकि मोटी हाय, मुई खाल की सांस से लौह भसम हुई जाए’।
देश के 40 प्रतिशत जजों के बच्चे शारीरिक विकृतियों के 14 प्रतिशत मानसिक विकलांगता के शिकार हैं तो ये ऊपर वाले की बे-आवाज लाठी का ही परिणाम माना जा सकता है।
Keywords: Children of 40 percent of the judges suffer mental and physical disorder
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