मुझे यह जानकर और सुनकर बिलकुल आश्चर्य नहीं हुआ कि ज़ी न्यूज़ के एंकर सुधीर चौधरी और उनकी टीम रिपोर्टर पूजा मेहता और कैमेरामैन तन्मय पर ममता बेनर्जी सरकार ने धूलागढ़ दंगे पर रिपोर्टिंग दिखाने पर गैर जमानती धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है।
दरअसल कुछ दिनों पहले पश्चिमी बंगाल के धूलागढ़ में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने वहां के स्थानीय निवासियों को निशाना बनाते हुए जमकर उपद्रव किया! जिसका प्रसारण ज़ी न्यूज़ के अलावा अन्य किसी चैनल ने नहीं दिखाया। नोटबंदी पर प्रधानमंत्री को घेरने में लगे लगभग पूरे मीडिया ने इस प्रकरण में अपने कैमरे का शटर बंद रखना और उस पर नहीं लिखना, बोलना ज्यादा मुनासिब समझा। मीडिया ने पिछले एक महीने में सिर्फ और सिर्फ नोटबंदी को हव्वा बनाए रखा और लोगों को समाज में चल रही दूसरी घटनाओं से अलग-थलग कर दिया। खैर! हम बात करते हैं पश्चिमी बंगाल में हुए दंगों कि जिन पर सफाई देती हुई ममता बेनर्जी ने कहा कि बंगाल में सब कुछ सामान्य है लेकिन ज़ी न्यूज़ की रिपोर्ट ने ममता बनर्जी के इस झूठ को सिरे से नकारते हुए जो सच सामने रखा, उसे देखकर तो नहीं लगता कि बंगाल में सब कुछ सामान्य है।
ममता बनर्जी नोट बंदी पर जिस तरह से पेरशान दिख रही है और बात बात पर मोदी को निशाने पर ले रही हैं, उसे देखकर यही लगता है कि ममता बनर्जी जख्म जरा गहरा लगा था और ज़ी न्यूज़ की रिपोर्टिंग ने उनके जख्मों में नमक रख कर दुखती नस को और दुखा दिया है। आपको याद दिला दूं कि कुछ महीनों पहले मालदा में हुए दंगों का सच भी ज़ी न्यूज़ ने भारत के सामने रखा था, लेकिन ममता ने जिस बंगाल की बात अपने बयान में की हैं वह ज़ी न्यूज़ द्वारा दिखाए गए बंगाल से बिलकुल विपरीत है या कह लीजिये दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। दरअसल ज़ी न्यूज़ की राष्ट्रवादी रिपोर्टिंग ने ममता के किले में सेंध लगायी है। ममता उससे इतनी ज्यादा हिल गयी कि अपने सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने से भी पीछे नहीं हट रही हैं। वरना क्या कारण है कि पच्चीस साल की एक युवा लड़की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रहार कर रही है जो कि अभी पत्रकारिता में अपना पहला पायदान चढ़ रही है? क्या राजनीति में दशकों से काबिज ममता को अपने साम्रज्य के ध्वस्त होने का भय सताने लगा है?
बात अभिव्यक्ति की उठ ही गयी है तो यह आपको याद दिलाता चलूँ कि कुछ माह पूर्व एनडीटीवी पर एक दिन का बैन लगाया गया था (एनडीटीवी पर पठानकोट मामले में देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का आरोप था।) कैसे सारा मीडिया तंत्र, बुद्धजीवी वर्ग, नेता, सेकुलर गैंग ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला, और न जाने क्या क्या जुमलों से सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए थे। मैं उन सभी तथकथित बुद्धिजीवियों से पूछना चाहता हूँ कि ज़ी न्यूज़ की इस टीम के साथ हो रहे इस कृत्य में बोलने की आज़ादी आहत नहीं हो रही है या फिर अभिव्यक्ति की परिभाषा चैनल या समुदाय विशेष के अनुसार बदल जाती है। #
अभिव्याक्ति के नाम पर हमारे ईतिहास से छेड़छाड़ मत कर वरना तुम जैसे लोगो का भुगोल बिगाड़ना तय है ।