आप सभी को याद होगा कि हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा ने गोयनका पुरस्कार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करने के लिए कहा था कि ‘गोयनका जी ने इंडियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार को केवल इसलिए निकाल दिया था कि एक मंत्री ने उसकी तारीफ कर दी थी कि आपका पत्रकार अच्छा काम करता है!’ राजकमल झा जानते थे कि वह झूठ बोल रहे हैं, क्योंकि गोयनका जी के रखे गए कई संपादक नेहरू-गांधी परिवार के ‘पे-रोल पत्रकार’ की भूमिका निभाते रहे हैं! इसलिए यह कैसे संभव है कि गोयनका जी संपादक को तो दलाली करने की छूट देते हों और एक पत्रकार को केवल एक मंत्री की तारीफ करने मात्र के बाद निकाल देते हों?
राजकमल झा चूंकि कोई सबूत नहीं दे पाए, इसलिए अपने झूठ को सच साबित करने के लिए उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्राी जी जो मैं कह रहा हूं उसका सबूत विकीपीडिया पर नहीं मिलेगा। मैं इंडियन एक्सप्रेस के संपादक के नाते कह रहा हूं तो समझिए कि यही सच है!’ वामपंथ का उपकरण ‘छल, छद्म और फरेब’ है, इसलिए राजकमल झा जैसे वामपंथी पत्रकारों ने अपने ‘फरेब’ को सच बताकर पेश किया, जिसे अन्य वामपंथी पत्रकारों ने बार-बार अखबार व न्यूज चैनलों में उल्लेखित कर भविष्य की पीढ़ी के लिए सच बना दिया! राजकमल झा ने अपने समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया, लेकिन मैं यहां कुछ दिनों तक लगातार सबूत दूंगा कि इंडियन एक्सप्रेस के संपादकों ने किस तरह से दलालों की भूमिका निभाई थी! पहली कड़ी में कुलदीप नैयर की दलाली का सच जानते हैं!
आज इंदिरा गांधी की 100वीं जयंती है। आपको आज बताता हूं कि किस तरह से इंदिरा गांधी के लिए पत्रकार कुलदीप नैयर ने दलाल की भूमिका निभाई थी। समय समय पर विभिन्न स्रोतों से ऐसा दावा किया जाता रहा है कि पंडित नेहरू के निजी सचिव एम.ओ.मथाई के साथ इंदिरा गांधी के 12 साल तक प्रेम संबंध रहे थे! मथाई ने Reminiscences of the Nehru Age पुस्तक लिखा। यह पुस्तक 1978 में आने के कुछ दिन बाद ही बैन कर दी गई, लेकिन इसमें एक अध्याय था- ‘SHE, जिसे प्रकाशक ने पहले ही हटा दिया था, और यह हटाया था तब के इंडियन एक्सप्रेस के संपादक (न्यूज सर्विस) कुलदीप नैयर की सलाह पर! राजकमल जी के लिए यह भी बता दूं कि कुलदीप नैयर को स्वयं रामनाथ गोयनका ने रखा था, न कि किसी और ने! राजकमल जी को चाहिए कि वह कुलदीप नैयर की आत्मकथा ‘Beyond the lines’ पढ़ लें, जान जाएंगे कि किस तरह गोयनका जी के द्वारा रखे गए उस पत्रकार ने पुस्तक के मूल लेखक की जीवनी से एक अध्याय को केवल इसलिए हटवा दिया, क्योंकि उसमें मथाई और ‘SHE’ के बीच प्रेम और सेक्स संबंध का खुलकर जिक्र किया गया था!
मथाई ने अपनी पुस्तक Reminiscences of the Nehru Age में ‘SHE’ नामक अध्याय लिखा था। उन्होंने ‘SHE’ का प्रत्यक्ष नाम नहीं लिखा था, लेकिन जिस तरह से इसका जिक्र था, उससे इस आशंका को बल मिला कि कि वह ‘SHE’ इंदिरा गांधी थी! हाल ही में तत्कालीन IB निदेशक व इंदिरा गांधी के बेहद खास टी.वी.राजेश्वर (Former Intelligence Bureau chief TV Rajeswar) ने अपनी पुस्तक India The Crucial Years के प्रकाशित होने के बाद करण थापर के एक शो में यह माना था कि मथाई की पुस्तक का एक मिसिंग चैप्टर उन्होंने 1981 में इंदिरा गांधी को सुपुर्द किया। इंदिरा गांधी के जीवनी- Indira: The Life of Indira Nehru Gandhi के लेखक Katherine Frank ने बाद में स्पष्ट किया कि मथाई की पुस्तक से गायब ‘SHE’ नामक अध्याय में ‘SHE’ इंदिरा गांधी ही थी! लेकिन कुलदीप नैयर के उलट, फ्रेंक का कहना था कि ‘SHE’ नामक अध्याय को मथाई ने स्वयं नष्ट किया था!
यह अध्याय मथाई और ‘SHE’ के प्रेम और सेक्स संबंध को लेकर था। इसमें मथाई ने यह जिक्र किया था कि ‘SHE’ उनके बच्चे की मां भी बनी थी, लेकिन उसने बच्चे को बेहद गुप्त तरीके से गिरा दिया था। मथाई को SEX का संपूर्ण ज्ञान नहीं था,’SHE’ ने ही उन्हें सेक्स का संपूर्ण ज्ञान दिया! ‘SHE’ दुनिया के सामने जो चेहरा दिखाती थी, बिस्तर में वह बिल्कुल उसके उलट थी! दुनिया के सामने वह बेहद ठंढे स्वभाव वाली महिला दिखती थी ताकि दुनिया की संवेदना हासिल कर सके, लेकिन बिस्तर में वह क्लियोपेट्रा के समान सेक्स का तूफान पैदा करती थाी! मथाई की ‘SHE’ दो बच्चों की मां थी और अपने पति से अलग रहती थी। एक दिन मथाई ने ‘SHE’ को एक ‘ब्रहमचारी’ के साथ कमरे में देख लिया, जिसके बाद उन्होंने उससे संबंध समाप्त कर लिया। यहां ‘ब्रहमचारी’ का तात्पर्य धीरेंद्र ब्रहमचारी से माना गया, जो लंबे समय तक इंदिरा गांधी की योग गुरु रहे थे!
मथाई की यह पुस्तक 1978 में आई, लेकिन प्रकाशक ने उसमें से ‘SHE’ नामक अध्याय पहले ही हटा दिया था और लिखा था कि चूंकि यह अध्याय लेखक के निजी संबंधों को दर्शाता है इसलिए इसे हटा दिया गया है। इस अध्याय को हटवाया था पत्रकार कुलदीप नैयर ने, जो उस समय इंडियन एक्सप्रेस के संपादक (न्यूज सर्विस) थे, जिसकी नियुक्ति स्वयं रामनाथ गोयनका ने उन्हें नाश्ते पर बुलाकर की थी!
कुलदीप नैयर ने अपनी जीवनी ‘बियॉन्ड द लाइन्स’ में लिखा है कि वह अपनी पुस्तक ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’ को लिखने के क्रम में एम.ओ.मथाई से मिले। मथाई ने उनके समक्ष यह शर्त रखी कि वह उन्हें सबकुछ बताएंगे, लेकिन शर्त यही है कि वह किताब में सबकुछ सच-सच लिखेंगे! मथाई साक्षात्कार के बाद अपने कहे एक-एक शब्द के लिए उनके नोट्स पर हस्ताक्षर तक करने को तैयार थे, लेकिन कुलदीप नैयर उनके पास फिर गए ही नहीं! उनहें शायद डर लग गया कि कहीं सच लिखना न पड़ जाए! यही नहीं, स्वयं रामनाथ गोयनका ने कुलदीप नैयर को इंदिरा-फिरोज गांधी के बीच के खराब रिश्तों के बारे में बताया था, लेकिन कुलदीप नैयर ने इसके बावजूद ‘SHE’ को छुपाने में भूमिका अदा की!
बाद में कुलदीप को पता चला कि मथाई ने पुस्तक लिखी है। मथाई की पुस्तक का प्रकाशक भी वही था, जो कुलदीप की पुस्तक का प्रकाशक था। पुस्तक में कुलदीप नैयर को भी एक्सपोज किया गया था, इसलिए भी प्रकाशक ने अपने एक लेखक व इंडियन एक्सप्रेस के संपादक कुलदीप नैयर को पांडुलिपि पढ़ने के लिए भेजा। कुलदीप ने उस किताब से ‘शी’ नामक अध्याय को हटाने का सुझाव दिया, जिसे प्रकाशक मान गया। कुलदीप के शब्द पढिए- ‘मैंने प्रकाशक को सलाह दी कि वे सिर्फ ‘शी’ नामक अध्याय को हटाकर मथाई की किताब को प्रकाशित कर सकते थे। इस अध्याय में मथाई ने उक्त महिला के साथ अपने प्रेम संबंधों का वर्णन किया था। मुझे यह वर्णन बहुत घटिया लगा।’
कुलदीप के कहने पर ‘SHE’ चैप्टर को हटा दिया गया। बाद में किसी ने कुलदीप सहित उस समय के सारे अखबार के संपादकों के टेबल पर ‘शी’ चैप्टर पहुंचा दिया, लेकिन तत्कालीन सभी संपादकों ने इस न्यूज को दबा दिया। सुन रहे हैं न झूठ बोलने वाले राजकमल झा! आपके इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस खबर को दबा दिया था! इसलिए पत्रकारिता के झूठे मशाल जलाने का दावा न करें! मोदी सरकार में अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने का नारा बुलंद करने वाले रवीश कुमार, राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त, सागरिका घोष, सिद्धार्थ वरदराजन जैसे लेफ्ट लिबरल पत्रकारों को यह सब पता है कि किस तरह उन्होंने इंदिरा के समक्ष घुटने टेके थे, लेकिन आज शोर मचा कर अपने काले चेहरे को सफेद दिखाने की कोशिश कर रहे हैं!
हां तो, मथाई की उस ‘SHE’ का राज उस समय खुल गया, जब 1980 में जनता पार्टी की सरकार के बाद दोबारा इंदिरा गांधी सत्ता में आई और आईबी के अधिकारी एक-एक अखबार के दफ्तार में पहुंचे कि उस अध्याय ‘शी’ को जारी किसने किया और अभी वह कॉपी किसके-किसके पास है, ताकि उसे नष्ट किया जा सके? कहा जाता है कि इंदिरा ने मथाई को राज्यसभा में भी नोमिनेट नहीं किया, जबकि उनके भेजे जाने की उस समय चर्चा थी। कुलदीप ने एक कांग्रेस नेता के हवाले से लिखा है कि इंदिरा ने अपने हाथ से मथाई का नाम काट दिया! इससे उस चर्चा को काफी बल मिला कि ‘SHE’ शायद इंदिरा ही थी, जो मथाई से बदला ले रही! कहा जाता है संजय गांधी की मृत्यु के बाद इंदिरा-मेनका से संबंध बिगड़ने पर मेनका के यहां से किसी ने ‘SHE’ चैप्टर को मीडिया में जारी कर दिया, लेकिन तब भी अखबरों ने इस पर पर्दा डालने का काम किया!
अखबारों और संपादकों द्वारा बार-बार इस ‘SHE’ नामक अध्याय को दबाए जाने के कारण भी इस संदेह को बल मिला कि ‘शी’ और कोई नहीं इंदिरा गांधी ही थी, जिससे कई संपादकों व अखबारों के निजी संबंध थे, तो कई आपातकाल में उनके द्वारा मीडिया को कुचले जाने के भय से अभी भी नहीं उबरे थे!
सोचिए, एक व्यक्ति की जीवनी से उसके अध्याय को हटवा दिया गया? एक व्यक्ति ने उस अध्याय में खुलकर उस महिला का नाम भी नहीं लिखा, केवल ‘शी’ लिखा था, इसके बावजूद पत्रकारों ने दलाली की और उसे छापने से मना कर दिया! प्रकाशक ने पुस्तक से बिना उसकी मर्जी के वह अध्याय हटा दिया! तब भी गांधी परिवार के लिए मीडिया तड़पती रहती है! इसी से इस देश की मीडिया व पत्रकारों का पालतूपन झलकता है!
मिस्टर राजकमल झा, इंडियन एक्सप्रेस के तत्कालीन संपादक का आचरण दलाली भरा था कि नहीं, बताएं? दलाली केवल पैसे लेना नहीं होता, चाटुकारिता और सत्ता से नजदीकी के लिए में खबर दबाना भी होता है! साक्षाकार देने वाले मथाई नोट्स पर हस्ताक्षर तक करने को तैयार थे, लेकिन तब भी साक्षात्कार नहीं किया, यह दोगला रवैया है कि नहीं? आईबी अधिकारी जब इसकी पूछताछ करने पहुंचे तो इस खबर को भी नहीं छापा कि आईबी एक पुस्तक के एक अध्याय के बारे में हर अखबार में पूछताछ करती हुई फिर रही है? यह ‘पीत पत्रकारिता’ की श्रेणी में आता है कि नहीं, बताएं? यह इंडियन एक्सप्रेस के संपादक द्वारा किए गए गोल्ड मैडल सदृश्य कर्म था क्या?
मैंने वह ‘SHE’ चैप्टर पूरा पढ़ा है और कह सकता हूं कि कोई भी व्यक्ति अपने प्रेम और सेक्स संबंध का जिक्र अपनी जीवनी या जीवनी सदृश्य पुस्तक में करने के लिए स्वतंत्र है। राजकमल झा, पीएम मोदी पर हमला करने के लिए जैसे आज की पत्रकारिता को सेल्फी पत्रकारिता कह रहे हैं, वैसे ही इस सबूत से जाहिर होता है कि नेहरू-गांधी परिवार के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने तब ‘पेटिकोट पत्रकारिता’ की थी! सही है कि नहीं? इंडियन एक्सप्रेस व उसकी पत्रकारिता पर अगला खुलासा अगली कड़ी में शीघ्र, खासकर राजकमल झा व उन जैसे लेफ्ट लिबरल पत्रकारों के लिए….
फिर आज इस She चैप्टर को सार्वजनिक क्यों नही किया जाता। हमे भी जानने का हक है। कँहा मिलेगा यह चैप्टर?? हमे भी पढ़ना है।
Thanks for the job you are going . Information kept unknown till date is being made available