देश के जिन आठ राज्यों में हिंदुओं की जनसंख्या कम है वहां उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा मिल सकता है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National minority commission) ने इस संदर्भ में फैसला करने का मन बना लिया है। आयोग ने हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के बारे में विचार करने के लिए एक उप-समिति बनाई थी। उप-समिति ने 14 जून को इस संदर्भ में फैसला करने के लिए एक बैठक बुलाई है। सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अल्पसंख्यक आयोग के पास जाने को कहा था।
इसकी सूचना आते ही, देश के कट्टरपंथी मुल्ले-मौलवी, ईसाई पादरी और तुष्टिकरणवादी राजनीतिक पार्टियां इसका विरोध करने लगी हैं। आठ राज्यों में अल्पसंख्यक हो चुके हिंदुओं के अधिकार को यह जमात किसी भी हाल में बहाल होने नहीं देना चाहती हैं। ज्ञात हो कि भारत में अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलिम-ईसाई वोट बैंक बनाने के लिए कांग्रेस ने 1993 में अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के खेल की शुरुआत की थी। हमारे संविधान निर्माताओं ने कहीं भी अल्पसंख्यकों का उल्लेख संविधान में नहीं किया है कि कौन लोग अल्पसंख्यक कहे जाएंगे? संविधान के खिलाफ जाकर कांग्रेस ने देश को बांटने का खेल खेला था और आज जब कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिल सकता है तो कांग्रेस एवं उसकी सहयोगी पार्टियां इसका विरोध करने लगी हैं।
मुख्य बिंदु
* राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की उप-समिति ने लिया था आठों राज्यों का जायजा
* बैठक में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष गहरुल हसन रिजवी होंगे मौजूद
हिंदू अल्पसंख्यक का फायदा
यदि इन आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिल जाता है तो टेक्निकल इंस्टीटयूट में 20 हजार अल्पसंख्यक छात्रों को जो लाभ मिलता है, वही इन राज्यों के हिंदुओं को भी मिलना शुरु हो जाएगा। यहां के हिंदू सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त संस्थाएं खोल सकते हैं, जैसा कि देश भर में अन्य अल्पसंख्यक वर्ग बेधड़क खोलते हैं। हिंदू इन राज्यों में अपना स्कूल खोल सकते हैं, जो आरटीआई अधिकार से मुक्त होंगी और जहां धार्मिक शिक्षाएं दी जा सकेंगी। अभी मुसलिमों के मदरसे, ईसाईयों के चर्च संचालित स्कूल आदि आरटीआई से मुक्त और अपने मजहबी शिक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए स्वतंत्र हैं। जबकि देश में हिंदुओं को ऐसा कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्य आयोग के अध्यक्ष गहरुल हसन रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय को पत्र लिखकर उनसे बैठक में उपस्थित होने का अनुरोध किया है। अल्पसंख्यक आयोग की उप-समिति की इसी बैठक में आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने पर फैसला किया जाएगा। मालूम हो कि अश्वनी उपाध्याय ने ही इन राज्यों में हिन्दुओं को अल्प-संख्यक घोषित करने की गुहार सुप्रीम कोर्ट से लगाई थी कि वह केंद्र सरकार को आदेश दें कि इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करे तथा उन्हें अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अधिकार भी दिए जायें।
मालूम हो कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश के आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। इसके बावजूद वहां के हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त नहीं है। देश के जिन आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं उनमें लक्ष्यद्वीप, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर मेघालय, जम्मू-कश्मीर और पंजाब शामिल है। लक्ष्यद्वीप में तो मुसलमानों की आबादी 96 प्रतिशत है, लेकिन वहां भी मुसलमान ही अल्पसंख्यक हैं 2% की आबादी वाला हिंदू नहीं!
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से पहले वहां की स्थिति को जानने के लिए ही उप-समिति गठित की गई थी। उन राज्यों में हिंदुओं की स्थिति का पूरा विवरण उप-समिति के सदस्य बैठक में रखेंगे। इसके बाद ही आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर फैसला किया जाएगा।
URL: Hindus can be declared minority in 8 states
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