भारत में शिक्षा प्रणाली गुरुकुल से निकल कर कान्वेंट और ईसाई मिशनरीज स्कूलों के हाथों की कठपुतली बन गयी है, नर्सरी से लेकर बच्चों के पीठ पर मोटे-मोटे बस्ते लाद दिए जाते हैं जो बदस्तूर दस-बारह सालों तक उनके कंधे और आत्मविश्वास को झुकाते हैं. साथ ही साथ इन प्राथमिक स्कूल के बच्चों को मिलने वाला होमवर्क उनके अंदर तनाव और नकरात्मक प्रभाव छोड़ता है.
होमवर्क पर शोध करने वाली स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ एजुकेशन की प्रोफेसर डिनाइस पॉप होमवर्क को बच्चों के खिलाफ मानती हैं शोध के दौरान उन्होंने पाया कि किताबों से जूझते रहने वाले बच्चों में डिप्रेसन बढ़ रहा है! उनका कहना है कि पांचवी कक्षा तक के बच्चों को होमवर्क की जगह घर पर ऐसी कोई भी ऐसी चीज पड़ने और लिखने या खेलने की इजाजत देनी चाहिए जिसमें उनकी रूचि हो.जो उनके तनाव को बढ़ाने की बजाये घटाने का कार्य करे !
शोध का कहना है कि प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को दिए जाने वाला गृहकार्य अमूनन उनके माता पिता या अभिभावकों के द्वारा ही किया या करवाया जाता है जिसका कोई ओचित्य नहीं रहता ! जिन घरो में में माँ बाप दोनों काम काजी हैं उन घरों के बच्चों में गृहकार्य को लेकर तनाव ज्यादा देखा गया है, जो माँ बाप से होता हुआ बच्चों तक पहुँचता है. बच्चों को होमवर्क न देने को लेकर लिखी और चर्चित किताब एन्ड द होमवर्क के लेखक ने अपनी शोध के दौरान पाया कि प्राथमिक स्कूल के बच्चों में होमवर्क का नकरात्मक प्रभाव पड़ता है.
बच्चों को होमवर्क दिए जाने में अधिकतर शोधकर्ता और विशेषज्ञों की राय लगभग समान है, उनके अनुसार पाँचवी कक्षा के बाद ही बच्चों को होम वर्क देना चाहिए जिसे क्रमशः धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए.शिक्षा आपके अंदर के ज्ञान को विकसित करती है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है होमवर्क और बस्तों के बोझ के नीचे दबे हुए आपके लाड़ले या लाड़ली किस मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं? सोचियेगा जरूर!