इटावा के तुलसी यादव यानी जयगुरुदेव ने सुभाषचंद्र बोस के नाम का इस्तेमाल कर देश-दुनिया के 20 करोड़ भक्तों से चंदा लेकर सिर्फ यूपी में 15 हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का साम्राज्य खड़ा कर लिया । चार साल पहले 18 मई 2012 को जब जयगुरुदेव का निधन हुआ तो उनके तीन चेलों के बीच अरबों के खड़े साम्राज्य पर कब्जे को लेकर होड़ मच गई। चूंकि मुलायम कुनबे के गृह जनपद इटावा से जयगुरुदेव जुड़े थे, चेले भी यहां से जुड़ाव रखते थे तो रामगोपाल और शिवपाल यादव की भी संपत्ति पर नजर पड़ गई । उन्होंने बाबा जयगुरुदेव के एक-एक चेले को अपना मोहरा बनाया । ताकि अप्रत्यक्ष रूप से संपत्ति पर कब्जा जमायाा जा सके !
शिवपाल यादव ने अपने खास पंकज यादव को जयगुरुदेव का ड्राइवर बनवाया और बाद में पंकज यादव को 15 हजार करोड़ की संपत्ति मालिक बनाने में सफल रहे ! इसके बाद बाबा जयगुरुदेव के तीन चेलों के बीच संपत्ति पर कब्जे का विवाद शुरू हुआ। पहला चेला पंकज यादव उनका ड्राइवर रहा। दूसरा चेला जयगुरुदेव के सेवक के तौर पर हमेशा साथ रहने वाला गाजीपुर निवासी रामवृक्ष यादव रहा। तीसरा चेला उमाकांत तिवारी रहा। पंकज यादव ने शिवपाल यादव के दम पर मथुरा-दिल्ली हाईवे पर डेढ़ सौ एकड़ के जयगुरुदेव के मुख्य आश्रम व आसपास के जिलों में हाईवे किनारे स्थित तमाम आश्रम व अन्य रियल एस्टेट संपत्तियों पर कब्जा कर लिया। संपत्तियों की कीमत तकरीबन 15 हजार करोड़ रुपये बताई जाती है। इसी के साथ जब आश्रमों पर पंकज यादव का कब्जा हो गया तो पंकज ने प्रतिद्वंदी रामवृक्ष यादव को आश्रम से बाहर कर दिया।
2014 में फिरोजबाद सीट से रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव ने लोकसभा चुनाव लड़ा। इस दौरान रामवृक्ष यादव ने करीब तीन हजार समर्थकों की टीम के साथ गांव-गांव, घर-घर जाकर जबर्दस्त चुनाव प्रचार किया। ये वे समर्थक थे जो कि जयगुरुदेव के समय से रामवृक्ष से जुड़े थे। अक्षय यादव की जीत में रामवृक्ष ने अहम योगदान दिया। इस पर रामगोपाल भी रामवृक्ष के मुरीद हो गए। रामवृक्ष भी कम चालाक नहीं रहा। उसने अपनी इस मेहनत की कीमत मथुरा के जवाहरबाग की बागवानी विभाग की तीन सौ एकड़ सरकारी जमीन हथियाकर वसूलने की सोची ।
जब शिवपाल यादव के सहयोग से पंकज यादव ने जयगुरुदेव आश्रम पर कब्जा कर रामवृक्ष यादव को वहां से भगा दिया तो रामवृक्ष रामगोपाल यादव के पास गुहार लगाने पहुंचा। रामवृक्ष ने मथुरा के जवाहरबाग की खाली पड़ी तीन सौ एकड़ जमीन पर कुछ मांगों को लेकर कथित सत्याग्रह के लिए अनुमति दिलाने की मांग की। मांगे देश में सोने के सिक्के चलाने, पेट्रोल एक रुपये लीटर देने आदि अजीबोंगरीब रहीं। ताकि ये मांगे पूरी न हों और हमेशा के लिए जमीन पर धरने की आड़ में कब्जा किया जा सके। रामगोपाल के एक फोन करते ही ढाई साल पहले तत्कालीन डीएम-एसएसपी ने जवाहरबाग में दो दिन के सत्याग्रह की अनुमति दे दी।अनुमति मिलते ही तीन सौ एकड़ जमीन कर कर लिया !
यूं तो प्रशासन से दो दिन के लिए जवाहरबाग की जमीन पर धरने की अनुमति ली गई थी। मगर नीयत तो कब्जे की थी। रामवृक्ष को डर सताता था कि कभी कोई तेजतर्रार डीएम-एसएसपी आया तो उसके कब्जे की जमीन हाथ से निकल सकती है। इस पर रामवृक्ष की मांग पर रामगोपाल ने अपने करीबी डीएम और एसएसपी राकेश कुमार की तैनाती करा दी। ताकि कब्जा खाली कराने को लेकर कभी प्रशासन एक्शन न ले। यही वजह रही कि पिछले ढाई साल से रामवृक्ष व उसके गुर्गों ने धरने की आड़ में तीन सौ एकड़ जमीन पर कब्जा किए रखा। कभी प्रशासन की हिम्मत नहीं पड़ी की उस कब्जे को खाली करा ले। जमीन पर ब्यूटी पार्लेर से लेकर आटा चक्की आदि व्यावसायिक गतिविधियों के प्रतिष्ठान भी खोल लिेए गए। इससे साफ पता चलता है कि रामवृक्ष एंड कंपनी को वरदहस्त प्राप्त हो चुका था कि न तो शासन और न ही प्रशासन जमीन से कब्जा खाली कराएगा। लिहाजा स्थाई निर्माण कराया जाने लगा। यह तो गनीमत रही कि एक वकील ने हाईकोर्ट में रिट दाखिल की, तब जाकर प्रशासन को कब्जा खाली कराने के लिए टीम भेजना पड़ा।
बाबा जयगुरुदेव के अरबों के साम्राज्य पर कब्जा जमाने के लिए शिवपाल यादव और राम गोपाल यादव के बीच पिछले चार से शीतयुद्ध चल रहा था ! कई बार दोनों नेताओं के चेलों के बीच लड़ाई खुलकर सामने आई। शिवपाल यादव का पंकज यादव को मिले वीटो पावर से अपने हाथ से जयगुरुदेव की संपत्ति निकल जाने से रामवृक्ष मन मसोस कर रह गया था। फिर भी वह संपत्ति हथियाने का ख्वाब पाला था। इसके लिए उसने रामगोपाल यादव को अपना माई-बाप मान लिया। यही वजह रही कि उसने जवाहरबाग की तीन सौ बीघा जमीन पर कब्जा कर वहां अपने गुर्गों के रहने के लिए जमीन तैयार की। इसके बाद उसका इरादा पंकज यादव से लड़कर जयगुरुदेव के साम्राज्य को छीनने का था। हालांकि जवाहबाग आपरेशन के बाद उसका खुद का निर्माणाधीन साम्राज्य तहस-नहस हो गया।
ऐसा मजबूत राजनैतिक सरंक्षण प्राप्त गिरोह देश के लिए कितने घातक है । यूपी प्रशासन को यह सब पता है ! अपने चाचा शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव को बचाने के लिये ही अखिलेश यादव मथुरा कांड की सीबीआई जाँच का आदेश नहीं दे रहे हैं !