“गाय सिर्फ़ एक जानवर है, जैसे कि घोड़ा एक जानवर है. तो फिर उसे गोमाता कैसे कहा जा सकता है.?” जस्टिस मार्केंडेय काटजू साहब पूछ रहे हैं। और वह यह भी पूछ रहे हैं- ”ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि गोहत्या मानवहत्या के बराबर है. मैं इसे एक बेवकूफ़ी भरा तर्क मानता हूँ.
कोई एक जानवर की तुलना एक इंसान से कैसे कर सकता है?”
दादरी के अखलाक की मौत पर मुझे भी बहुत दुख है, क्योंकि याद रखिए न भीड़ का कोई धर्म होता है और न अपराध का। लेकिन पूरी दुनिया की यूरोपियन और भारत की अंग्रेजी-इलेक्ट्रोनिक मीडिया इसे ऐसे प्रचारित कर रही है- ‘ हिंदुओं की भीड़ ने एक मुस्लिम की हत्या की!’ अखलाक की मां ने कहा है, ‘हमारे परिवार को बचाने वाले भी हिंदू ही थे।’ लेकिन दुनिया की मीडिया में इस वाक्य को कोई अहमियत नहीं दी गई है, क्योंकि यह वाक्य ‘हिंदू हत्यारा’ के सरलीकरण का कुतर्क छीन लेती है!
कहीं जब बम फटता है, आतंकी वारदात होती है तो यही मीडिया कहती है, आतंकवाद का मजहब से कोई लेना-देना नहीं, आतंकवाद को धर्म से न जोड़ें-वगैरह! याद रखिए पूरी दुनिया का हिंदू लगातार डिस्क्रिमिनेशन झेल रहा है, क्योंकि उसके लिए केवल एक देश है, वहां भी उसे सेक्यूलरिज्म का ऐसा दबाब झेलना पड़ता है कि उसकी जुबान तालू में चिपकी हुई दिखती है। पूरी दुनिया में पशु हत्या पर रोक के लिए अभियान चलाने वाले प्रगतिशील कहे जाते हैं और भारत में गो हत्या के खिलाफ अभियान चलाने वाले प्रतिक्रियावादी! मार्क्स-मोहम्मद-मसीह के अनुयायियों की यही दोगली आधुनिकता है!
हिंदू के नाम पर हिंसा करने वाले यह जान जाएं कि वह अपने धर्म को बदनाम कर रहे हैं! उनमें अपने धर्म को लेकर इतनी ही संवेदना है तो शास्त्र उठाएं, तर्कशील बनें। याद रख लीजिए, यूरोप-अरब-और उनके फंड पर पलने वाले लोगों का गर्भनाल वेटिकन और अरब में है, लेकिन आपका गर्भनाल यहीं भारत में गड़ा है। इसे बदनाम न करें। एक व्यक्ति की गलती को पूरे हिंदू समुदाय की गलती बनाने वाले गिद्ध बैठे पड़े हैं। आखिर हर साल भारत में यूरोप-अरब से 12 हजार करोड़ रुपए आता ही इसलिए है कि हिंदुओं का मांस ये गिद्ध नोंच सकें!
हिंदू हैं तो आदि गुरु शंकराचार्य के रास्ते पर चलें, न कि हिंसा के रास्ते पर। याद रखिए, शंकर का शास्त्रार्थ न होता तो आप भी आज गाय का मांस ही खा रहे होते, क्योंकि हिंदू धर्म ही तब कहां बचने वाला था? पांच मकार- मांस, मुद्रा, मैथुन, मदिरा, मत्स्य – की तब समाज में प्रधानता बढ़ती जा रही थी और पशु व नर बलि हमारे समाज में भी आ चुका था! शंकर को धन्यवाद दीजिए और उनके सदृश्य तर्कशील बनने के लिए पुस्तकें उठाइए! मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स जैसे अमेरिकी तकनीकी अन्वेषक यदि भारत की ओर झुक रहे हैं तो हिंदू धर्म के ज्ञान के कारण, न कि दादरी जैसी घटना करने वालों के कारण!
गो हत्या को रोकने के लिए तर्क दीजिए न कि हथियार उठाइए!
आज हाल यह है कि टीवी पर बैठे हिंदू समाज के प्रतिनिधियों के पास तर्क ही नहीं है, मिमियाते दिखते हैं और बाहर बैठे लठैत हिंदू धर्म के नाम पर तलवार भांजते दिखते हैं! ये दोनों मूढ़ मिलकर हमें नोंचने के लिए बैठे अंतरराष्ट्रीय गिद्धों को यह अवसर देते हैं कि वो हम पर टूट पड़े और हमें नोंच लें! इन गिद्धों को नष्ट करना है तो तर्कशील बनिए, तलवार तो आपसे अच्छा आईएसआईएसआई वाले भांज लेते हैं!