मशहूर समाजशास्त्री विल्फ्रेडो पेरेटो ने अपनी ‘लॉयन एंड फॉक्स’ थ्योरी में लोमड़ी चरित्र की जो सबसे बड़ी पहचान बताई है, वह यह है कि वह लोकतंत्र और न्यातंत्र को छल से हथियाना चाहती है। चुनाव-दर-चुनाव हार रही राहुल गांधी की कांग्रेस सत्ता पाने के लिए ‘लोमड़ी’ व्यवहार पर उतरी हुई है और लोकतंत्र व न्यायतंत्र का अपहरण करने की कोशिश कर रही है। लोकतंत्र का अपहरण करने के लिए फेक न्यूज और फेक विमर्श का सहारा लिया जा रहा है, तो न्यायतंत्र का अपहरण करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश-CJI की विश्वसनीयता को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ लाया गया महाभियोग कांग्रेस द्वारा ‘न्याय तंत्र’ का अपहरण करने का कुत्सित प्रयास है।
इस महाभियोग में कांग्रेस के सात दलों के 60 सांसदों ने दस्तखत किया है। कांग्रेस के इन साथी दलों में वह मुसलिम लीग भी है, जो भारत विभाजन और 10 लाख लोगों के नरसंहार का दोषी है। इसमें माकपा और भाजपा के रूप में वह कम्युनिस्ट पार्टियां भी शामिल हैं, जिनके संविधान में 1970 के दशक तक लिखा था कि वह भारत के 16 से 17 टुकड़े करना चाहती है। इसमें तुष्टिकरण और मुसलिम परस्त सपा-बसपा भी शामिल हैं। ये ऐसी पार्टियां हैं, जिनका मूल चरित्र ही लोकतंत्र के खिलाफ और वंशवाद, अवसरवाद, तानाशाही एवं मुसलिम तुष्टिकरण पर टिका है।
शरद पवार की रांकपा, देश भर में किसानों के आत्महत्या के मूल में है। देश के सबसे अधिक समय तक कृषि मंत्री रहने वाले शरद पवार के समय सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्या की, बिहार-उप्र की सारी चीनी मिलें इनके समय ही बंद हुई, एयर इंडिया का बंटाधारा इसी पार्टी से आने वाले प्रफुल्ल पटेल के नागर विमानन मंत्री रहते हुए हुआ। यानी हर अवसरवादी दल और सांसद न्यायतंत्र को कुचलने के प्रयास में जुटा है ताकि ‘लोमड़ी’ की तरह एक चुनी हुई सरकार को गिरा कर लोकतंत्र का और एक मुख्य न्यायाधीश को हटाकर ‘न्यायतंत्र’ का अपहरण किया जा सके।
महाभियोग लाने वाले नेताओं का चरित्र भी देखिए
मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रस्ताव लेकर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु के पास पहुंचने वाले नेताओं में- कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, केटीएस तुलसी, अभिषेक मनु सिंघवी, राकांपा की वंदना चौहान, सीपीआई के डी.राजा शमिल थे। गुलाम नबी आजाद पूरी तरह से गांधी परिवार का गुलाम है। कश्मीर में मुख्यमंत्री रहते हिंदुओं पर हुए अत्याचार के लिए यह भी बराबर का दोषी है। आज कठुआ रेप कांड में इसके ही पोलिंग एजेंट द्वारा दंगा भड़काने की योजना का खुलासा हुआ है।
Kapil Sibal and Congress exposed on Ram Temple
सांसद के रूप में जनता के पैसे से सैलरी लेने वाले और पूरी समय सुप्रीम कोर्ट में बैठकर ‘कोर्ट फिक्स’ करने की कोशिश करने वाले कपिल सिब्बल, केटीएस तुलसी और अभिषेक मनु सिंघवी सहित हर उस वकील की दुकान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के समय बंद हो रही है, जिनकी पहचान ‘कोर्ट फिक्सर’ के रूप में अदालत की चारदीवारी के भीतर है। इसमें वामपंथी प्रशांत भूषण, इंदिरा जय सिंह, राजीव धवन, दुष्यंत दवे, पल्लव सिसोदिया, वी, गिरी, पीवी सुरेंद्रनाथ, कुलदीप राय जैसे वकील भी शामिल हैं।
लुटियंस चक्रव्यूह के गिरफ्त में है न्यायपालिका
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने तो प्रशांत भूषण को एक तरह से स्पष्ट रूप से ‘कोर्ट फिक्सर’ कहा ही था। वहीं अन्य वकीलों को पीआईएल की आड़ में अपनी राजनीतिक और बिजनस की दुकान चलाने वाला बताया और कहा कि जनहित याचिका का ये लोग दुरुपयोग कर रहे हैं!
इन वकीलों में शामिल कांग्रेसी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को एक सीडी में देश की जनता ने सरेआम न्याय के मंदिर को दूषित करते देखा है। आरोप है कि एक महिला वकील के साथ चेंबर में ही हम बिस्तर अभिषेक मनु सिंघवी उसे जज बनाने का लालच दिया था। यानी कुछ वकील अदालत में न केवल फैसले को फिक्स करते थे, बल्कि जज को भी फिक्स करते पाए गये!
Reality of Supreme Court Judges & congress party Explosed
जज लोया मामले में जज फिक्स करने की कोशिश पर मुख्य न्यायाधीश ने लगाया था लगाम!
वामपंथी पत्रिका ‘कारवां’ ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर की सुनवाई कर रहे जज लोया की हार्टअटैक से हुई मौत को तीन साल बाद एक फर्जी रिपोर्ट लिखकर इसे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा हत्या का षड़यंत्र बता दिया, जिसे वामपंथी पत्रकार व मीडिया हाउस- सिद्धार्थ वरदराजन व उसका ‘द वायर’, रवीश कुमार व उसका एनडीटीवी एवं अन्य अंग्रेजी अखबारों ने आगे बढ़ाया। इसके बाद कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने इन सभी फर्जी पत्रकारों के ट्वीट को री-ट्वीट कर और मीडिया में बयान दे-दे कर एक माहौल बनाने का प्रयास किया, फिर अपनी ही पार्टी के तहसीन पूनावाला एवं अन्य से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करा कर इस पर एसआईटी जांच की मांग करवा दी।
Once again Congress proof that he is anti hindu
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने इस मामले को स्वयं की खंडपीठ में ले लिया, जिसमें उनके अलावा डी.वाई.चंद्रचूड़ एवं अन्य न्यायाधीश थे। कांग्रेस की ओर से कोर्ट फिक्स करने वाले वकील फिक्सर इसे अपनी पसंद की कोर्ट में ट्रांसफर कराना चाहते थे। इसका खुलासा तब हुआ जब प्रशांत भूषण अदालत के अंदर ही मुख्य न्यायाधीश पर चिल्लाने लगे। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने अपने निर्णय में प्रशांत भूषण को ‘कोर्ट फिक्सर’ लिख दिया।
इसके बाद कांग्रेस के पे-रोल पर बैठे इन वकीलों, कुछ बड़े पत्रकारों और कम्युनिस्ट पार्टी ने एक साजिश रचा और मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीश- जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर को जनवरी 2018 में प्रेस के सामने पेश कर दिया। इनमें से एक को प्रेसवार्ता के आसपास कम्युनिस्ट नेता डी. राजा के साथ कई न्यूज चैनल के कैमरों ने पकड़ा था।
Prashant Bhushan and gang captured indian judiciary
इन चारों जस्टिस का आरोप था कि मुख्य न्यायाधीश केसों का बंटवारा ठीक तरीके से नहीं कर रहे हैं! जबकि संवैधानिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बीच केसों का बंटवारा करने का पूरा अधिकार मुख्य न्यायाधीश को ही है। उन्हें ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ कहा जाता है। इससे जनता में यह संदेश गया कि यह चारों जस्टिस अपनी पसंद का केस लेना चाहते थे, जो मुख्य न्यायाधीश ने नहीं होने दिया। और दूसरी तरफ इसे लेकर ही सुप्रीम कोर्ट के ‘कोर्ट फिक्सर’ वकीलों की जमात चिल्ला रही थी, जिससे जनता में सुप्रीम कोर्ट की गरिमा का ह्ास हुआ। एक तरह से मुख्य न्यायाधीश ने दशकों से सुप्रीम कोर्ट के अंदर चल रहे वकील-जस्टिस के बीच केस फिक्सिंग के खेल पर रोक लगा दिया, जिससे कांग्रेस बौखला उठी।
जज लोया के फैसले ने कांग्रेस की बौखलाहट को सनक में तब्दील कर दिया!
कल यानी 19 अप्रैल को जज लोया पर आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने कांग्रेस की बौखलाहट को सनक में तब्दील कर दिया। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश पर दबाव बनाने के लिए जस्टिस चेलामेश्वर ने उस प्रेस वार्ता के बाद भी टुडे ग्रुप के पत्रकार करण थापर को साक्षात्कार दिया, चीफ जस्टिस को पत्र लिखा, जो मीडिया में लीक किया गया और बयान भी जारी किया, जिससे देश की जनता ने यही समझा कि आखिर एक जस्टिस खास केस लेने के लिए क्यों सुप्रीम कोर्ट की गरिमा से खेल रहे हैं? कुछ अंग्रेजी व वामपंथी पत्रकारों, राहुल गांधी व कांग्रेस पार्टी व कम्युनिस्टों के अलावा इन न्यायधीशों को किसी ने भी सपोर्ट नहीं किया। माना गया कि इसके पीछे भी कांग्रेस ही है। जब जज लोया के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और यह तक कह दिया कि न्यायपालिका की गरिमा को गिराने और जनहित याचिका को अपना टूल बनाने में कुछ लोग लगे हुए हैं तो कांग्रेस पूरी तरह से पागलपन का शिकार हो गयी और अगले ही दिन उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लेकर उसके नेता उपराष्ट्रपति के पास पहुंच गये।
राम मंदिर पर आने वाले निर्णय पर भी डर रही है कांग्रेस
राम मंदिर की सुनवाई भी मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ही कर रही है। कांग्रेस ने अपने वकील कपिल सिब्बल के जरिए सुप्रीम कोर्ट के अंदर यह कहवाया कि इस मामले को 2019 के चुनाव के बाद सुना जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने पोलिटिकल गोल बाहर सेट कीजिए। यह केवल टाइटल सूट है। इस सुनवाई का चुनाव से कोई संबंध नहीं है। लेकिन जो कांग्रेस हमेशा से राम के अस्तित्व को नकारती रही हो, उसके लिए तो यह चुनावी मुद्दा है ही कि कहीं निर्णय हिंदुओं के पक्ष में आ गया तो भाजपा को फायदा हो जाएगा। इसलिए कांग्रेस राम मंदिर की सुनवाई से भी मुख्य न्यायाधीश को हटाना चाहती है, जिसमें वह सफल नहीं हो पा रही है। दो अक्टूबर 2018 तक मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल है और उम्मीद है कि तब तक वह राम मंदिर पर निर्णय सुना देंगे। कांग्रेस इसीलिए डरी हुई है। और वह दो अक्टूबर से पहले मुख्य न्यायधीश को हटाना चाहती है। इसके अलावा उसकी कोशिश है कि मुख्य न्यायाधीश की गरिमा को इतना उछाला जाए कि या तो वह त्यागपत्र दे दें या फिर जनता के बीच उनकी साख ही न रहे। कांग्रेस इसके जरिए अपने मुसलिम मतदाताओं को यह संदेश भी देना चाहती है कि, ‘देखो हमने बाबरी के पक्ष में राम मंदिर निर्माण को रोकने की पूरी कोशिश की, इसलिए वोट कांग्रेस को ही देना।’ कांग्रेस ने यही सब सोच कर महाभियोग का दांव खेला है।
मोदी सररकार को क्या करना चाहिए?
महाभियोग के इस प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति खारिज कर सकते हैं। मोदी सरकार को चाहिए कि लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभपति के नाते उपराष्ट्रपति से अनुरोध करे कि वह इस प्रस्ताव को खारिज कर दें ताकि भारतीय लोकतंत्र और न्यायतंत्र की गरिमा बनी रही। उपराष्ट्रपति स्व-विवेक से भी इसे खारिज कर सकते हैं। यदि ऐसा नहीं होता है तो मोदी सरकार व भाजपा के प्रति जनता का जो भरोसा है वह टूट जाएगा। अरसे बाद हिंदु जनता के मन में राम मंदिर की आस जगी है, यदि यह पूरा नहीं हुआ तो मोदी सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है और कांग्रेस को इसका लाभ होगा। इसलिए मुख्य न्यायाधीश व सुप्रीम कोर्ट की गरिमा की रक्षा के लिए मुख्य न्यायाधीश का पूरा कार्यकाल जरूरी है। इस महाभियोग का रद्द होना ही लोकतंत्र व न्यायतंत्र के लिए शुभ होगा।
कैसे चलती है महाभियोग की प्रक्रिया?
संविधान के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है। यह प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष में से किसी एक को सौंपना पड़ता है। यहां कांग्रेस ने राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु को प्रस्ताव सौंपा है।
अब राज्यसभा के सभापति पर यह निर्भर करता है कि वह प्रस्ताव को रद्द करे या स्वीकार करें। अगर राज्यसभा के सभापति प्रस्ताव मंजूर कर लेते हैं तो आरोप की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट का एक न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होता है।
अगर समिति मुख्य न्यायाधीश को दोषी पाती है तो जिस सदन में प्रस्ताव दिया गया है, वहां इस रिपोर्ट को पेश किया जाएगा। इस मामले में यह राज्यसभा में पेश किया जाएगा। यह रिपोर्ट लोकसभा को भी भेजी जाएगी। जांच रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से समर्थन मिलने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए चीफ जस्टिस को हटाने का आदेश दे सकते हैं।
URL: congress to introduce impeachment motion against cji dipak misra
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