दुनिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने हिंदी में शपथ लेकर यह उम्मीद जगा दी है कि एक दिन दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र की सुप्रीम अदालत में भी उसके राजभाषा का सम्मान होगा! अँग्रेजी में जिरह करने की अयोग्यता सुप्रीम अदालत में भी न्यायिक अयोग्यता नहीं मानी जाएगी! 14 नवंबर को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रुप में जस्टिस गोविंद माथुर को राज्य के राज्यपाल राम नाइक ने शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया तो उन्होने हिंदी में शपथ लेकर सबको चौंका दिया।
सामान्यतः देश के किसी भी हाईकोर्ट के जज अंग्रेजी में ही शपथ लेते हैं। किसी भी राज्य के मुख्य न्यायाधीश द्वारा हिंदी को यह गौरव दिलाने के लिए जस्टिस माथुर को हमेशा याद रखा जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि जब वो भविष्य में पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तब तक सुप्रीम अदालत में भी हिंदी सम्मान का पद हासिल कर चुकी हो।
हाल ही में देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिकाकर्ता द्वारा हिंदी में जिरह किए जाने से रोकने के बाद यह चर्चा होने लगी कि क्यों भारत के सुप्रीम अदालत में हिंदी में बहस नहीं हो सकती! दरअसल जिरह करने वाले याचिकाकर्ता निचली अदालत में जज थे। जस्टिस गोगई ने उनकी जिरह रोकते हुए उनसे सवाल किया ‘आप एक जज हैं लेकिन आपको अंग्रेजी नहीं आती?’ याचिकाकर्ता जज ने स्वीकार किया कि हां वो अंग्रेजी में बहस नहीं कर सकते। जस्टिस गोगई ने सुप्रीम कोर्ट के रुल के मुताबिक उन्हें जिरह करने से रोकते हुए कहा ‘आपकी अदालत आप हिंदी में चलाएं या जैसे चलाएं लेकिन एक बार आप सुप्रीम कोर्ट आ गए तो आपको अंग्रेजी में ही बोलना होगा’। जस्टिस गोगई की यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर खुब ट्रोल हुई। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी लोगों के अंदर सवाल करने लगा कि आखिर देश की राजभाषा में सुप्रीम कोर्ट में जिरह क्यों नहीं हो सकती।
सुप्रीम अदालत के मुख्य न्यायाधीश ने अपनी इस टिप्पणी के बाद अगले ही दिन एक ऐतिहासिक निर्णय लिया..भारत की सुप्रीम अदालत को आम आदमी के लिए खोल दिया। देश में पहली बार हुआ कि भारत की आम जनता शनिवार के दिन सुप्रीम कोर्ट के अंदर पास बनवा कर जा सकती है। अपनी सुप्रीम अदालत की प्रकिया को देख और समझ सकती है। इतना ही नहीं पहली बार मुख्य न्यायाधीश ने यह फैसला भी किया कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हिंदी अनुवाद होगा ताकि वो आमजन के लिए उपलब्ध हो सके। यह दोनो फैसला याचिकाकर्ता जज को हिंदी में जिरह न किए जाने देने के हफ्ते भर के भीतर हुआ।
संविधान ने भारत की सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों को असीम शक्ति दी है। असीम शक्ति मतलब असीम शक्ति ! सुप्रीम कोर्ट अक्कसर कानून के दायरे में जनहीत के अनेक ऐतिहासिक फैसले दिए हैं। लेकिन आज की तारीख में भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़े न्याय के मंदिर में आम जन की भाषा संग न्याय न होना कचोटता है। यदि सुप्रीम अदालत चाहे तो किसी भी वक्त देश के सुप्रीम कोर्ट में जिरह की भाषा वहां के आम आदमी की भाषा भी हो सकती है। भारत के तमाम हाइकोर्टों में जिरह की भाषा अंग्रेजी है लेकिन सामान्यतः हाइकोर्टों में वकील वहां के स्थानीए भाषा में भी कई बार जिरह कर लेते हैं और सुविधानुसार जज यह अनुमित दे देते हैं।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की जिरह की भाषा घोषित रुप सिर्फ अंग्रेजी है। यह एक तरह से कानून का रुप ले चुका है। संभवतः इसलिए क्योंकि आजादी के बाद के शुरुआती दौर में देश के दक्षिण हिस्से से आने वाले सुप्रीम हाईकोर्ट के जजों को हिंदी समझने में दिक्कत रही होगी इसलिए यह व्यवस्था दी गई होगी। लेकिन बदलते वक्त ने हिंदी को दुनिया भर में गौरव मिला है। दुनिया के हर देश में, भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री हिंदी में बोलते हैं और उन्हें गंभीरता से सुना जाता है। जापान और चीन समेत ज्यादातर देशों ने अपनी अदालतों में अंग्रेजी के बदले अपनी भाषा को जब सम्मान दिया तो दुनिया ने भी उसका सम्मान किया।
उम्मीद की जानी चाहिए कि दुनिया के सबसे बड़े हाइकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने हिंदी को सम्मान दिला कर एक नई पहल की है। इलाहाबाद हाइकोर्ट ने हाल ही में एक साथ 80 मामलों का निबटारा का इतिहास रचा है। यहां 160 जज एक साथ मामलों का निबटारा करते हैं। दुनिया में ऐसी दुसरी कोई मिसाल नहीं जहां एक हाइकोर्ट में जजो की संख्या इतनी हो। एक सौ पचास साल पुराने इलाहाबाद हाईकोर्ट के पास दो बड़ी बैंच है। दुसरी बैंच राज्य की राजधानी लखनऊ में है। जस्टिस माथुर के पास अभी ढाई साल से ज्यादा का वक्त हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश के रुप में बचा है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो वे सुप्रीम के भी न्यायधीश बनेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए की दुनिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट में जल्द ही हिंदी भी अदालती जिरह की भाषा होगी। फिर भारत की सुप्रीम अदालत में देश के आम जन के भाषा का सम्मान बढ़ेगा।
URL: Hindi gets hope from Allahabad High Court, also expects from Supreme Court
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