यूपीए सरकार के पूर्व वित्त व गृह मंत्री रहे पी.चिदंबरम ने नोटबंदी पर सवाल उठाते हुए इसे देश का सबसे बड़ा घोटाला ठहरा दिया! यह अलग बात है कि एयरसेल-मैक्सिस डील से लेकर एनडीटीवी हवाला कांड तक वह खुद या उनका बेटा कार्तिक चिदंबरम घोटाले के आरोपों से घिरे हुए हैं! यही नहीं, एक सांसद के रूप में देश की आम जनता की मेहनत से सैलरी लेते हुए वह अपनी पार्टी और अपने क्लाइंट के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा भी लड़ते रहे हैं, जो सीधे ऑफिस एंड प्रोफिट के अंतर्गत देश की जनता से धोखे की श्रेणी में आता है! अर्थात् जनता से सांसद के रूप में सैलरी और कांग्रेस के घपले-घोटाले को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में वकालत! यही हालत कांग्रेस के अन्य सांसद वकील जैसे कपिल सिब्बल आदि का भी है। सुप्रीम कोर्ट अच्छे से जानती है कि वहां बहस कर रहे वकील सांसद के रूप में जनता की गाढी कमाई से सैलरी लेते हैं, इसके बावजूद इन्हें वकालत करने की इजाजत कैसे देती है? यह तो कोई संविधान विशेषज्ञ ही बता सकता है!
नोटबंदी से बेचैन कांग्रेस पार्टी ने अपने सभी धुरंधर वकीलों, मसलन- कपिल सिब्बल, पी.चिदंबरम, सलमान खुर्शीद, अभिषेक मनु सिंघवी, विवेक तनखा, के.टी.एस.तुलसी जैसे धुरंधर वकीलों की पूरी टीम को सुप्रीम कोर्ट में उतार दिया है। इन वकीलों में कई कांग्रेस के सांसद हैं तो कई पूर्व में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। ये सांसद वकील सुप्रीम कोर्ट में लगातार यही बहस कर रहे हैं कि विमुद्रीकरण को रद्द कर दिया जाए!
सुप्रीम कोर्ट में ये विमुद्रीकरण को गरीबों और किसानों के लिए नुकसानदायक बताते हुए बहस करते और इसे रद्द करने की मांग करते हैं, लेकिन ताज्जुब देखिए कि जिन 23 जनहित याचिका के पक्ष में ये अदालत में दलील दे रहे हैं, उनमें से एक भी याचिका गरीबों या किसानों की ओर से इन वकीलों ने दायर नहीं किया है! सारी याचिका नेता, राजनीतिक पार्टी या जिला सहकारिता बैंक की ओर से दायर किया गया है, जिनसे इन सांसद वकीलों का निजी हित जुड़ा है! इसलिए जनता के हित की बात केवल मीडिया के लिए की जा रही है, वास्तव में इसमें इनका निजी हित छुपा है!
अब देखिए इनमें से जो सांसद वकील हैं, उन्हें विमुद्रीकरण के विरोध में संसद के अंदर बहस करना चाहिए ताकि जिस बात के लिए ये जनता की मेहनत की कमाई से सैलरी ले रहे हैं, उसे ईमानदारी से निभाएं! लेकिन जनता के प्रति ऐहसान फरामोश ये नेता संसद को ठप कर ये रोज जनता की जेब से 9 करोड़ रुपए अतिरिक्त रूप से बर्बाद कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट में बहस कर अपनी जेब एक्स्ट्रा तौर पर भर रहे हैं! इन वकीलों की फीस हजारों-लाखों में नहीं, बल्कि करोड़ों में है। सुप्रीम कोर्ट में खड़े होने के लिए ये लाखों-करोड़ों लेते हैं और जिन जनता की बात टीवी के कैमरे पर करते हैं, उसकी जेब ये प्रतिदिन काटने में जुटे रहते हैं। इनकी सैलरी के साथ-साथ संसद में बहस नहीं होने के कारण रोजाना बर्बाद हो रहा 9 करोड़ रुपए भी जनता की जेब से ही आता है। यह ये सांसद वकील भी जानते हैं और सुप्रीम कोर्ट भी, लेकिन शायद किसी को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता!
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय के अनुसार, वो शीघ्र इसके खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करने जा रहे हैं कि जब कार्यपालिका व न्यायपालिका से जुड़े लोग नौकरी पर रहते हुए वकालत नहीं कर सकते तो विधायिका के लोग कैसे कर रहे हैं? अश्विनी उपाध्याय कहते हैं, कार्यपालिका और न्यायपालिका का सदस्य नौकरी के दौरान देश की किसी भी अदालत में वकालत नहीं कर सकता है लेकिन जनता के पैसे से मोटी तनखाह लेने वाले सिबल-सिंघवी-चितम्बरम-तुलसी-तनखा-जेठमलानी जैसे सांसद जनता की सेवा करने की बजाय मोटी फीस लेकर भ्रष्टाचारियों-अपराधियों-बलात्कारियों-अलगाववादियों और कालाधन रखने वालों को जेल से छुड़ाते हैं! जनप्रतिनिधियों के वकालत करने पर तत्काल प्रतिबंध लगना चाहिए!
बसे तीनों चोर है