नितिन शुक्ला। मेरे कई कांग्रेसी मित्र अक्सर कहते थे कि संघ घोर जातिवादी है। उन्होंने ना जाने कौन कौन सी दलीलें दी कि आज तक तक जितने भी सरसंघचालक हुए वह सभी ब्राह्मण थे! संघ दलित विरोधी है वगैरह वगैरह, जी मित्रों बिल्कुल सही कहा आपने संघ में जातिवाद कूट कूट कर भरा पड़ा है। संघ दलित विरोधी नही बल्कि ब्राह्मण और सवर्ण विरोधी है!
सच कहता हूं मैने खुद फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस लिया संघ की एक इकाई के अभ्यास वर्ग में ना जाने कौन कौन से लोग कहां कहां से आए थे। कोई नाई, कोई कोरी कोई चमार, कोई प्रजापति और इन सब के साथ ब्राह्मण ठाकुर बनियों को जानबूझ कर रुकवा दिया गया ताकि उनकी जातभ्रष्ट हो जाय। अब हम ठहरे ब्राह्मण वो भी कन्नौज के खालिस कान्यकुब्ज ब्राह्मण! बताइये क्या ऐसा करना चाहिए था? इन्हें मेरे साथ अरे साहब मैं तो कहता हूं बहुत बड़ी साजिश है साजिश! मुझे जातिभ्रष्ट करने के उद्देश् से इन्होंने बुफे सिस्टम में भोजन रखा था जहाँ सबके लिए एक ही लाइन थी अरे भाई हम उच्च जाति वालो के लिए अलग से VIP लाइन होनी चाहिए थी कि नही? और ऊपर से सबसे पहले ये दलित भोजन लेने पहुँच गए उनके हाँथ लगते ही भोजन अशुद्ध हो गया! लाहौल विला कुवत! अरे साहब रंग ही बदल गया भोजन का! खीर सफेद से काली हो गयी वो तो मुझ खालिस ब्राह्मण के हाथ लगने पर वापस शुद्ध हुई और सफ़ेद रंग की हो गयी। इतना ही नही मेरे हाथ लगते ही भोजन में अमृत भी बरस जाता था। कच्चे चावल मेरा हाँथ लगते ही पक जाते थे। पूड़ी सब्ज़ी में अलग ही स्वाद आ जाता था। अरे भाई में ब्राह्मण जो हूँ! खैर ये एक सोची समझी साजिश है ब्राह्मणों के खिलाफ! संघ ब्राह्मण और सवर्ण विरोधी है मान लीजिये अगर अब भी भरोसा नही हो रहा तो आगे पढ़िए …
मेरा परिचय हुआ और मैंने सीना चौड़ा कर के अपना परिचय दिया अपना पूरा नाम बताया कि मेरा नाम नितिन शुक्ला है। पर ये क्या उन्होंने दूसरे अधिकारियों से मेरा जब भी परिचय कराया तो सिर्फ इतना ही कराया कि यह नितिन जी हैं फला काम करते हैं, और फला जगह से आए हैं हाइला ई तो धोखा है हमारी जाती ही नही बताई जा रही! मने हद हो गयी जातिवाद की क्योंकि मैं ब्राह्मण हूं इसलिए कोई मेरा सरनेम ही नहीं बता रहा था। यह ब्राह्मणों के साथ धोखा था। अरे भाई सीधी सी बात है मेरे नाम के साथ मेरा सरनेम भी तो लगाइए! शुक्ला भी तो बोलिए! ताकि सबको पता पता तो चले कि मैं एक ब्राह्मण हूं, पर संघ ब्राह्मण विरोधी है इसीलिए वहां किसी ने भी मेरा पूरा नाम लिया ही नहीं और सिर्फ मेरे नाम के आगे जी लगा दिया ताकि मुझे भी तसल्ली रहे!
खैर मैंने और लोगों को भी देखा और यह पाया कि वहां किसी को भी उसके पूरे नाम से नहीं बुलाया जा रहा था। सिर्फ नाम लिया जा रहा था और नाम के आगे जी लगाया जा रहा था। चाहे वह कितना ही छोटा कार्यकर्ता क्यों ना हो किसी भी जाति का क्यों ना हो! मेरे सामने राष्ट्रीय अधिकारी भी एक छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी जी लगाकर संबोधित कर रहे थे और आप कहकर संबोधित कर रहे थे। यह अपने आप में एक चौंकाने वाली बात थी क्योंकि अमूमन ऐसा देखने में नहीं आता। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मुझे अधिकारियों के सिर्फ नाम मालूम है एक का भी सरनेम या जाती नहीं मालूम क्योंकि किसी ने भी अपना पूरा नाम बताया ही नहीं। संघ में आपका परिचय सिर्फ आपके नाम के आगे जी लगा कर कर दिया जाता है आपका सरनेम बताया ही नहीं जाता उस का कोई जिक्र ही नहीं होता। अब बताइए है ना संघ जातिवादी? इतनी कहानी पढ़ने के बाद भी जिन मूर्खों को यह लगता हो कि संघ में रत्ती भर भी जातिवाद है तो वह कुएं में डूब जाएं और किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाकर अपने पागलपन का इलाज कराएं। खर्चा मैं दे दूंगा, भैया पर कम से कम अपने पागलपन का इलाज तो करा लीजिए जहां सरनेम तक नहीं लिया जाता हो ऐसे संगठन पर जातिवादी होने का आरोप कोई भी स्वस्थ व्यक्ति नहीं लगा सकता यह कार्य सिर्फ कोई मानसिक रोगी ही कर सकता है, और सबसे बड़ी बात संघ का गठन ही देश मे से जातिवाद के भेदभाव को मिटाने के लिए हुए था, और आज संघ इसमे शत् प्रतिशत कामयाब भी हुआ है।
मैं ब्राह्मण हूँ और मेरे हाँथ लगाने मात्र से ही चीजें पवित्र और शुद्ध हो जाती हैं। बस अगर कहीं हाथ नही लगता हूँ तो वो अपने दिमाक पर! भाई डर है कि कही वो भी शूद्र न हो जाये और जातिवाद का कीचड़ निकल कर पवित्र मन न हो जाये, तो बोलो क्षत्रिय सियापति श्री रामचन्द्र की जय।
साभार: नितिन शुक्ला जी के फेसबुक वाल से