पिछले दिनों आउटलुक पत्रिका में छपे एक इंटरव्यू पर विवाद गहराया है। आउटलुक ने दावा किया कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय का यह पहला इंटरव्यू है। रामबहादुर राय ने इस मसले पर यथावत पत्रिका के अपने अनायास स्तंभ में विस्तार से पूरे घटनाक्रम की चर्चा की है। अब जो सवाल उठ रहे हैं, उससे आउटलुक पीछे हट रहा है। चुप है। आखिर क्यों?’जो इंटरव्यू हुआ नहीं’
अंग्रेजी पत्रिका ‘आउटलुक’ में मेरा कथित और कल्पित इंटरव्यू छपा है। अंक है, 13 जून का। दावा किया गया है कि ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ के अध्यक्ष का यह पहला इंटरव्यू है।
इस बारे में सबसे पहले मुझे तीन जून को जानकारी मिली। रोज की भांति दोपहर बाद चार बजे ‘यथावत’ पत्रिका के प्रवासी भवन स्थित कार्यालय पहुंचा। बेवसाइट से वह कथित इंटरव्यू निकलवाया। देखा। मन में आया, यह बड़ा मजाक है। उसे रख दिया। इंतजार कर रहा था कि पत्रिका छप कर आए, फिर उसे देखें और अपना पक्ष रखें। पत्रिका का अंक मंगवाया। उसे देखा। सरसरी तौर पर पढ़ा। चकित हुआ। कहिए होना पड़ा।
मैं सोच ही नहीं सकता कि एक बातचीत को इंटरव्यू बनाया जा सकता है। जिस बातचीत में मेरे अलावा दूसरे भी शामिल थे। इसलिए मैंने तत्क्षण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डा. सच्चिदानंद जोशी को फोन कर कहा कि एक पत्र मेरी ओर से आउटलुक संपादक को जाना चाहिए। जिसमें उन्हें सूचित करें कि जिसे उन्होंने इंटरव्यू के रूप में छापा है, वह हुआ ही नहीं।
डा. सच्चिदानंद जोशी ने मेरी सलाह मानी। उन्होंने पत्र अपनी ओर से भेजा। उनसे बातचीत के बाद मैंने दूसरा फोन अतुल सिंह को किया। उन्हें बताया कि आउटलुक पढ़िए। जो कुछ हुआ है, उसे लिखकर मुझे दे सकें तो बहुत भला होगा। वे शाम को चट्टो बाबा के साथ प्रवासी भवन आए। उन्होंने बिंदुवार एक विवरण ‘फैक्ट-शीट’ बनाकर दिया।
उनके ‘फैक्ट शीट’ और अपनी याददास्त के आधार पर यहां जो घटनाक्रम रहा, उसे बता रहा हूं। उससे पहले यह कह दूं कि मेरी याददास्त बहुत अच्छी है। इसे मेरे मित्र और परिचित जानते हैं। वे कहते भी हैं। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन का बारहवां स्थापना दिवस था। 14 मई को कांस्टीट्यूशन क्लब में समारोह हुआ। वहां जो बोला, वह अतुल सिंह और चट्टो बाबा को पसंद आया। आखिरी भाषण वहां गोविंदाचार्य का था। उनके और मेरे बोलने से इन दोनों में एक मिशन का भाव पैदा हुआ, जिसे उन लोगों ने मुझे बताया और कहा कि इसे बढ़ाने की जरूरत है।
बारह दिन बाद अतुल सिंह का फोन आया। मिलने के लिए समय मांगा। मेरे हां कहने पर वे और चट्टो बाबा प्रवासी भवन आए। उनके साथ एक कुलीन महिला भी थी। उस दिन देर शाम तक उनसे बात करने के लिए समय नहीं निकाल सका। हाथ जोड़ा। कहा कि फिर कभी बात होगी। अतुल सिंह के फैक्ट शीट में है कि ‘प्रवासी भवन पहुंचने पर मैंने प्रज्ञा सिंह का परिचय अपने मित्र के रूप में कराया।’अगले दिन वे तीनों आए। इंतजार करते रहे। उनके पास मैं गया। अतुल सिंह ने कहा कि कास्टीट्यूशन क्लब के भाषण पर हम बात करना चाहते हैं। इसमें प्रज्ञा भी शामिल है। यहा बता दूं कि 14 मई को पंचायत प्रणाली और उससे संबंधित संवैधानिक इतिहास पर मैंने जो कुछ अब तक समझा है, उसे ही थोड़े समय में बोला। उस पर विस्तार से बात करने के लिए वे लोग आए थे।
अतुल सिंह ने ही बातचीत शुरू की। प्रवासी भवन का वह बैठका था। वहां उपस्थित तो कई व्यक्ति थे, लेकिन चार के बीच में बात होती रही। सच यही है। उस बातचीत को कुछ का कुछ बनाकर आउटलुक ने इंटरव्यू के रूप में छापा है। बातचीत और इंटरव्यू में फर्क होता है। इसे हर पत्रकार जानता है। एक नागरिक भी जानता है। मेरा सवाल है, क्या यह फरेब नहीं है? अतुल सिंह, चट्टो बाबा और प्रज्ञा सिंह ने जो-जो कहा वह कहां है?
आउटलुक के इंट्रो की आखिरी लाईन अपने पाठकों को बता रही है कि यह बातचीत का सार है। इसी से स्पष्ट है कि वह इंटरव्यू नहीं था। आउटलुक अपने पाठकों को भी गुमराह कर रहा है। न प्रज्ञा सिंह ने मुझसे इंटरव्यू के लिए समय मांगा था और न ही मैंने उन्हें इंटरव्यू दिया।
डा. सच्चिदानंद जोशी ने इसलिए अपने पत्र में संपादक को लिखा कि पत्रिका झूठा दावा कर रही है। आउटलुक के प्रधान संपादक ने अपनी भूल मानने की बजाए जवाब में लिखा कि ‘प्रज्ञा सिंह का रामबहादुर राय से व्यक्तिगत रूप में परिचय कराया गया।’ अतुल सिंह भी यही बता रहे हैं। स्पष्ट है कि प्रज्ञा सिंह ने इंटरव्यू के लिए सीधे समय नहीं मांगा। वे अतुल सिंह की योजना में आई। योजना इंटरव्यू की तो थी ही नहीं। जैसा कि अतुल सिंह के फैक्ट शीट में है।
आउटलुक पत्रिका देखने के बाद अतुल सिंह ने उनसे अपनी तीन आपत्तियां दर्ज कराई। एक- स्टोरी को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष का इंटरव्यू बना दिया गया है। उसे एक खास इरादे से पेश किया गया है। दो- उस दिन की बातचीत संविधान के गुण-दोष पर थी, डॉ. भीम राव आंबेडकर के योगदान पर नहीं थी, जबकि कथित इंटरव्यू में उसे ही केंद्रीय विषय वस्तु बना दिया गया है। तीन- इंटरव्यू और उसके इंट्रो में छत्तीस का संबंध है। जो पाठकों के मन पर जहरीला प्रभाव छोड़ने के इरादे से भरा हुआ है।
एक कहावत है- ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाटे।’ इसे आउटलुक चरितार्थ कर रहा है। गलती आउटलुक ने की है। बदनाम मुझे कर रहा है। जिसे इंटरव्यू बनाकर छापा गया है, वह पत्रकारिता के चोले में लठैती है। आउटलुक में किसने क्या किया? यह पत्रकारों के लिए खोज-खबर का विषय है। मैं अपने लिए इतना ही कहूंगा- हवन करते हाथ जला लिया है।
अक्सर पत्रकार मेरे पास आते हैं। बात करते हैं। उन्हें आउटलुक के इस फरेब से निराश होने की जरूरत नहीं है। भले ही हाथ जल गया हो, फिर भी हवन होता रहेगा। इस घटना के बावजूद मेरा मन निर्मल है। उसके बरतन को रोज धोता और चमकाता हूं। यह आदत इमरजेंसी के दिनों में जेल में जो लगी, वह बनी हुई है। आउटलुक अपना मन टटोले और सच का सामना करे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय हैं जो वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं।