कर्नाटक में चल रहे नाटक को लेकर कांग्रेस बार-बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही है और बार-बार उसे खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। प्रोटेम स्पीकर बदलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गई कांग्रेस पार्टी की तो इस बार और भद पिट गई। जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय बेंच ने उसकी याचिका ही खारिज कर दी। लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही कि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बोबडे ने कपिल सिब्बल और कांग्रेस को उनके अतीत का आईना दिखा दिया। कांग्रेस की तरफ से कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा और प्रोटेम स्पीकर के.जी बोपैया को बहुमत परीक्षण कराने की इजाजत न दिए जाने की मांग की। कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा, ‘सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाने की परंपरा रही है, लेकिन पुरानी परंपरा कर्नाटक में तोड़ी गई है और सुप्रीम कोर्ट पहले भी दो फैसलों को ठीक कर चुका है।’ कपिल सिब्बल की इस दलील पर जस्टिस बोबडे ने टिप्पणी की और कहा कि ‘ऐसे भी कई उदाहरण हैं जहां वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नहीं बनाया गया।’ कोर्ट की यह टिप्पणी आने के बाद कपिल सिब्बल को अपनी दलील बदलनी पड़ी
सुनवाई के दौरान कांग्रेस को न अपनी गलती माननी पड़ी बल्कि अपनी याचिका वापस लेनी पड़ गई। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में उसकी किसी भी याचिका पर कोई फैसला नहीं दिया गया, बल्कि कांग्रेस की दोनों मांगें अस्वीकार कर दी गई। अब यह तय हो गया है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस यदुरप्पा अपना बहुमत प्रोटेम स्पीकर केजी बोपैया के निर्देश पर ही साबित करेंगे।
मुख्य बिंदु
* बीच कोर्ट में जज ने कांग्रेस और उसके वरिष्ठ वकील सिब्बल का विरोधाभास उजागर किया
* जज ने कहा, प्रोटेम स्पीकर पर सवाल उठा रहे हैं और उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं देना चाहते
* वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के बुने जाल में एक बार फिर फंस कर रह गई कांग्रेस
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने बीच कोर्ट में कांग्रेस के विराधाभास को उजागड़ कर दिया। जज ने कांग्रेस के वकील सिब्बल से कहा कि आप विरोधाभासी दलील दे रहे हैं। एक तरफ आप प्रोटेम स्पीकर पर सवाल भी खड़ा कर रहे हैं और दूसरी उन्हें अपना पक्ष रखने देने का मौका भी नहीं देना चाहते। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं। क्योंकि आप जब सवाल उठाएंगे तो हमे पहले बोपैया की जांच करनी होगी और इसके लिए विधानसभा में होने वाली शक्ति परीक्षण रोकनी पड़ेगी। इस पर कांग्रेस अपने बुने जाल में खुद फंस गई। और अंत में सिब्बल को अपनी याचिका वापस लेना पड़ा।
दरअसल कांग्रेस बौखला चुकी है। उसने राज्यपाल पर परंपरा तोड़ने का आरोप लगाते हुए बोपैया को प्रोटेम स्पीकर नहीं बनाने की सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। जबकि सचाई ये है कि बोपैया पहले भी प्रोटेम स्पीकर रह चुके हैं। ऐसे में वजुभाई वाला ने तो परंपरा के अनुसार ही बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बनाया है। इस प्रकार कांग्रेस को वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में एक बार फिर नीचा दिखाया है। लगता है सिब्बल ने ठान लिया है कि वह कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ेंगे। इसके बावजूद सिब्बल का कहना है कि कोर्ट ने विधानसभा के लाइव प्रसारण की उनकी मांग पर मुहर लगाई है। वहीं इस मामले भाजपा की ओर से दलील रखने वाले वरिष्ठ वकील पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी का कहना है कि कांग्रेस अपनी हारी हुई बाजी कोर्ट में लेकर पहुंची थी, इसलिए कांग्रेस की याचिका पर उन्हें कुछ बोलना ही नहीं पड़ा, जजों के सवाल-जवाब के दौरान ही कांग्रेस के वकील सिबब्ल को पीछे हटना पड़ा।
एसे में कर्नाटक विधानसभा में शक्तिपरीक्षण के दौरान प्रोटेम स्पीकर का पद और दायित्व दोनों ही काफी अहम हो गए हैं। पारंपरिक रूप से प्रोटेम स्पीकर की नियुक्त विधानसभा के सदस्यों की आपसी सहमति से होती है। प्रोटेम स्पीकर का पद अस्थाई होता है जो अध्यक्ष के चुनाव होते ही खत्म हो जाता है। वे सिर्फ सदन के अध्यक्ष चुने जाने तक अपना दायित्व निभाते हैं।
मालूम हो कि बोपैया साल 2008 में भी प्रोटेम स्पीकर रह चुके हैं, लेकिन उस समय न तो हंगामा हुआ था न ही ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई थी। उस समय तो वे और भी छोटे रहे होंगे। लेकिन इस बार कांग्रेस ने उन पर सवाल उठाकर प्रोटेम स्पीकर के पद को भी बदनाम करने का प्रयास किया है। दरअसल कांग्रेक अपने विधायक आरवी देशपांडे को प्रोटेम स्पीकर बनाना चाहती थी, ताकि बहुमत साबित करने की प्रक्रिया को प्रभावित किया जा सके।
इतनी विकट परिस्थिति में भी भाजपा ने अपने एक विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया है, जबकि उसके लिए एक-एक विधायक कितने कीमती हैं। इससे भी स्पष्ट होता है कि वह बहुमत साबित करने को लेकर काफी आश्वस्त है।
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