हाशिमपुरा नरसंहार के मामले में 31 साल बाद जब दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई तो यह मामला लोगों के सामने आया। ध्यान रहे सेकुलर मीडिया ने इस मामले को फैसले तक सीमित रखा है। यह नरसंहार क्यों, कब, कैसे और कहां हुआ उसके बारे में लिखने से बच रहा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इतने बड़े नरसंहार मामले में हत्या के दोषियों को सजा सुनाई है, हत्या कराने वालों के खिलाफ तो कोर्ट ने केस तक दर्ज करने की इजाजत नहीं दी।
हिंदुत्ववादी डॉक्टर सुब्रहमनियन स्वामी ने इस नरसंहार के खिलाफ राजीव गाँधी सरकार के विरोध में दिल्ली के वोट क्लब पर आमरण अनशन भी किया था। असल में राजीव गाँधी सरकार में गृहराज्यमंत्री पी.चिदंबरम को इस नरसंहार का मुख्य दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ जांच की मांग स्वामी ने उठाई थी, जो नहीं कराई गई। इसके बावजूद कांग्रेस हो, मुसलमान नेता हो या फिर मीडिया हो, स्वामी को कम्यूनल और राजीव गांधी व चिदंबरम को सेक्यूलर बताती है! यही इस देश का ‘बीमार सेक्यूलरिज्म’ है।
मुख्य बिंदु
* पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ यह दंगा सांप्रदायिकता से ज्यादा प्रशासन और मुसलिमों के बीच का था
* भाजपा नेता सुब्रमनियन स्वामी ने तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ दायर की थी याचिका
* पी चिदंबरम पर लगाया था पीएसी जवानों को मुसलिम युवाओं का नरसंहार करने का आरोप
* हाशिमपुर नरसंहार में तो 42 लोगों के मरने की पुष्टि हुई जबकि मलियाना नरसंहार में 72 लोगों को मारकर कुएं में फेंक दिया गया था
जिस वक्त यह नरसंहार हुआ उस समय केंद्र में राजीव गांधी तथा उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की ही वीर बहादुर सिंह की सरकार थी। उस समय उत्तरप्रदेश के मेरठ में दो जगह सरकार की निगरानी में पीएसी के जवानों ने हाशिमपुरा और मलियाना में मुसलिम युवकों का नरसंहार किया था। हाशिमपुरा में 42 मुसलिम युवाओं की हत्या करने की पुष्टि हुई थी जबकि मलियाना में 72 लोगों को गोलियों से भून कर कुएं में दफन कर दिया।
फरवरी 1986 में फैजाबाद कोर्ट ने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर लगे ताले खुलवाने के आदेश दिए। उस समय केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगहों पर कांग्रेस की सरकार थी। आदेश तो कोर्ट ने दिया लेकिन केंद्र और प्रदेश सरकार के खिलाफ खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का गुस्सा फूट पड़ा। आक्रोशित मुसलमानों ने सड़क पर उतर कर कई जगहों पर आगजनी की। मेरठ में कई लोगों को हत्या कर दी वहीं शहर में दुकानों और घरों में आग लगा दी। प्रशासन ने कदम उठाते हुए दंगाइयों की धर पकड़ शुरू की।
इस सिलसिले में उनके घरों की तलाशी के दौरान बड़ी मात्रा में असलहे मिले। इसी बीच 22 और 23 मई को मेरठ के पास हाशिमपुरा और मलियाना में नरसंहार की दो घटनाएं हुईं। आरोप है कि हाशिमपुरा में जहां 40 युवकों की गोली मार कर उनके शव नदी में बहा दिए गए वही मलियाना में 72 मुसलिमों की हत्या कर उनके शव कुएं में दफना दिए गए। आरोप है कि केंद्र के तत्कालीन गृह राज्यमंत्री पी चिदंबरम के आदेश पर ही पीएसी के जवानों ने दंगा को काबू करने के लिए ये कदम उठाए।
मलियाना नरसंहार का तो मामला भी दर्ज नहीं हुआ इसलिए उस मामले में तो कभी कोई कार्रवाई हुई ही नहीं, लेकिन हाशिमपुरा नरसंहार मामले की एफआईआर दर्ज हुई इसलिए यह मामले आगे बढ़ा। शुरू में इस मामले की सुनवाई गाजियाबाद कोर्ट में हुई, लेकिन बाद में इसे दिल्ली के तीन हजारी कोर्ट में स्थानान्तरित कर दिया गया। तीस हजारी कोर्ट ने साल 2015 में साक्ष्य के अभाव में सभी 19 आरोपियों को बरी कर दिया। हाशिमपुरा घटना में निर्दोष लोगों को निशाना बनाए जाने के खिलाफ अगर किसी ने मोर्चा संभाला तो वे थे भाजपा के नेता सुब्रमनियन स्वामी। लेकिन सेकुलर मीडिया ने न तो इस मामले में केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार के खिलाफ कुछ लिखा न ही सुब्रमनियन स्वामी के समर्थन में।
ये वही सेकुलर मीडिया है जो गुजरात दंगों के मामले में वश चलता तो वे बगैर सुनवाई के ही मोदी और शाह को दोषी तो ठहरा ही दिया था सूली पर भी चढ़ा चुका होता। लेकिन 84 का सिख दंगा हो या हाशिमपुरा और मलियाना का सामूहिक नरसंहार एक शब्द बोलने को तैयार नहीं। हाशिमपुर मामला भी तब उठा जब आज उस मामले में 16 लोगों को सजा सुना दी गई है। लेकिन नरसंहार हाशिमपुरा में ही नहीं बल्कि मलियाना गांव में भी हुआ था। लेकिन कभी उस नरसंहार को लेकर निष्पक्ष रिपोर्टिंग हुई ही नहीं।
ऐसा नहीं है कि देश में तथाकथित सेकुलर मीडिया अपने आकाओं के इशारों पर मुद्दे को उठाते और गिराते रहे हैं। ये सब झूठ और दुश्मनी पैदा करने के आधार पर करते हैं। ये चुनावी नफा-नुकसान के आधार पर अपनी दुकानदारी चलाते हैं। इनके लिए वही मुद्दा होता है जिससे उनके आकाओं का हित सधता हो। अगर ऐसा नहीं है तो फिर कितना बड़ा मामला क्यों न हो वे अपनी नींद खराब नहीं करते! नहीं तो क्या वजह थी कि हाशिमपुरा और मलियाना नरसंहार आज तक कभी किसी के लिए मुद्दा नही बन पाए?
जबकि इस नरसंहार में मरने वाले मुसलमान थे। मामला बिल्कुल साफ है। चूंकि जब ये नरसंहार हुए उस समय केंद्र में जहां पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सत्ता में थे वहीं उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के नेता वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री थे। दोनो जगहों पर कांग्रेस की सरकार होने की वजह से ही सेकुलर पत्रकारों ने इस मामले को तरजीह नहीं दी।
राजीव गांधी के समय ही क्यों, इससे पहले भी और उसके बाद भी, सेकुलर पत्रकार सोनिया-राहुल के कार्यकाल में भी पत्रकारिता का अपना वही सिद्धांत अपनाए बैठे है कि भला अपना और अपने आकाओं का होना चाहिए, दुनिया जाए भाड़ में। अगर देश में मुख्यधारा की पत्रकारिता इस प्रकार भेदभावपूर्ण और शिथिल रही तो फिर सोशल मीडिया को उससे आगे निकलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार इस नरसंहार के लिए तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम को दोषी ठहराते हुए उन पर मुक़दमा चलाये जाने की मांग की थी! सन 2006 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को एक चिट्ठी लिखकर इस मामले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आई जे सी) में ले जाने की मांग की थे। वे अपनी इस मांग पर अब भी क़ायम हैं और उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका भी दायर कर रखी है।
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Great Soul, The True Nationalist Warrior..