विकास सारस्वत, जो एक उद्यमी होने के साथ ही लेखक भी है, ने ट्वीट के सहारे खुलासा किया है कि जावेद अख्तर का खानदान कितना कट्टरवादी रहा है। उन्होंने खुलासा किया है कि जावेद अख्तर ने अंग्रेजों से माफी मांगने का जो आरोप भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अगली पंक्ति में खड़े रहने वाले स्वातंत्र्यवीर, वीर सावरकर पर लगाते रहे हैं वह झूठ पर आधारित है, बल्कि सच्चाई तो यह है कि जावेद अख्तर के दादा मौलवी खैरावादी ने भरी अदालत में अंग्रेजों से न सिर्फ माफी मांगी थी बल्कि कभी उसका विरोध न करने की कसम भी खाई थी।
मुख्य बिंदु
* सेक्युलरवाद का मुखौटा लगाने वाले जावेद अख्तर के दादा मौलवी खैरावादी ने अंग्रेजों से कोर्ट में मांगी थी माफी
* सवाल उठता है कि फतवा जारी कर जिहाद को हरेक मुसलमान के लिए जरूरी बताने वाले मौलवी खैरावादी को स्वतंत्रता सेनानी कहा जा सकता है?
सेक्युलरवाद का पाखंड करने वाले जावेद अख्तर अक्सर कहा करते हैं कि सेक्युलरवाद उनके बाप-दादा की विरासत के रूप में मिली है। अपने बाप-दादा की विरासत पर फक्र करने वाले जावेद अख्तर संघ को कट्टरवादी संस्था बताने के साथ हिन्दू महासभा के अध्यक्ष वीर सावरकर पर अंग्रेजों से माफी मांगने का आरोप लगाते हुए देश के हिंदुओं को अपमानित करते रहते हैं। लेकिन जावेद अख्तर ने अपने दादा की असली कहानी कभी देश के सामने नहीं रखी। जबकि सच्चाई यह है कि उनके दादा मौलवी खैरावादी ने कोर्ट में अंग्रेजों से न केवल ब्रटिश हुकूमत के खिलाफत के लिए माफी मांगी बल्कि यह कसम भी खाई थी कि भविष्य में वह कभी अंग्रेजों का विरोध नहीं करेंगे। इतना ही नहीं खैरावादी ने कोर्ट में अपना गुनाह अपने हमनाम किसी शख्स पर लगा दिया। और फिर उसके लिए कोर्ट के सामने अफसोस जताया था।
Now this is poetic. Javed Akhtar took a pot shot at Savarkar by claiming Savarkar wrote a mercy petition to Britishers to escape Kala Pani. Turns out Akhtar's great grand father Moulvi Fazle Haq Khairabadi did the same. Thanks @DriverRamudu for the input https://t.co/v1k84eiDZZ https://t.co/tG6hvm5f3C
— VikasSaraswat (@VikasSaraswat) November 11, 2018
जबकि जावेद अख्तर अक्सर अपने बाप-दादा के बारे में बताते हुए कहा करते हैं कि वे स्वतंत्रता सेनानी थे। देश के लिए उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी थी। जबकि सच्चाई यह है कि उनके दादा मौलवी खैरावादी ने ही फतवा जारी कर हरेक मुसलमान के लिए जिहाद में हिस्सा लेना जरूरी बताया था। सवाल उठता है कि जिहाद में मुसलमानों को भाग लेने के लिए फतवा जारी करने वाला खैरावादी जैसा शख्स कभी स्वतंत्रता सेनानी हो सकता है?
जिस शख्स ने मुसलमानों के लिए जिहाद में शामिल होने का फतवा जारी किया हो, जो मुसलमानों, महिलाओं और बच्चों के नरसंहार करने का हिमायती हो, जो न सिर्फ तैमूर राजवंश को नष्ट करने बल्कि पूरे मुसलमानों को नष्ट करने की बात कहता हो क्या ऐसा शख्स स्वतंत्रता सेनानी हो सकता है? लेकिन जावेद अख्तर को अपने ऐसे कट्टरवादी दादा के स्वतंत्रता सेनानी होने पर नाज है। जबकि मौलवी खैरावादी पर आरोप है कि उन्होंने खुद बचने के लिए अपने ही समुदाय के हमनाम किसी शख्स पर अपना गुनाह थोप दिया था।
सारस्वत ने अपने ट्वीट में यह भी लिखा है कि यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि खैरावादी की खुद की स्वीकारनाम अर्जी से हुआ है। खैरावादी ने कोर्ट को जमा कराए माफीनामा में लिखा था। यह माफीनामा बरेली के पूर्व तहसीलदार फजल हक के पास अवश्य होना चाहिए। खैरावादी ने अपने माफीनामा में लिखा था कि आंदोलन से पहले उन्होंने अलवर के महाराजा के पास पांच सालों तक नौकरी की थी, लेकिन इस बीच कुछ समय के लिए वह अपने घर जरूर आए थे लेकिन उन्होंने न तो कहीं नौकरी की न ही किसी बागी से मिले। जब उनका खुद का स्वीकारनामा ऐसा है तो फिर सवाल उठता है कि उन्हें स्वतंत्रता सेनानी किसने बना दिया? अब तो जावेद अख्तर से सवाल पूछा जाना चाहिए कि कहीं अपने पुरखों की लाज बचाने के लिए ही तो उन्होंने क्षद्म सेकुलरवाद का लबादा नहीं ओढ़ रखा है?
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