क्या आप जानते हैं कि देश में सबसे पहले लिक्विड फ्यूल रॉकेट टेक्नोलॉजी की शुरुआत किसने की थी? क्या आप जानते हैं कि देश में सबसे पहले लिक्विड प्रोपेलैंट मोटर का विकास किसने किया था? जवाब है एस नंबी नारायण… नारायण ही इसरो के वह वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 1970 की शुरुआत में तब लिक्विड फ्यूल रॉकेट टेक्नोलॉजी की शुरुआत की थी जब एपीजे अब्दुल कलाम की टीम सॉलिड मोटर पर ही काम कर रही थी। नारायण ही वह वैज्ञानिक हैं जिन्होंने देश में क्रायोजेनिक इंजन आधारित फ्यूल के विकास का बीड़ा 1992 तब उठाया था, जब अमेरिका और फ्रांस के दबाव में हमारा मित्र देश कहा जाने वाला रूस हमे क्रायोजेनिक इंजन बेस्ड फ्यूल टेक्नोलॉजी देने से मना कर दिया। जबकि रूस के तब के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत के साथ हुए समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया था।
लेकिन सत्ता की साजिश किस हद तक एक व्यक्ति के साथ देश के सामरिक शक्ति को तबाह कर देती है इसका जीता जागता उदाहरण हैं एस नांबी नारायण। जी हां वही इसरो के वैज्ञानिक नारायण जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जासूसी का आरोप न सिर्फ इसरो के लिए बल्कि वैज्ञानिक के सम्मान के लिए काफी महंगा पड़ा जिसकी भरपाई करने के दायित्व से केरल सरकार भाग नहीं सकती। आरोप है कि नारायण को फंसाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश रची गई जिसे देश की सत्ता का भी साथ मिला। नारायण के फंसने से केंद्र और राज्य की सत्ता को तात्कालिक लाभ जो भी हुआ हो लेकिन देश का बहुत बड़ा नुकसान हो गया। जो उस समय के विकसित देश चाहता भी था। क्योंकि जासूसी के आरोप में फंसने के कारण ही भारत में न सिर्फ क्रायोजेनिक इंजन बेस्ट लिक्विड प्रोग्राम का काम रुक गया बल्कि इस मामले में भारत 10 से 15 साल पीछे चला गया।
सुप्रीम कोर्ट ने नाराणय को मिलने वाली क्षतिपूर्ति के मामले में अपनी टिप्पणी में कहा है कि जासूसी केस मामले में नारायण पर जो दाग लगा है उसकी भरपाई तो नहीं की जा सकती है लेकिन उनके सम्मान को जो ठेस पहुंची है उसकी भरपाई करने के दायित्व से केरल सरकार नहीं भाग सकती। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के नेतृत्व में और जस्टिस एएम खानविल्कर तथा डीवाइ चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा है कि इस मामले में या तो उन अधिकारियों से जो इस जांच में शामिल थे फिर प्रदेश सरकार से भरपाई करने का निर्देश दिया जा सकता है। बेंच ने कहा है कि विशेष जांच दल में शामिल उन अधिकारियों की भूमिका की फिर से जांच करने की संभावना तलाशी जा रही है जिसने नारायण कों फंसाया था। बेंच ने कहा कि अब सिर्फ यही प्रश्न बचे हैं कि क्षतिपूर्ति कितनी और कब होगी। क्योंकि इसकी भरपाई जांच में शामिल अधिकारियों को ही अपनी जेब से करनी पड़ेगी।
मालूम हो कि इसरो के वैज्ञानिक रहते हुए नाराणय को जासूसी के आरोप में साल 1994 में 30 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था। जिस समय उन्हें गिरफ्तार किया गया था केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार थी और मुख्यमंत्री ई के नायनार थे। नारायण पर इतना घटिया और छोटा आरोप लगाया गया कि सीबीआई की जांच के तहत कुछ ही दिन में झूठा साबित हो गया। उनपर मालदीव के दो नागरिकों को भारतीय सुरक्षा की सेक्रेट जानकारी देने का आरोप लगाया गया था। भारतीय वैज्ञानिक मालदीव जैसे देश को क्या खुफिया जानकारी दे सकता है।? इसलिए 1996 में ही सीबीआई ने उन पर लगे सारे आरोप को आधारहीन बताया और सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में उन्हें निर्दोष माना।
भले ही नारायण पर देश की सुरक्षा के खिलाफ जासूसी करने का आरोप खत्म हो गया लेकिन दामन पर लगा दाग का क्या? इससे देश के रक्षा विभाग का जो नुकसान हुआ उसका क्या? जब नारायण को गिरफ्तार किया गया वे क्रायोजेनिक संभाग संभाल रहे थे। इसी मामले में अमेरिका और फ्रांस भारत को दबना चाहता था। चूंकि भारत ने साल 1992 में रूस के साथ देश में क्रायोजेनिक बेस्ड फ्यूल के विकास के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए 235 करोड़ रुपये का समझौता। जबकि अमेरिका और फ्रांस ने इसी टेक्नोलॉजी के लिए क्रमश: 950 और 650 करोड़ का प्रस्ताव दिया था। लेकिन जब भारत ने अमेरिका और फ्रांस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने रूस के अपने समकक्ष येल्तसिन को पत्र लिखकर भारत के साथ हुए समझौते पर आपत्ति जताई थी। आपत्ति क्या दरअसल उन्होंने तो विशेष पांच देशों के समूह से ब्लैकलिस्ट करने की धमकी दी थी। उस समय येल्तसिन के नेतृत्व वाला रूस सहम गया और दबाव में आकर भारत के साथ समझौता तोड़ लिया। उस कठिन दौर में नारायण ने भारत में खुद क्रायोजेनिक इंजन बेस्ड लिक्विड विकसित करने का बीड़ा उठाया था। लिकन सत्ता की साजिश ने देश के साथ उनके सम्मान का ही नुकसान कर बैठा
उनके खिलाफ पूरी साजिश को समझने के लिए नीचे लिंक ओपन कर उनकी लिखी पुस्तक पढ सकते हैं…
URL: know whole conspiracy of Kerala Government from Nambi Narayanan
Keywords: ISRO Scientist, nambi Narayan, transfer of technology, cryogenic-based fuels, International conspiracy, liquid propellant motors, ISRO Spy Case Diary