कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां मोदी सरकार की आलोचना इसलिए करती है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कुछ नहीं किया गया है शायद उन्होंने अपनीं आंखें बंद कर रखी है। उन्हें यह नहीं दिखाई देता है कि किस प्रकार प्रवर्तन निदेशालय ने मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान तीन सालों में 33,500 करोड़ की संपत्ति जब्त की है? क्या भ्रष्टाचार पर प्रहार करने के इससे भी बेहतर सूबत कोई हो सकता है? ईडी ने उन्हीं मालदारों की संपत्ति जब्त की है जिन्होंने बैंकों से कर्ज लेकर अपनी संपत्तियों को एनपीए घोषित कर रखा था। इतना ही नहीं मोदी सरकार में ईडी ने फेमा उल्लंघन के तहत रिकॉर्ड 8,452 केस भी दर्ज किया है।
मुख्य बिंदु
* ईडी ने जहां मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन सालों के दौरान फेमा के तहत 8,452 केस दर्ज किए हैं
* वहीं सोनिया गांधी नियंत्रित मनमोहन सिंह सरकार के 10 साल के कार्यकाल के दौरान 9,500 केस दर्ज हुए थे
सरकार की कार्यकुशलता और भ्रष्ट्चार के खिलाफ मंशा इसी से आंकी जाती है कि उन सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कितने मामले दर्ज किए गए और उनकी कितनी संपत्ति जब्त की गई? इन दोनों मापदंडों पर देखें तो मोदी सरकार बिगत की मनमोहन सिंह सरकार से कोसों आगे है। वैसे प्रशासनिक सबलता का आंकलन इस आधार पर नहीं किया जाता कि कितने मामले दर्ज हुए, बल्कि इस आधार पर किए जाता है कि कितने मामलों में त्वरित कार्रवाई हुई, या फिर कार्रवाई हुई भी की नहीं? क्योंकि कार्रवाई ही भ्रष्टाचार खत्म करने की मंशा को दिखाती है।
ईडी ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मामले दर्ज करने या संपत्तियां जब्त करने का ही रिकॉर्ड नहीं कायम किया बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में 390 लोगों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की है। ये सारी कार्रवाइयां पूर्व ईडी निदेशक करनाल सिंह के कार्यकाल के दौरान हुई हैं। गौरतलब है कि करनाल सिंह गत रविवार को अपने पद से सेवानिवृत्त हो गए हैं। उन्होंने ही पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ गुरुवार को एयरसेल-मैक्सिस मनी लॉन्ड्रिग माममें पूरक चार्जशीट दाखिल करने का आदेश दिया था।
करनाल सिंह की जगह अब आईआरएस अधिकार संजय मिश्रा लेंगे। इस मामले में मोदी सरकार ने शनिवार को ही संजय मिश्रा को अगला ईडी निदेशक बनाने की घोषणा की थी।
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