उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का पारिवारिक विवाद घर से निकल कर सार्वजनिक हो गया है। समाजवादी में सरकार और परिवार के बीच टकराव के हालात है। उत्तर प्रदेश के मुखयमंती अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के बीच में मुलायम के भाई शिवपाल यादव आ खड़े हुए हैं। मुलायम सिंह के लिए इस समय दुविधा है की वह क्या करें भाई को चुनते हैं तो बेटा नाराज और बेटे की तरफदारी करते हैं तो पार्टी में बिखराव की स्थिति बन सकती है!
मुलायम के बाद समाजवादी पार्टी में में अगर कोई रसूख रखता है तो वह शिवपाल यादव हैं।पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर आम जनता में शिवपाल खासे लोकप्रिय है। आप कह सकतें हैं की पार्टी की नाव जब भी भंवर में होती है,तो शिवपाल यादव खेवनहार बन जाते हैं।आपको याद दिल दूं जब समाजवादी के दूसरे बड़े नेता बेनी प्रसाद वर्मा पार्टी से अलग हुए तो उन्हें पार्टी में दुबारा लाने का श्रेय भी उन्ही को जाता है,पिछले उत्तर प्रदेश चुनाव में जन-जन से जुड़ने के अभियान में भी इनकी महती भूमिका रही थी। यदि समाजवादी पार्टी अपना जीत का सिलसिला आगामी चुनाव में भी बनाये रखना चाहती है तो शिवपाल यादव को नाराज करना भारी पड़ सकता है मुलायम और सपा दोनों को।
यह तो हो गयी शिवपाल यादव की बात! अब जरा अखिलेश को सपा के परिपेक्ष्य में देखते हैं। सपा में कई दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ते हुए अखिलेश उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने और अब तक ठीक ठाक काम भी कर रहे हैं। लेकिन उनके फैसलों में कई बार सपा सुप्रीमो के झलक या दवाब, जो मान लीजिये दिखता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने पार्टी में कुछ तो जगह बनायीं होगी जो दुबारा मुख्यमंत्री के लिए उनकी दावेदारी को पुख्ता करेगी मुझे लगता है उनकी स्थिति शिवपाल यादव से बेहतर नहीं है तो कम भी नहीं है! कम से कम रामगोपाल वर्मा ने अपने बयान से यह तो दर्शा ही दिया कि अखिलेश अकेले नहीं है। पहले जानते हैं रामगोपाल ने क्या कहा ? उन्होंने कहा ‘सीएम को अध्यक्ष पद से हटाना गलती रही, उन्हें अध्यक्ष पद से हटाना था तो पहले बताया जाना चाहिए था। मुख्यमंत्री जी ने खुद भी कहा है कि ज्यादातर फैसले नेताजी के कहने पर हुए और कुछ फैसले खुद भी लेते हैं। यूपी जैसे बड़े राज्य का सीएम खुद कोई फैसले ले तो इसमे अस्वाभाविक क्या है। अध्यक्ष जी से यह गलती हुई कि वो इस्तीफा देने के लिए कह सकते थे! अगर ऐसा होता तो मुख्यमंत्री खुद इस्तीफा दे देते’। अखिलेश युवा हैं और उनको राजनीती कि समझ भी है। इसलिए मुलायम के लिए अखिलेश के खिलाफ भी सख्त फैसले उनकी मुसीबतें बढ़ेंगी।
समाजवादी की इस पारिवारिक जंग में एक और मुख्य नाम सामने आ रहा है। वह हैं मुलायम की दूसरी पत्नी साधना का। सूत्रों के अनुसार साधना अपने पुत्र प्रतीक के लिए राजनैतिक मंच तैयार करने के लिहाज़ से इस पारिवारिक जंग में शामिल हैं। हालाँकि प्रतीक अभी 28 साल के है जो राजनीति के हिसाब ‘क ख ग’ सीखने की उम्र है किन्तु राजनीति की बिसात पर कल या परसों तो आना ही है। तो मोहरे क्यों न आज से बिठाये जायें? माना जा रहा हैं कि अखिलेश द्वारा हटाये गए विधायक गायत्री प्रसाद यादव और मुख्य सचिव दीपक सिंघल मुलायम की दूसरी पत्नी साधना और शिवपाल यादव के करीबी और भरोसेमंद हैं। इनको हटाना मतलब अखिलेश का सीधे सीधे साधना और शिवपाल यादव को चुनौती देना जैसे था। इसलिए इस घरेलु संघर्ष में यह भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।
मुलायम के परिवार में दो धड़े है शिवपाल यादव, साधना गुप्ता, प्रतीक यादव एक गुट में हैं तो दूसरे गुट में अखिलेश यादव और उनके चाचा रामगोपाल यादव हैं। रामगोपाल और शिवपाल की राजनैतिक प्रतिद्वंदिता सब जानते ही हैं। अखिलेश को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने में रामगोपाल का सहयोग रहा है और अपने बयान से वह यह साबित भी कर चुके हैं कि अखिलेश अकेले नहीं है।
2017 के चुनाव सामने खड़े हैं और समाजवादी पार्टी में टकराव की स्थिति है सबसे ज्यादा पेरशानी अगर किसी को उठानी पड़ सकती है तो वह है मुलायम सिंह यादव को क्योंकि उनके लिए एक तरफ भाई है तो दूसरी तरफ बेटा। एक तरफ गड्ढा तो एक तरफ खाई!देखते हैं राजनीति की शतरंज पर ऊंठ किस करवट बैठता है?