ये बात बहुत पहले से कही जा रही है कि देश में जारी नक्सली गतिविधियां बाहरी मदद से चल रही हैं। पहले भी कई बार इसका खुलासा हो चुका है कि देश के नक्सलियों के अतंरराष्ट्रीय लिंक हैं। बाहरी मदद की शह पर ये लोग देश को कमजोर करने में जुटे हैं। अब जब खुले तौर पर यूरोपियन यूनियन के 9 सांसदों ने देश में गिरफ्तार शहरी नक्सलियों के पक्ष में आवाज बुलंद की है तो यह भी साबित हो गया है कि नक्सलियों के अंतरराष्ट्रीय लिंक कितने गहरे हैं। अब तक तो यहां तक संदेह जताया जा रहा है कि शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी की आंच भारत और यूरोपीयन यूनियन के समझौतों पर पड़ सकती है। शहरी नक्सलियों के पक्ष में बाहरी ताकतों का इस प्रकार कर खुलकर सामने आने से यह साफ हो गया है कि बाहरी ताकतों के बल पर ही नक्सली सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।
मुख्य बिंदु
* बाहरी ताकतों के सामने आने से यह साफ हो गया है कि इन्ही ताकतों के बल पर नक्सली सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं
* बाहरी हस्तक्षेप से देश की आंतरिक सुरक्षा पर एक बार फिर गहराने लगा है संकट, नक्सलियों से सख्ती निपटने की जरूरत
गौरतलब है कि यूरोपियन संसद के 9 सांसदों ने भारत में गिरफ्तार शहरी नक्सलियों को लेकर यूरोपीयन आयोग से भारत के साथ सारे समझौते रद्द करने की मांग की है। यूरोपियन यूनियन के काम काज देखने वाली संस्था को यूरोपियन आयोग कहा जाता है। सांसदों ने कहा है कि जब तक भारत गिरफ्तार शहरी नक्सलियों को रिहा नहीं कर देता तब तक यूरोपियन आयोग को उससे सारे समझौते रद्द कर देने चाहिए। इन सांसदों नेयूरोपियन कमिशन को लिखे पत्र में भारत के सामने प्रो. जीएन साइबाबा, सूज़न अब्राहम, वरवरा राव, फादर स्टेन स्वामी, आनंद तेलतुम्बड़े, गौतम नवलखा, वनॉन गोंजाल्विस, अरुण फरेरा और एडवोकेट सुरेंद्र गाडलिंग, प्रो. शोमा सेन, सुधीर ढावले, रोना विल्सन, महेश राउत और भारत के सभी मानवाधिकार रक्षकों को तुरंत रिहा करने की मांग उठाने को कहा है। इस पत्र में जिन 9 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं उनके नाम लीडिया सेनरा, एंजेला वलीना, पालोमा लोपेज़, मेर्जा़ किलोनेन, एना गोम्स, क्लारा एगिलेरा, सिप्रियन तनासेस्कु, क्लॉडी मोरेस और जूली वार्ड।
यूरोपियन संसद के 9 सांसदों ने भारत सरकार पर आदिवासियों, दलितों, कश्मीर की जनता और धार्मिक अल्पसंख्यकों व मणिपुरी जनता की हत्या करने तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल में डालने का आरोप लगाया है। केंद्र सरकार को इस मामले को हलके में नहीं लेना चाहिए। मोदी सरकार को सख्त शब्दों मे यूरोपीयन संसद को बताना चाहिए कि वे भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप से बाज आएं।
गौरतलब है कि भीमा कोरेगांव हिंसा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को दस शहरी नक्सलियों के घरों पर छापा मारा था। कई के घरों से मिले सबूत के आधार पर उनमें से पांच शहरी नक्सलियों अरुण फरेरा, वी गोंजाल्विस, गौतम नवलखा, वरवरा राव तथा सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को जेल भेजने की बजाय घर में नजरबंद रखने का आदेश दे दिया। तब से वे लोग अपने घरों में ही नजरबंद हैं। पुलिस ने आरोप लगाया है कि ये लोग देश में बड़े स्तर पर हिंसा फैलाने तथा प्रधानमंत्री मोदी की हत्या करने की साजिश रचने में संलिप्त थे। इसके साथ ही पुलिस ने इन लोगों पर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन का एजेंडा लागू करने का आरोप लगाया है। शहरी नक्सलियों के पक्ष में जिस प्रकार विदेशी ताकत सामने आने लगी है इससे तो पुलिस के आरोपों से कहीं ज्यादा का संदेह गहरा गया है।
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