इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय के बारे में एक खबर वेबसाइट पर पढ़ी। अंबेडकर जी को लेकर जो बयान प्रकाशित किया गया है, उसे पढ़कर मन विचलित हुआ। वेबसाइट ने ये दावा करते हुए इंटरव्यू छापा है कि ये इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष का ये पहला इंटरव्यू है। इस इंटरव्यू को पढ़ने के बाद दो सवाल मेरे जहन में आए।
पहला ये कि जब वो दो दिन पहले तक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के बारे में कुछ भी कहने से मना करते रहे हैं, तो फिर ये इंटरव्यू उन्होंने कैसे दिया? उनसे कई बारगी बात हुई। हर बार वो बात करने के दौरान यही कहते कि पहले मैं इस संस्थान के बारे में समझ लूं। इसके बाद ही बात करूंगा। इस संस्था से अलग वो पत्रकारीय जीवन से लेकर तमाम मुद्दों पर खुलकर बात करते हैं।
दूसरी बात ये आश्चर्यजनक लगी कि आखिर उन्होंने अंबेडकर या फिर संविधान के बारे में क्या वाकई इस तरह की बातें की है, जो प्रकाशित की गई हैं। इन सवालों के जवाब तलाशते हुए मैंने फौरन देर रात ही राम बहादुर राय जी को फोन किया। रात में काफी देर तक उनसे चर्चा होती रही। जो चर्चा हुई। जो बातें उन्होंने बताई। वो सवाल पत्रकारीय जीवन के लिए बेहद अहम है। एक पत्रकार होने के नाते इन सवालों के जवाब समझना और जानना जरूरी है।
देश के वरिष्ठतम पत्रकारों में से एक 71 वर्ष के राम बहादुर राय जी ने बताया कि उनके पास कुछ शख्स मिलने के लिए आए थे। उन्होंने न तो आने का इस तरह का कोई मकसद बताया, न ही ये बताया कि वो किसी पत्रिका या अखबार से हैं। राय के मुताबिक उन्होंने ये भी नहीं कहा कि वो इंटरव्यू लेने के लिए आए हैं। न ही इस बात का जिक्र किया कि वो इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष के तौर पर उनका इंटरव्यू छापने वाले हैं।
राम बहादुर राय जी ने साफ कहा कि भोलेपन से ये लोग उनसे बातचीत करते रहे। तस्वीरें खींची और फिर उसे शरारत करते हुए गलत तरीके से इंटरव्यू बनाकर छाप दिया। 1977 में आपात काल के दौरान गिरफ्तारी का दंश झेलने वाले और सत्ता के खिलाफ मुखर तौर पर खड़े होने वाले राम बहादुर राय की बातों पर अगर यकीन माना जाए तो पत्रकारिता को लेकर कई सवाल उठते हैं।
-क्या अनौपचारिक बातचीत को इंटरव्यू बनाकर छाप देना सही है?
-क्या अनौपचारिक बातचीत को सनसनीखेज खबर बनाकर परोसना सही है?
-क्या वाकई इंटरव्यू छापने वाले पत्रकार ने इंटरव्यू के लिए इजाजत ली थी?
-क्या इंटरव्यू लेने वाले ने वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय को इस बात की जानकारी दी कि आपका इंटरव्यू पत्रिका के लिए लिया जा रहा है?
-क्या 71 साल के बुजुर्ग पत्रकार के बहाने एजेंडा सेट करने की कोशिश तो नहीं की जा रही है?
ये सवाल इसलिए जरूरी हैं क्योंकि अब तक टेलीविजन पत्रकारिता पर टीआरपी के लिए सनसनीखेज खबरों को परोसने का आरोप लगता रहा है। लेकिन अब पत्रिकाएं भी इस मुहिम में कूद पड़ी हैं। कई बारगी खबरों को निकालने के लिए हालांकि स्टिंग का भी सहारा लेना पड़ता है। लेकिन क्या पत्रिका या इन पत्रकारों के लिए अंबेडकर पर स्टिंग करने की कोई जरूरत थी। या फिर इसके पीछे कोई निहितार्थ या एजेंडा था।
ये सवाल इसलिए उठा रहा हूं कि सब जानते हैं कि बिहार चुनाव में आरक्षण का हथियार बनाया गया और बीजेपी को हराने में इसे कारगर हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया। इस बार यूपी में हर पार्टी अपने लिए अंबेडकर तलाश रही है। बीजेपी भी उसी राह में अग्रसर है।
जाहिर है बीजेपी से जुड़े संगठन इस बार कोई भी इस तरह की गलती नहीं करना चाहता है। तो क्या इस बहाने जबरन एक बुजुर्ग पत्रकार के कंधे पर बंदूक रखकर पत्रिका के माध्यम से निशाना साधने की कोशिश की जा रही है। ताकि बिहार में आरक्षण के बाद यूपी चुनाव के लिए अंबेडकर का जिन्न पैदा किया जाए।
मैं पिछले कई वर्षों से राम बहादुर राय जी को जानता हूं। इस इंटरव्यू को पढ़ने के बाद लंबी बातचीत हुई। पत्रकारिता के शिखर पर बैठे इस शख्स में इंटरव्यू प्रकाशित करने के पीछे के इस ओछेपन को लेकर एक टीस दिखी। ये भी महसूस किया कि जो बात उन्होंने कही ही नहीं, उसे भी मसालेदार बनाकर छापा गया है। राम बहादुर राय जी ने ये भी बताया कि उन्होंने पत्रिका को एक लंबी चिट्ठी लिखी है, साथ ही वो एडिटर्स गिल्ड में भी इस मुद्दे को उठाएंगे।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष बनने के बाद राम बहादुर राय जी कई बड़े कार्यक्रमों में शरीक हो चुके हैं। उनके भाषण सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं। मैं खुद कई बार उनसे व्यक्तिगत तौर पर मिला हूं। लेकिन जिस तरीके से इंटरव्यू को छापा गया है। ऐसे लगता है कि इसमें पत्रकारिता के संस्कार को छिछालेदार करने की कोशिश की है। या फिर पत्रिका को सामने आकर वो चिट्ठी सार्वजनिक करनी चाहिए, जिसमें उन्होंने इंटरव्यू के लिए इजाजत ली हो।