जो व्यक्ति चार साल पहले लगातार दस वर्षों तक केंद्र की सत्ता के इतर एक समानांतर सत्ता का सर्वेसर्वा रहा हो। अपने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के फैसले का सरेआम अवमानना किया हो। वही व्यक्ति अपनी ही सरकार द्वारा लिए गए फैसले को भूल जाए और मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करे तो उसकी मंशा पर संदेह होना लाजिमी है!
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कल अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में हुई बहस के दौरान रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर रफेल डील की जानकारी नहीं देने का जो आरोप लगाया है उसमें भयंकर षडयंत्र दिखता है! क्या राहुल गांधी मोदी सरकार से रक्षा सौदी की जानकारी हासिल कर उसे पाकिस्तान और चीन तक पहुंचाना चाहते हैं? यह सवाल इसलिए मौजूं है क्योंकि उन्हीं की सरकार ने साल 2007 में सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी और भागिरथ मांझी द्वारा अलग-अलग तारीख पर रक्षा सौदे के मामले में मांगी गई जानकारी देने से मना कर दिया था। तत्कालीन रक्षामंत्री एक एंटनी ने लिखित जवाब देते हुए कहा था कि देश हित में जुड़े होने के कारण रक्षा सौदे की जानकारी सदन के पटल पर नहीं रखी जा सकती है। आखिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की चीन से गुपचुप बैठक और पाकिस्तान में जाकर उनके नेताओं द्वारा मोदी सरकार को गिराने की मंशा से देश अवगत पहले ही हो चुका है। इसलिए संदेह लाजिमी है!
मुख्य बिंदु
* 9 मई 2007 को भागिरथ माझी ने तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी से रक्षा सौदे का मांगा था विवरण
* 22 अगस्त 2007 को सीताराम येचुरी ने इजराइल से मिसाइल सौदे की मांगी थी विस्तृत जानकारी
* तत्कालीन रक्षा मंत्री एंटनी ने देश की सुरक्षा का हवाला देकर दोनों को विवरण देने से कर दिया था मना
सबसे पहले 2007 में नौ मई को भागिरथ मांझी ने संसद में रक्षामंत्री एके एंटनी से लिखित रूप में जवाब मांगा था कि क्या मनमोहन सरकार ने रक्षा मामले से जुड़ी कच्ची सामग्री समेत अन्य जरूरी चीजों का आयात किया है? अगर हां तो कौन सी चीजें आयात की गई हैं और किन देशों से की गई हैं? भागिरथ मांझी ने यह भी पूछा था कि जिन चीजों का आयात हुआ है उसकी कीमत क्या है? जो चीजें आयात की गई हैं क्या उसका निर्माण हम अपने देश में कर सकते थे या नहीं?
माझी के उपरोक्त सवालों का जवाब देते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने अपने जवाब में जिन देशों से चीजें आयात हुई थी उन देशों का नाम तो बताया लेकिन उन चीजों से जुड़ी अन्य विस्तृत विवरण देने से मना कर दिया था। उन्होंने लिखित जवाब दिया था जिसमें लिखा हुआ है कि देश की सुरक्षा के हितों को देखते हुए यह जानकारी संसद के पटल पर नहीं रखी जा सकती है।
एक बार फिर,साल वही लेकिन महीना अगस्त का था। प्रश्नकर्ता कोई और नहीं बल्कि उनकी सरकार को समर्थन दे रही पार्टी सीपीएम के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी थे। उन्होंने 22 अगस्त को तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी से प्रश्न किया था कि क्या यह तथ्य सच है कि सरकार इजराइल से अलग-अलग स्तर की मिसाइलें खरीद रही हैं? अगर ऐसा है तो फिर इसके लिए कितने बजट मंजूर हुए हैं तथा इस संदर्भ में कितना खर्च किया जा रहा है उसका विवरण दिया जाए। उन्होंने पूछा था कि क्या इजराइल से जो मिसाइलें खरीदी जा रही हैं उससे हमारे देसी मिसाइल सिस्टम पर प्रभाव नहीं पड़ेगा? अगर नहीं पड़ेगा तो उसका पूरा विस्तृत विवरण दिया जाए।
एके एंटनी ने येचुरी के प्रश्नों का लिखित जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि मिसाइल समेत रक्षा से जुड़ी चीजों का देसी स्तर पर अलग-अलग जगहों पर प्रबंध किया जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही इजराइल समेत अन्य देशों से भी इसके लिए व्यवस्था होती रही है। अपने सैन्य बलों को आधुनिक बनाने तथा किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए तत्पर रखने के लिए रक्षा मामले का विभाग को किसी भी स्थिति में हर क्षण किसी अनहोनी से निपटने में सक्षम बनाने के लिए लिए रक्षा प्रबंध एक निरंतर प्रक्रिया है। लेकिन इस संदर्भ में जुड़े विस्तृत विवरण सदन के पटल पर नहीं रखे जा सकते हैं क्योंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है।
अब सवाल उठता है कि जब सोनिया गांधी नियंत्रित यूपीए सरकार के रक्षा मंत्री एके एंटनी ने देश की सुरक्षा के हित को ध्यान में रखकर विस्तृत जानकारी देने से मना कर दिया तो, फिर राहुल गांधी आखिर रफेल डील की पूरी जानकारी हांसिल करने को इतने आतुर क्यों हैं? क्यों वे अपनी ही सरकार के समझौते का मान नहीं रख पाए? क्या इससे उनकी मंशा पर सवाल नहीं खड़ा होता है? क्या ये शंका निर्मूल है कि उनकी इस हरकत से दुश्मन देशों को लाभ पहुंच सकता है? खासकर तब जब उनका और उनकी पार्टी का हर बयान पाकिस्तान को फायदा पहुंचाने वाला साबित हो रहा हो? मणिशंकर अय्यर, गुलाम नबी आजाद, सैफुद्दीन सोज, सलमान खुर्शीद जैसे कांग्रेसी नेताओं ने अपने बयान से हमेशा पाकिस्तान केा फायदा पहुंचाया है! खुद राहुल गांधी डोकलाम विवाद के समय गुपचुप तरीके से चीनी दूतावास में बैठक करते पकड़े गये हैं। ऐसे में कांग्रेस को स्पष्ट करना चाहिए कि वह सत्ता खोने के बाद देश से खिलवाड़ तो नहीं कर रही है?
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