भारतीय पत्रकारिता गंभीर संकटों से गुजर रही है! इसके आगे सबसे बड़ा संकट, इसकी विश्वसनीयता का है! वरिष्ठ पत्रकार व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के अध्यक्ष रामबहादुर राय के साथ, आज की पत्रकारिता ने जो किया वह पत्रकारिता व पत्रकारों की विश्वसनीयता को रसातल में पहुंचने वाला सबसे हालिया उदाहरण है!
वैसे तो पूरी पत्रकारिता जगत रामबहादुर राय जी की शख्सियत से वाकिफ है, लेकिन जो नहीं जानते हैं, उनके लिए यह जानना काफी होगा कि 1990 के दशक के हवालाकांड को दुनिया के समक्ष सर्वप्रथम लाने वाले पत्रकार रामबहादुर राय ही थे। तब वे जनसत्ता में वरिष्ठ पत्रकार की हैसियत से कार्यरत थे। जनसत्ता को दिल्ली में शुरु कराने से लेकर, अतीत में आपातकाल के विरोध में सर्वप्रथम जेल जाने वालों में रामबहादुर राय शामिल रहे हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन के लिए जिस टीम का गठन किया था, उसके मुख्य संयोजकों में रामबहादुर रायजी भी शामिल थे। तब वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महासचिव थे।
आज आउटलुक जैसी पत्रिका ने मोदी सरकार को घेरने के लिए 70 के दशक वाले छात्र रामबहादुर राय के एबीवीपी महासचिव की पहचान दर्शा कर यह साबित करने की कोशिश की है कि वह आज भी एक पत्रकार नहीं, बल्कि एबीवीपी के कार्यकर्ता और संघ के विचारक हैं! आउटलुक में रामबहादुर राय जी के लिए कहीं भी नवभारत टाइम्स के पूर्व समाचार संपादक, जनसत्ता के पूर्व पत्रकार, यथावत के संपादक संपादक, वरिष्ठ पत्रकार जैसे संबोधनों का प्रयोग नहीं किया गया है, जिससे जाहिर होता है कि आउटलुक का मकसद पत्रकारिता नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश है! इस साजिश की पुष्टि अगले दिन कई अंग्रेजी-हिंदी अखबारो में रायजी को ‘अंबेडकर को लेकर संघ विचारक का विवादित बयान’ के रूप में प्रोजेक्ट करने से भी होती है! आउटलुक की परिपाटी को ही आगे बढ़ाते हुए किसी भी अखबार ने रायजी के वरिष्ठ पत्रकार होने का जिक्र नहीं किया है, जबकि वह 1980 की दशक से लगातार पत्रकारिता कर रहे हैं! यह साफ तौर पर झूठ के सहारे जनता को भ्रमित करने का प्रयास है!
दरअसल आउटलुक की संवाददाता प्रज्ञा सिंह ने रामबहादुर राय जी का एक साक्षात्कार प्रकाशित किया और यह दावा किया कि IGNCA के अध्यक्ष के रूप में यह राय जी का पहला साक्षात्कार है! इस पूरे साक्षात्कार में राय जी को संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के विरोधी के रूप में प्रदर्शित किया गया है! उनके मुंह से कहलवाया गया है कि संविधान निर्माण में भीमराव अंबेडकर की भूमिका सिर्फ एक ‘मिथ’ है!
पाठकों को याद होगा कि बिहार चुनाव के पूर्व ‘एजेंडा जर्नलिस्टों’ ने भाजपा को हराने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत के कंधे का इस्तेमाल करते हुए उन्हें आरक्षण व्यवस्था का विरोधी साबित करने की कोशिश की थी! अगले साल उत्तरप्रदेश का चुनाव सामने है, जहां दलित वोट बेहद निर्णायक स्थिति में है। संघ और भाजपा द्वारा उत्तरप्रदेश में शुरू समरसतावादी राजनीति पर चोट करने के लिए ही रामबहादुर रायजी के झूठे साक्षात्कार का व्यूह रचा गया है! आउटलुक द्वारा रामबहादुर राय जी को दलित विरोधी दर्शाने की कोशिश, दरअसल उत्तरप्रदेश चुनाव में भाजपा को दलित विरोधी प्रचारित करने की अभी से ही शुरू की गई उस साजिश का हिस्सा है, जिसका शिकार भाजपा बिहार में हो चुकी है!
दरअसल रायजी वर्तमान मोदी सरकार में ही IGNCA के अध्यक्ष नियुक्त हुए हैं। कांग्रेस के गांधी परिवार की विरासत वाली IGNCA को भंग कर रायजी को अध्यक्ष बनाना, शुरू से कांग्रेस पार्टी व उनके वफादार पत्रकारों व मीडिया हाउस को खलता रहा है! कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने तो पत्रकार वार्ता कर IGNCA के अध्यक्ष पद पर रायजी की नियुक्ति का विरोध किया था। तब से ही कांग्रेसी-वामपंथी मीडिया रायजी को विवादों में घसीट कर मोदी सरकार पर प्रहार करने की कोशिशों में जुटी हुई है!
जो लोग रामबहादुर राय जी को नहीं जानते, वो शाम में उनसे मिलने चले जाएं! वहां 10-15 लोगों को बैठे देख सकते हैं, जो उनसे वर्तमान राजनीति, पत्रकारिता, इतिहास, संविधान, अध्यात्म, संस्कृति -जैसे विषयों पर चर्चा करते मिल जाएंगे! फक्कड़ स्वभाव के रायजी का दरवाजा पत्रकारिता में नया-नया करियर शुरु करने वालों से लेकर हर उस जिज्ञासु के लिए हमेशा खुला रहता है, जो उनके अनुभव से कुछ सीखना चाहता है! उन्होंने एक उसूल बना रखा है कि जीवन में कभी किसी पत्रकार को किसी बात के लिए ‘न’ नहीं कहेंगे! उम्र अधिक होने (करीब 71 साल) के कारण उनकी तबियत खराब रहती है, जिसके कारण वह सुबह के समय शायद ही घर से निकल पाते हैं। उन्हें सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार दिया, लेकिन चूंकि सुबह उन्हें पहुंचना था, इसलिए उनका वहां जाना संभव नहीं हो सका! दूसरी तरफ यदि कोई नया पत्रकार सुबह के समय भी उन्हें कहीं चलने को कह दे तो वह शारीरिक रूप से कष्ट सहते हुए भी चले जाते हैं! यह मेरा खुद का अनुभव है!
मेरी हालिया प्रकाशित पुस्तक ‘आशुतोष महाराजः महायोगी का महारहस्य’ का लोकार्पण 19 जनवरी 2016 को सुबह 12-1 बजे के बीच होना तय हुआ था। उनके लिए आना संभव नहीं था। उन्होंने कहा- ‘क्या इसका समय आगे नहीं बढ़ सकता है?’ मैंने कहा- ‘सर पुस्तक मेला का आखिरी दिन है, इसलिए यही स्लॉट मिल सका है। इसके बाद वहां स्लॉट खाली नहीं है।’ उन्होंने कहा- ‘आप निश्चिंत रहिए, मैं जरूर आउंगा।’ और वह न केवल आए, बल्कि समय से पहले आए, पुस्तक का लोकार्पण किया और भारतीय अध्यात्म में समाधि को बहुत अच्छे ढंग से वहां मौजूद श्रोताओं को समझाया भी!
पहले वह मुझे नहीं जानते थे। अपने 12 साल की पत्रकारिता में मैं 2013 से पूर्व उनसे कभी नहीं मिला था। मेरी पहली पुस्तक ‘निशाने पर नरेंद्र मोदीः साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी’ उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर संजीव तिवारी के मार्फत मिली थी। तब उन्होंने मुझे फोन किया था। उस समय मैं बिहार में था। उन्होंने मेरी पुस्तक के शोध को अपनी पत्रिका ‘यथावत’ की कवर स्टोरी बनाया। पत्रकारिता में बिना संपादक की चापलूसी किए कम ही पत्रकारों की स्टोरी कवर स्टोरी बन पाती है, यह हर पत्रकार जानता है! लेकिन मुझे बिना जाने, मुझसे बिना मिले, रायजी ने केवल मेरी पुस्तक के कंटेंट को महत्ता दी और उसे कवर स्टोरी बनाया! यह केवल और केवल रायजी ही कर सकते हैं!
मैं अपना अनुभव केवल इसलिए बता रहा हूं कि पाठक यह समझ सकें कि रायजी के पास कोई भी अनजान व्यक्ति कभी भी पहुंच सकता है! उनका दरवाजा सभी के लिए खुला है। वह हर किसी की मदद आगे बढ़ कर करते हैं और इसके लिए आपकी उनसे पहचान जरूरी नहीं है! आउटलुक ने जिसे राय जी का साक्षात्कार बनाकर सनसनी फैलाया है, दरअसल वह साक्षात्कार रायजी ने कभी दिया ही नहीं! हुआ न आश्चर्य! दरअसल उस शाम कई लोगों के साथ रायजी रोजाना की तरह अलग-अलग विषयों पर चर्चा कर रहे थे, तब आउटलुक की संवाददाता प्रज्ञा सिंह अपने कुछ मित्रों के साथ आई और वह भी वहीं बैठ गई!
रोजाना की तरह चर्चा हो रही थी। उस वक्त चर्चा संविधान सभा की बहस और संविधान निर्माण पर हो रही थी। उसी चर्चा में लोगों के बीच प्रज्ञा सिंह भी बैठी थी। जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि राय जी की चर्चा में मौजूद रहने के लिए आपको किसी पहचान की जरूरत नहीं है। राय जी न तो प्रज्ञा सिंह को जानते हैं और न ही प्रज्ञा सिंह या उसके साथियों ने वहां पहुंच कर रायजी को अपना परिचय ही दिया कि वो आउलटलुक के संवाददाता हैं और उनका साक्षात्कार लेने आए हैं! बस एक अनौपचारिक चर्चा चल रही थी और कई लोग अपने-अपने तर्क, अपने तथ्य,अपनी जानकारियां रख रहे थे।
अगले दिन रायजी को पता लगा कि आउटलुक ने IGNCA के अध्यक्ष के पहले साक्षात्कार के रूप में उनका साक्षात्कार प्रकाशित किया है! उस शाम 10 लोगों के बीच जो अनौपचारिक चर्चा चल रही थी, उसे ही प्रश्न-उत्तर बनाकर आउटलुक की प्रज्ञा सिंह ने साक्षात्कार की शक्ल में छाप दिया था। इस पूरे साक्षात्कार में राय जी को अंबेडकर विरोधी के रूप में चित्रित किया गया और यह दर्शाने की कोशिश की गई कि संविधान निर्माण में डॉ. भीमराव अंबेडकर की कोई भूमिका नहीं थी! प्रज्ञा सिंह ने उस साक्षात्कार में उनकी पहचान से वरिष्ठ पत्रकार को गायब कर दिया और उनकी पहचान केवल IGNCA अध्यक्ष व एबीवीपी के पूर्व महासचिव के रूप में पाठकों के समक्ष रखा! उसने यह दिखाने की कोशिश की कि संघ के एक संगठन से जुड़े व्यक्ति की सोच संविधान निर्माण में डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेकर नकारात्मक है! आउटलुक ने इस पूरे साक्षात्कार को इस तरह से पेश किया कि यह एक संघ विचारक का का वक्तव्य लगे!
इस साक्षात्कार को पढ़कर मैंने रायजी को लिंक भेजा। उन्होंने फोन किया कि यह कहां आया है? मैंने तो ऐसा कोई साक्षात्कार दिया ही नहीं है! मैं तो इस नाम के किसी संवाददाता को जानता ही नहीं। कुछ लोग मेरे पास आए जरूर थे और रोज होने वाली चर्चा में शामिल थे, लेकिन न तो उन्होंने अपना परिचय दिया और न ही यह बताया कि वह आउटलुक के लिए साक्षात्कार लेने आए हैं। IGNCA के अध्यक्ष के रूप में उन्हें यदि मेरा साक्षात्कार चाहिए था तो पहले उन्हें इसके लिए औपचारिक रूप से अनुरोध पत्र लिखना चाहिए था, तभी मैं कोई साक्षात्कार देने की सोचता। अभी तक IGNCA अध्यक्ष के रूप में रायजी का साक्षात्कार लेने के लिए कई पत्रकारो का अनुरोध आया हुआ है, लेकिन उनका कहना है कि जब तक मैं इस पूरी संस्था को ठीक से समझ न लूं, तब तक क्या साक्षात्कार दे सकता हूं! इसीलिए अभी तक किसी को साक्षात्कार नहीं दिया है। प्रज्ञा सिंह ने रायजी की बैठक में चलने वाली एक अनौपचारिक चर्चा को बिना उन्हें जानकारी में दिए साक्षात्कार के रूप में पेश कर दिया, जो साफ तौर पर धोखाधड़ी का मामला है!
पत्रकारिता के पेशे से वाकिफ हर पत्रकार यह जानता है कि रायजी ने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला। हाल-फिलहाल वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने जनसत्ता के पूर्व संपादक स्वर्गीय प्रभाष जोशी जी के बारे में कुछ झूठ लिख दिया था। रायजी ने सीधा उन्हें पत्र लिखा कि या तो इसका सबूत दीजिए या माफी मांगिए। शेखर गुप्ता को इंडिया टुडे में प्रकाशित रूप से माफी मांगनी पड़ी। सच के प्रति ऐसे निष्ठावान हैं रायजी! इस बार भी रायजी ने आउटलुक को एक लंबा पत्र लिखा है और माफी मांगने को कहा है। यह कहा है कि मैंने कब साक्षात्कार के लिए आपको अनुमति दी, जरा अनुमति पत्र दिखा दीजिए? मुझे मालूम है कि आउटलुक बाद में माफी मांग लेगा, लेकिन फिलहाल वह एक झूठे साक्षात्कार के जरिए सनसनी फैलाने और मोदी विरोधी वामपंथी मीडिया हाउस व पत्रकारों को खुराक उपलब्ध कराने में सफल हो गया है!
भाजपा तो हमेशा से मीडिया सिंड्रोम से पीड़ित पार्टी रही है! तत्काल बिना सच जाने भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दुष्यंत गौतम ने रायजी को अज्ञानी और संकुचित मानसिकता वाला व्यक्ति तक कह दिया! कह क्या दिया, मीडिया उसके दरवाजे पहुंच गई ताकि इस मामले में भाजपा को रक्षात्मक कर विरोधियों को फायदा पहुंचाया जा सके! भाजपा के खिलाफ वामपंथी मीडिया का यह ट्रिक हमेशा कारगर रहा है! मुझे लगता है कि दुष्यंत गौतम तब शायद ठीक से राजनीति लिखना भी नहीं जानते होंगे, जब रायजी आपातकाल के विरोध में एक आंदोलन को नेतृत्व प्रदान कर रहे थे! वास्तव में भाजपा नेताओं के इसी मीडिया सिंड्रोम से पीड़ित होने का फायदा वामपंथी मीडिया हमेशा से उठाती रही है! तभी शायद भाजपा देश की अकेली ऐसी पार्टी है, जिसके खिलाफ विरोधी पार्टियों से अधिक मीडिया हाउस व पत्रकारों ने साजिशें रची हैं! आज भी रायजी के कंधे का इस्तेमाल मीडिया साजिश रचने के लिए ही तो कर रही है और भाजपा नेता मीडिया सिंड्रोम से पीड़ित शख्स की तरह रियेक्ट भी कर रहे हैं!
आज जो लोग रायजी को अपने-अपने स्वार्थ के लिए एक पत्रकार से अधिक संघ विचारक और एवीबीपी के पूर्व महासचिव के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें यह पता होना चहिए कि ‘हवाला कांड’ में तब के भाजपा नायक लालकृष्ण आडवाणी और दिल्ली के भाजपाई मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना का नाम सामने आया था, लेकिन रायजी ने अपनी कलम को कभी रुकने नहीं दिया! हवालाकांड को सबसे पहले जनसत्ता में रायजी ने ही उजागर किया था।
एनडीटीवी पर चिदंबरम के कालेधन से चलने का जो आरोप है, उसे सबसे पहले रायजी की पत्रिका ‘यथावत’ ने ही उजागर किया, जबकि अन्य मीडिया हाउस ने इसे दबाने का भरपूर प्रयास किया था। जब वह ‘प्रथम प्रवक्ता’ में थे तब बाबा रामदेव के खिलाफ कई स्टोरी कराई थी। यह बात मुझे स्वयं बाबा रामदेव ने ही बताया था और यह भी बताया था कि रायजी जैसे आदर्श पत्रकारों के कारण ही पत्रकारिता बची हुई है।
ऐसे रायजी के साथ आउटलुक ने जो फरेब किया है, वह पत्रकारिता के लिए धब्बा है! यह वही आउटलुक है, जिसे कुछ समय पूर्व भी लज्जित होना पड़ा था! भाजपा विरोध में एक के बाद दूसरा झूठ छापने का इस पत्रिका का पुराना इतिहास रहा है! वाजपेयी सरकार को गिराने के लिए भी आउटलुक व तहलका ने सबसे अधिक प्रयास किया था!
संसद के अंदर हाल ही में सांसद मोहम्मद सलीम ने आउटलुक को उद्धृत करते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह पर आरोप लगाया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कहा गया था कि ‘800 साल बाद कोई हिंदू शासक का राज देश में आया है।’ राजनाथ सिंह ने कहा था कि यदि यह साबित हो गया कि मैंने कभी यह बोला है तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा! आउटलुक से सबूत मांगा गया। चूंकि आउटलुक ने झूठ छापा था तो सबूत कहां से लाता? इसलिए उसके संपादक ने लिखित में माफी मांग ली।
कांग्रेसी-वामपंथी विचारधारा के सभी मीडिया हाउस व पत्रकारों का यही हाल है! जब से केंद्र में मोदी सरकार आयी है, यह लोग झूठ का सहारा लेकर इस सरकार को बदनाम करने की लगातार कोशिश में जुटे हैं। रामबहादुर राय जी का झूठा साक्षात्कार आउलटलुक के इसी कांग्रेसी-वामपंथी मानसिकता की उपज है, जिसने पूरी पत्रकारिता को कलंकित करने का कार्य किया है!