दो सरकारें, दो प्राकृतिक आपदाएं, दोनों की तीव्रता एक समान। फर्क देखिये। इतनी विनाशकारी बाढ़ में 29 लोग मरते हैं। यदि मौसम विभाग, राज्य और केंद्र का समन्वय नहीं होता, सेना को समय पर अलर्ट पर न लिया होता तो एक और ‘केदारनाथ’ दोहराया जा सकता था। केरल की बाढ़ ने बहुत विनाश मचाया है लेकिन साथ ही साथ मौजूदा तंत्र ने प्रशंसनीय काम कर जनता का भरोसा भी जीता है। ये शानदार रेस्क्यू दिखाता है कि वर्तमान एनडीए सरकार के शासनकाल में व्यवस्थाएं कितनी चाक-चौबंद हैं। केरल की महाभयंकर बाढ़ के सामने हमारा हौंसला डटकर खड़ा हो गया है।
वह 13 जून 2013 की सुबह थी। देहरादून के भारतीय मौसम विभाग के अधिकारियों ने ताज़ा रीडिंग देखी तो उनके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई। रीडिंग भयावह तस्वीर पेश कर रही थी। रीडिंग के मुताबिक अगले तीन दिन में पहाड़ों पर भयंकर जानलेवा बारिश होने की आशंका सघन थी। मामले की गंभीरता समझते हुए उसी दिन मौसम विभाग ने तुरंत मुख्यमंत्री निवास पर ये सूचना दी कि चार धाम यात्रा को किसी भी हाल में रोका जाए। सूचना में कहा गया कि संभावित खतरे के संकेत इतने स्पष्ट हैं कि युद्धस्तर पर एक्शन की जरूरत है। अनुभवहीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और उनके अधीनस्थों ने इस चेतावनी को गंभीरता से न लेते हुए फाइलों में बंद कर दिया। तबाही के नुकीले दांत केदार घाटी की ओर बढ़े चले जा रहे थे और हज़ारों लोगों की जान बचाने वाली चेतावनी सरकारी दफ्तर की अलमारी में बंद हो चुकी थी।
मौसम विभाग को उन हज़ारों भक्तों की चिंता थी जो खतरे से बेखबर केदारनाथ की ओर चले जा रहे थे या पहुँच चुके थे। मौसम विभाग ने एक और कोशिश की। मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा के हवाले से 15 जून के अमर उजाला अख़बार में एक खबर प्रकाशित की गई। खबर में साफ़ लिखा था यात्रा रोकी जाए। पहाड़ों पर भारी बारिश होगी। चेतावनी राज्य के स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरटी और आईजी इंटेलीजेंस को भी भेजी गई थी।
राज्य सरकार और इंडो तिब्ब्बतियन बॉर्डर पुलिस के पास भी इस बात की सूचना थी। ऐसा नहीं था कि मौसम विभाग एक बार ही चेतावनी देकर चुप बैठ गया। 16 जून को तबाही वाले दिन तक चेतावनी अपडेट करके दी जाती रही। पहले चेतावनी में कहा गया था कि चारधाम यात्रा के आसपास भारी बारिश हो सकती है। कुछ क्षेत्रों में भू स्खलन भी संभव है। 16 जून की चेतावनी में स्पष्ट निर्देश थे कि यात्री सुरक्षित स्थानों पर लौट जाए। पहाड़ों की ओर बिलकुल न जाए।
आधुनिक डॉप्लर रडार सिस्टम न होने के बावजूद मौसम विभाग ने सटीक भविष्यवाणी की थी लेकिन राज्य के आपदा प्रबंधन और राज्य सरकार ने चेतावनी पर अमल नहीं किया। उस रात की तबाही में पांच हज़ार से अधिक लोग मारे गए। पचास हज़ार से ज्यादा लापता हो गए। कितनों के शव पहाड़ी जंगलों में पड़े-पड़े कंकाल बन गए। उस वीभत्स त्रासदी को देश आज भी नहीं भूला पाया है।
उस दौर की सरकार के निकम्मेपन का आदर्श उदाहरण देना हो तो केदारनाथ की तबाही का दिया जा सकता है। ये सभी लोग बचाए जा सकते थे। चेतावनी तीन दिन पहले जारी हो चुकी थी। सरकार चाहती तो एक भी आदमी नहीं मरता। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बेशर्मी से इंकार कर दिया कि मौसम विभाग ने कोई चेतावनी ही नहीं भेजी थी जबकि ग्रीन ट्रिब्यूनल में दर्ज जानकारी बताती है कि विजय बहुगुणा झूठ बोल रहे थे।
उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार तबाही का फायदा उठाने से भी नहीं चूकी। लोग पहाड़ों पर भूख से मरते रहे और राज्य सरकार के अफसर सात हज़ार रूपये रोज के होटल में मटन-चिकन का आनंद उठा रहे थे। आरटीआई के जरिए राहत और बचाव कार्य में बड़े वित्तीय घोटाले की बात का भी खुलासा हुआ। केदारनाथ त्रासदी के नाम पर जबरदस्त लूट मची और फर्जी बिलों के जरिए भुगतान कराया गया। जिस ढंग से लाशों को गिद्ध नोंच खाते हैं, वैसे ही राज्य सरकार ने भी किया। राहत की राशि में जबरदस्त घोटाला किया गया। यदि सेना का साथ न मिलता तो मरने वालों की संख्या बहुत अधिक होती।
आज पांच साल बाद स्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। घटना की पांचवी बरसी पर केदारनाथ में दर्शन के लिए छह लाख से ज्यादा लोग पहुंचे। अब मौसम विभाग की चेतावनियों को गंभीरता से लिया जा रहा है। आपदा प्रबंधन की टीम अलर्ट पर रहती है। प्रशासन, राज्य सरकार और मौसम विभाग तालमेल के साथ काम कर रहे हैं। जब आपदा प्रबंधन ईमानदारी से काम करता है तो क्या स्थिति बनती है ये केरल की बाढ़ से बखूबी समझा जा सकता है।
केरल में पिछले दो दिनों से जारी अनवरत बरसात ने बांधों, सरोवरों और नदियों को बाढ़ग्रस्त कर दिया है। सैकड़ों घर और राजमार्गो के कई हिस्से टूटकर पानी में बह गए हैं। राज्य की 40 नदियां विकराल रूप धारण किए हैं। इसके चलते राज्य में अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 54 हजार लोग बेघर हो गए हैं। बारिश ने पिछले पचास साल का रिकार्ड तोड़ दिया है।
इस विनाशकारी बाढ़ से तबाही कई गुना हो सकती थी यदि केंद्र और राज्य सरकार का समन्वय नहीं हुआ होता। जिन 29 लोगों की मौत हुई, उनमे से 24 तो भू स्खलन में मारे गए। राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन के साथ सेना की पांच टुकड़ियां राहत कार्य में मदद कर रही हैं। नौसेना की दक्षिणी कमान को भी अलर्ट कर दिया गया है। 53,501 बेघर लोगों को अब राज्य भर में 439 राहत शिविरों में रखा गया है। केरल की मदद के लिए केन्द्र सरकार लगातार राज्य सरकार के संपर्क में है और पड़ोसी राज्यों ने भी केरल को मदद पहुंचानी शुरू कर दी है।
केरल में सेना के करीब 800 जवान, बचाव कार्य में लगे हैं। जहां सड़कें टूटी हुई थीं, वहां इन जवानों ने तुरंत गिरे हुए पेड़ों से ही अस्थाई पुल तैयार कर दिए। नौसेना के 150 जवानों को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा गया है। पिछले दो दिनों से केरल के मुन्नार में 50 से ज्यादा पर्यटक फंसे हुए थे। अब इन सभी पर्यटकों को निकाल लिया गया है। यहां 24 विदेशी पर्यटक भी थे, जिनमें रूस, सऊदी अरब और ओमान के पर्यटक शामिल थे।
URL: Kerala floods: State and Modi Government’s excellent coordination for rescue work
Keywords: Kerala Rains, Kerala Flood, Kerala Flood 2018, modi government, Rescue Opretaion, Uttarakhand floods 2013, 2013 North India floods, Rescue Opretaion, Kerala, Bjp VS Congress Leadership, केरल, केरल में बाढ़, उत्तराखंड बाढ़ 2013, बारिश, मोदी सरकार,