याद रखिए बच्चे अपने घरों में सुरक्षित रहते हैं, लेकिन आज के मां-बाप ने उनसे यह अधिकार भी छीन लिया है!
पति-पत्नी कार के फ्रंट सीट पर बैठे होते हैं और बेचारा छोटा बच्चा पीछे की सीट पर तन्हा टुकर-टुकर ताकता रहता है। मां-बाप मॉल, रेस्तरां, मल्टीप्लेक्स में बाहों में बाहें डाले मॉर्डटिनी का प्रदर्शन करते रहते हैं और बच्चे को बास्केट में उठाए आया पीछे-पीछे घूमती रहती है! मां-बाप मोबाइल पर मशगूल रहते हैं और बच्चा सामने से आती गाड़ी से कुचलते-कुचलते बचता है। मां-बाप को ममत्व से ज्यादा नोट कमाने की फिक्र है, इसलिए बच्चे क्रेच में पलने के लिए डाल दिये जाते हैं!
अपने संस्कार, अपनी संस्कृति वाले स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की जगह क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में पढा़ने की मानसिक जड़ता का प्रदर्शन मां-बाप स्टेटस सिंबल के रूप में खुलेआम करने लगे हैं! स्कूल में बच्चों को क्या पढ़ाया जा रहा इसकी चर्चा मां-बाप कभी नहीं करते, चर्चा करते हैं कि वो कितनी मोटी फीस भर रहे हैं ताकि स्टेटस ‘अप’ रहे! साल भर बच्चे के साथ स्कूल में क्या हो रहा है, क्या पढ़ाया जा रहा है, इससे अधिक परवाह परीक्षा में आने वाले नंबरों ने ले ली है!
काम से लौटने के बाद अपने बच्चों के लिए वक्त नहीं मिलता, लेकिन आभासी सोशल मीडिया पर अपडेट ट्वायलेट में बैठकर भी जरूरी हो गया है!
घर में रामायण-महाभारत-पंचतंत्र-हितोपदेश की कहानियां सुनाने वाली दादी-नानी कहीं गांव में तन्हा छूट गयी हैं, लेकिन शहर में सेक्यूलर स्टेटस के लिए कॉकटेल पार्टी में पति-पत्नी ज्ञान बांच रहे होते हैं कि उनके बच्चे को स्कूल में बाइबल और कुरान पढ़ाया जाता है!
90 के दशक के बाद भारत में बच्चों के समाजीकरण की पूरी प्रक्रिया समाप्त हो गयी है! इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार उपभोक्तावाद की चकाचौंध में फंसे मां-बाप हैं!
शादी में प्रेम नहीं है, बच्चे का जन्म ‘ईश्यू’ बन गया है, मां-बाप बनने की खुशी करियर की महत्वाकांक्षा में दम तोड़ रही है, अपनी स्वतंत्रता में बच्चों को अवरोध मानने की प्रवृत्ति बढ़ रही है! इसीलिए यह दुनिया बच्चों के लिए असुरक्षित होती जा रही है!