जो लोग धार 370 और आर्टिकल 35-ए को भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच निकाहनामा मान रहे हैं वे न तो कश्मीर के इतिहास को जानते हैं न ही भारत में जम्मू एवं कश्मीर के हुए विलय के बारे में कुछ जानते हैं। देश के तथाकथित बुद्धिजीवी बस वर्तमान राजनीतिक लाभ के लिए राजा हरि सिंह के राजतिलक से लेकर विलय के करार पर हस्ताक्षर तक की घटना को भूल जाते हैं। यह वही करार था जिस पर राजा हरि सिंह ने हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय की मंजूरी दी थी।
मुख्य बिंदु
* जब राजा हरि सिंह के हस्ताक्षर से कश्मीर का विलय भारत में हुआ तो धारा 35-ए के हट जाने से अलग कैसे हो सकता?
* जब भारतीय संविधान में धारा 370 और 35-ए का प्रावधान किया गया उसके 5 साल पहले से कश्मीर भारत का हिस्सा है
देश का संविधान 1952 में लागू हुआ, जबकि कश्मीर का भारत में विलय का करार 1947 में हुआ था। अब ऐसे में विलय का करार महत्वपूर्ण है या फिर संविधान? ध्यान रहे जब भारत का संविधान बना और उसमें धारा 370 तथा 35-ए का प्रावधान जोड़ा गया तब तक जम्मू-कश्मीर का देश में विलय हुए पांच साल गुजर चुके थे।
लेकिन देश के अलगाववादी समर्थक नहीं चाहते कि देश की जनता जम्मू-कश्मीर और भारत के विलय के इतिहास के बारे में जाने। ये लोग राजनीतिक साजिश के तहत उस सच को ही भुला देना चाहते हैं। लेकिन सच्चाई किसी तरह सामने आ ही जाती है। ऐसा ही एक सच राजा हरि सिंह के राजतिलक के रूप में सामने आया है।
कश्मीर में राजा #हरि_सिंह के राजतिलक का 93 वर्ष पुराना ये दुर्लभ VDO ये बताता है और दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर में हिन्दू बहुसंख्यक था और वहां का राजा भी हिन्दू था।
नेहरू ने अपनी हठधर्मी के चलते धारा 370 व 35A लगाकर हिंदुओं के साथ विश्वासघात किया।
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— ??️ अरुण वाजपेयी #राजन ?️? (@ArunbajpaiRajan) October 15, 2018
गौरतलब है कि जब देश स्वतंत्र हुआ तब 565 रियासतों का स्वतंत्र अस्तित्व था। अंग्रेजी हुकूमत ने सभी को अपनी मर्जी से पाकिस्तान और भारत में से एक के साथ जाने का अधिकार दिया था। पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की दूरदृष्टि और चतुराई की वजह से अधिकांश रियासतों ने भारत में रहने की हामी भर दी। लेकिन जम्मू एवं कश्मी के राजा हरि सिंह ने अलग अस्तित्व रखने का फैसला किया। लेकिन जब अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबाइलियों ने जम्मू-कश्मीर में हमला कर लूटपाट मचाना शुरू कर दिया।
तभी हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। लेकिन पटेल ने जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय करने की शर्त पर मदद करने का आश्वासन दिया। राजा हरि सिंह ने विलय के करार पर हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर को वैध तरीके से भारत में विलय कर दिया। तब भारत की सेना ने पाकिस्तान कबीलों से कश्मीर को मुक्त कराया। राजा हरि सिंह के हस्ताक्षर के साथ ही कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा बन गया। लेकिन जब तक भारत का संविधान अस्तित्व में आता सरदार का देहांत हो चुका था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सरदार के अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए संविधान में जम्मू कश्मीर के लिए धारा 370 और 35-ए का अलग प्रावधान कर दिया।
जम्मू-कश्मीर के लिए अलग धारा का प्रावधान संवैधानिक प्रक्रिया के तहत भी नहीं जो़ड़ा गया, इसलिए उस प्रावधान को अभी तक असंवैधानिक माना जाता है। तभी से अलगाववादी ने इन दो धाराओं को भारत और कश्मीर के बीच निकाहनामा बताने का प्रचार करना शुरू कर दिया। ताकि देशवाशियों को यह बताया जा सके कि जैसे ही धारा 370 और 35-ए को हटाया गया वैसे ही जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रह पाएगा। जबकि सच्चाई यह है कि इन दो धाराओं के अस्तित्व में आने से करीब पांच साल पहले जम्मू-कश्मीर पूरे वैध तरीके से भारत का हिस्सा बन चुका था। इसलिए धारा-370 और 35-ए रहे या न रहे लेकिन जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा बना रहेगा।
URL: Jammu and Kashmir will remain an integral part of India, whether it is article 370 and 35-A or not!
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