उत्तरांचल के जंगलों में लगने वाली आग जैसी घटनायें कोई नयी नहीं है, पिछले कई दशकों से इस तरह की घटनायें होती आ रही हैं, जो जन जीवन के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी गम्भीर चुनौतियां पैदा कर रही है,आपको यह बताते चलें की जंगल में लगी आग राष्ट्रीय आपदा घोषित की जा चुकी है फिर भी सरकारों का इसके प्रति ढुलमुल रवैय्या समझ से परे है! इस वर्ष उत्तरांचल के जंगलों में लगी आग विकराल हो चुकी है, पिथौरागढ़ ,गढ़वाल, नैनीताल और अल्मोड़ा के कई हिस्से इस आग से प्रभावित हुए है! जानकारी के अनुसार लगभज ११०० हेक्टेयर की जंगल भूमि आग की चपेट में है .थल सेना वायु सेना तथा एन.डी.आर.एफ़ के समिलित प्रयासों से इससे काबू में लाने की कोशिश की जा रही है जो अब तक नाकाफी साबित हुई है !
पहाड़ों के वन अपूर्व सम्पदा के भंडार है, अमूल्य जड़ी बूटियों से लेकर जल तक के अनुपम भंडारों के प्रति ऐसी उदासीनता कहाँ तक जायज है? वन विभाग के पास इस तरह की घटनाओं को रोकने का न कोई ठोस तैयारियां हैं नहीं कोई पुख्ता इंतजाम ही वह आज तक तैयार कर पाये है, लगभग हर साल गर्मियों के शुरू होते ही पहाड़ों में जंगल धधक पड़ते हैं फिर जदोजहद शुरू होती है इस आग पर काबू पाने की! क्यों नहीं पहले से ही राज्य और केंद्र सरकार इसके लिए तैयार रहते है? क्यों नहीं आज तक कोई ठोस योजना इस बारे में तैयार की गयी ? सोचनीय विषय है! भारत में कई मास्टर प्लान रोज बनते हैं लेकिन जिस दुर्घटना का होना लगभग तय है कम से कम उसके लिए एक कारगर उपाय तो होना ही चाहिए !
जंगलों में आग का फैलने का दूसरा कारण है गांवों और पहाड़ों से लोगों का पलायन एवं आधुनिकरण, अन्धाधुन्द आधुनिकरण ने यहाँ के स्थानीय लोगों की वन पर निर्भरता लगभग समाप्त कर दी है, वनों के प्रति लोगों की उदासीनता ने भी जंगल की इस आग को फैलने में मदद की है! समय है सही समय पर चेतने की हमें भी और सरकारों को भी ताकि हम अपने अमूल्य निधि को अपने आने वाली पीढ़ी तक पहुंचा सकें!
Key words: uttranchal fire |forest fire |rescue operation in uttranchal | uttranchal disaster |