अंकुरार्य। रामनवमी के अवसर पर योगी सरकार ने नौ बडे फैसलें यूपी जनता के हितार्थ लिए है जिनमे प्रमुखतया जिन मुद्दो के प्रति जिज्ञासा बनी हुई थी वो थे किसानो की कर्ज माफी और रोमियो स्क्वायड की कंटिन्यूटी। विपक्ष जिस पिछली औपचारिक सभा को राज्य सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग बताकर आक्षेप गढ़ रहा था कि कहाँ हुई कर्ज माफी तो उसका जवाब योगी सरकार ने दिया ही साथ ही साथ नौ मे से चार बडे फैसले केवल किसानो के लिए लेकर एक स्वर्णिम किसान भविष्य की इबारत भी लिख डाली है।
दूसरा मुद्दा था एण्टी रोमियो दस्ते का गठन और उसकी त्वरित कार्य प्रणाली। इससे जहाँ एक ओर उन लोगों को भारी समस्या हुई जिनके लडको से अक्सर गलतियाँ हो जाया करती थी या जिनके लडके मन्दिर या काॅलेज जाते ही थे लडकियाँ छेडने! वही दूसरी ओर उनको भी भारी दर्द का सामना करना पडा जो स्वयं को भारत में राम-कृष्ण की नही बल्कि रोमियो की अघोषित संतान मानते हुए बुढापे तक उन्ही के नक्शे कदम पर चलते आए है।पिता की बदनामी सहन ना हुई तो लगे चीखने चिल्लाने कि नाम बदलकर एण्टी कृष्ण दस्ता किया जाना चाहिए क्योंकि कृष्ण ने गोपियों को सताया,रासलीला की वगैरह-वगैरह!
ये हिन्दुस्तान है साहब जहाँ कमलेश तिवारी पर तो धारा लग सकती है लेकिन ऐसे प्रदूषणों पर नही लेकिन एक विचार हम सबको करना तो चाहिए कि ये प्रदूषण पैदा कैसे हुआ?इनकी इस सोच के पीछे कौन है? क्या हम ही तो नहीं ? जिन तथ्यों को आधार बनाया गया है आज उस प्रकार का कृष्ण चरित्र हमारे या आपके लिए एकदम नया है? क्या यह नयी बात सामने आ गयी अचानक कि कृष्ण ने गोपियों के कपडे चुराए थे।बड़े-बड़े पंडाल लगाकर सैकडों वर्षों से कृष्ण लीला के नाम पर उनका चरित्र मर्दन किया जाता रहा है, भौंडा भद्दा मजाक और अवैज्ञानिक तथ्य रखे जाते है क्या उन पर हमने कभी बैठकर सोचा है?
आज एक वामपंथी वकील बोल रहा है कल हमारा बच्चा भी बोल सकता है। श्री कृष्ण कथा कहने वालो को ही हम साक्षात कृष्ण मानकर हाथ जोडकर उनकी बाते सुनते है उठकर कभी सोचते भी नही कि क्या किशोरावस्था या युवावस्था तक योगेश्वर श्री कृष्ण मात्र गाय ही चराते रहे? बंशी ही बजाते रहे?गोपियाँ से रास लीला हे करते रहे? क्या उनको स्वयं से अधिक प्रेम करने वाले उनके माता पिता ने उनको गुरूकुल भेजने की नही सोची? अक्सर ऐसा होता है कि घर मे काम ज्यादा है,नौकर नही रख सकते तो बच्चे स्कूल नही जा पाते,पर वो ऐसा काल नही था। छः वर्ष का बालक शिक्षा संस्कार के बाद गुरूकुल चला जाता था। शिक्षा एकदम फ्री और सबके लिए आवश्यक थी। पच्चीस वर्ष की आयु तक सभी को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए वेद अध्ययन करना होता था जो कि शासन की ओर से ही अनिवार्य था। अधिक दूर न जाइये अंग्रेजी गुलामी से पहले तक देश मे साढे सात लाख गुरूकुल थे और इसी प्रकार शिक्षा-दीक्षा होती थी, तो श्रीकृष्ण के विषय मे तो हम सोच भी नही सकते कि जवानी तक इधर उधर ही डोलते फिरते थे।
वास्तव मे यह सब बोबदेव नामक एक चरित्रहीन साहित्यकार की खुराफात है जिसको हिन्दुओं ने फैंटेसी के रूप मे खूब इंजाॅय किया है। शायद ही हिन्दू लोगो को पता हो कि मुसलमान सबसे ज्यादा भागवत कथा मे से ही प्रश्न चुन चुनकर हिन्दुओं पर दागते है और निरुत्तर हिन्दू अपना सा मुँह लिए हिन्दू धर्म से विरक्त होने लगता है। भागवत के अनुसार कृष्ण ने कुब्जा दासी के संग बलात्कार किया और भी जाने कितनी आपत्तिजनक कथाएँ जुडी है जो कि घोर निंदनीय, झूठी और मक्कारी की हद हैं। जरा सोचिए कि हम खुद को कृष्ण भक्त और वंशज कहने वाले लोग एक मिशन के तहत सैंकडो वर्षों से उनको बदनाम करते चले आ रहे है तो यह उम्मीद कैसे कर सकते है कि लोग उनको अवतार मानेंगे? आज योगी या मोदी ऐसा कर दें तो हम उनका भी मदनी बना देंगे तो श्रीकृष्ण के विषय मे हम ऐसा दोगला रवैया कैसे अपना सकते है?
दरअसल श्रीकृष्ण ऐसे कभी थे ही नही। वस्तु स्थिति को जरा गम्भीरता से समझिए। हम वो लोग है जो अपनी संतानों को किसी के भी साथ घर से बाहर जाने,एकांतवास और घण्टो समय बिताने को अनैतिक व असामाजिक मानते है। हमारे बच्चे भी सामान्यतया हमारे ऐसे कोई दिशा निर्देश दिए बगैर भी स्वयं से ही अनुशासित होते है कि ऐसे व्यवहार को बहुत घृणित माना जाता है। यह परम्परा दो दिन में तो नहीं तो बन गयी होगी। किसी भी परम्परा को विकसित होने मे हजारो वर्ष तक लग जाते है।यदि सच मे कृष्ण उस परम्परा मे अबाध और गोपियों के माता-पिता की सहमति से रासलीला कर रहे थे तो इसका मतलब यह परम्परा तब बहुत अधिक विकसित थी जैसे की आज पश्चिमी देशों मे है तो सवाल उठता है कि यह परम्परा बाकियों मे क्यों नही दिखी?
वास्तव मे उस समय यह परम्परा थी ही नही। श्री कृष्ण और बलराम सोलह संस्कारो से संस्कारित होकर ही निकले थे और आज तक वही संस्कारित परम्परा उनकी संतानों यानि कि हम सब मे है। भागवत कथा के नशे मे डूबे लोग यह क्यों भूल जाते है कि श्रीमद्भगवत् गीताजी के प्रथम अध्याय मे ही उन्होने क्यो यह कहा कि “यथा राजा तथा प्रजा” यदि यही वचन सत्य था तो हम सब चरित्र के प्रति इतने जागरूक क्यो है? कृष्ण के स्वरूप को इतना छिछला और काला बनाने वालो से हम जिस दिन सवाल करने की हिम्मत करना शुरू कर देंगे उस दिन किसी प्रदूषण खर-दूषण की हिम्मत नही पडेगी योगेश्वर महापुरुष पर उंगली उठाने की। वो हमारे आदिपुरुष,महा ज्ञानी योगेश्वर श्री कृष्ण है,उनको ऐसी बात कहना आसमान मे थूकने जैसा ही है।
अब रही बात एण्टी रोमियो नाम की सार्थकता की। रोमियो की अघोषित संतान कहती है कि रोमियो ने बस एक को चाहा उसी पर मर मिटा इसलिए एण्टी रोमियो नाम सार्थक नही। दर्शन की भाषा मे ऐसे रोमियो नामक व्यक्ति को सरफिरा,अपरिपक्व,पागल, लक्ष्य विहीन,अदूरदर्शी और सनकी कहा जाता है जिसने जूलियट की नब्ज देखे बगैर ही जहर पी लिया था जबकि वो जिन्दा थी और मरने का नाटक कर रही थी। क्या शिक्षा विभाग दसवीं मे फैल होने वाले बच्चो को फाँसी लगाने से रोकने के लिए उन्हे फैल करना छोड सकती है,भले ही आगे जाकर वो जिन्दगी की दौड मे फैल हो जाएँ?
2 अप्रैल 2017 को छपी एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सन् 2001 से 2015 के दौरान भारत मे आतंकवादी हमलो मे हुई कुल मौतों से छः गुना ज्यादा मौतें प्यार के नाम पर हुई है। जिनमे 38,585 हत्या और 79,189 आत्म हत्या शामिल है। यही नही 2.6 लाख अपहरण के केस भी दर्ज हुए है जिसमे मुख्यतः अपहरण का कारण महिला से शादी रचाने का इरादा था। जबकि इन्ही 15 वर्षो मे आतंकवादी घटनाओं मे 20,000 लोगो की मौत हुई है जिसमे सुरक्षा बल और आम नागरिक दोनो शामिल है। तो क्या ऐसे दिशाहीन,सनकी और अपरिपक्व युवाओं को अपनी जिंदगी तबाह कर माता पिता का जीवन गर्क करने के लिए छोड दिया जाए या जिस भाषा मे वो समझें उसी भाषा मे समझाया जाना चाहिए? बिल्कुल समझाना चाहिए। बल्कि प्रशासन ही नही पूरे समाज का कर्तव्य बनता है कि इस प्रकार की रोमियोपंथी को जड समेत उखाड फैंकना चाहिए।
नाम बहुत ही सोच समझ कर रखा गया है।अब काम भी बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए। एक पुलिस का सिपाही ही क्यों हम क्यों नही? हम आज से स्वयं से यह प्रण ले लें कि हम इस प्रकार की किसी हरकत को पोषित नही करेंगे तो आधे रोमियो तो कल सुबह तक ही खतम हो जाएगे और रही बार इन रोम वाली संततियों के बिगडे बोलो की तो जिस दिन हम सुधर जाएगे तो इनको सुधारने की जरूरत ही नही पडेगी। लेकिन पहला कदम हमारा।
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