देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बुरहान वानी के समर्थकों को साफ-साफ संदेश दे दिया है कि आतंकवादी को शहीद बना कर पेश करने की कोशिश न करें! कहने को तो राजनाथ सिंह का यह कड़ा संदेश पाकिस्तान में बैठकर पाकिस्तान को दिया गया है, लेकिन जिस तरह से बुरहान वानी के समर्थन में भारतीय पत्रकारों का एक वर्ग उतरा, उसके कारण यह माना जा रहा है कि देश के अंदर बैठे प्रो-पाकिस्तानी लाॅबिस्टों के लिए भी सरकार ने कड़ा संदेश दे दिया है! सरकार निकट भविष्य में देश-विरोधी पत्रकारिता को रोकने के लिए दिशा निर्देश भी जारी कर सकती है! इसके लिए मंथन चल रहा है!
एनडीटीवी, इंडिया टुडे और अंग्रेजी मीडिया हाउस और उसके पत्रकार जिस तरह से आतंकी बुरहान वानी को शहीद और भारतीय सैनिकों व जम्मू-कश्मीर पुलिस को हत्यारा साबित करने पर तुले हुए हैं, उसे लेकर सरकार सचेत है! सरकार इसका पता लगा रही है कि इन आतंक समर्थक लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवियों और पत्रकारों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष संबंध कहीं पाकिस्तान या उसके किसी आतंकी संगठन से तो नहीं है?
सूत्र बताते हैं कि रक्षा मंत्रालय की ओर से पीएमओ व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को यह बताया गया है कि कुछ लोग मीडिया में बैठकर सेना की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं! इन पर नजर रखने की जरूरत है। इसमें मीडिया रिपोर्टों, प्रो-पाकिस्तानी पत्रकारों के साथ-साथ हाल ही में अंग्रेजी में आई एक पुस्तक की भी चर्चा की गई है, जिसमें सेना को हत्यारा साबित करने की कोशिश की गई है! कोलकाता से प्रकाशित इस पुस्तक में सेना के गुप्त आॅपरेशन को एनकाउंटर कीलिंग बताकर सेना की छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया है!
पीएमओ ने भी कश्मीर मामले में वहां की सरकार, गृहमंत्रालय और रक्षा मंत्रालय को बिना किसी के दबाव में आए काम करने को कहा है!
पीएमओ से गृहमंत्री राजनाथ सिंह को यह साफ संकेत दे दिया गया था कि वह पाकिस्तान के अदंर जो कहेंगे, उसका पाकिस्तान और दुनिया के साथ-साथ भारत में बैठे आतंक समर्थकों पर भी असर पड़ना चाहिए! जिसका असर हमें 4 अगस्त को पाकिस्तान और 5 को भारतीय संसद में देखने को मिला!
आतंकी बुरहान वानी के जनाजे में उमड़ी भीड़ का समर्थन करते हुए एनडीटीवी के प्राइम टाइम में एंकर रवीश कुमार ने इसे कश्मीरी जनता का आक्रोश तक बता दिया था, जबकि हाफिज सईद ने खुद यह स्वीकार किया है कि उस जनाजे को उसका कमांडर उमर लीड कर रहा था! यही नहीं, जिस तरह से बुरहान वानी की मौत को एक मासूम की मौत साबित करने में एनडीटीवी की ही बरखा दत्ता ने कोशिश की, उससे भी सरकार नाराज है! बुरहान के जनाजे में आए हर आतंकी की सूची सरकार के पास मौजूद है, जिसके कारण एनडीटीवी जैसी पत्रकारिता की पोल साफ तौर पर खुल रही है, जो कहीं न कहीं पाकिस्तानी एजेंडे के करीब है!
यही नहीं, अंग्रेजी अखबारों की नीतियों से भी पाकिस्तान के आतंकियों को बल मिला है! सरकार की ओर से बेंकैया नायडू ने बार-बार यह कहा कि आतंकियों को हीरो नहीं बनाया जाना चाहिए, लेकिन आतंक समर्थक पत्रकार अपने एजेंडे पर चलना जारी रखे हुए हैं! माना जा रहा है कि निकट भविष्य में भारत सरकार आतंकवादियों और देश के सुरक्षा बलों को लेकर की जा रही रिपोर्टिंग के लिए एक दिशा निर्देश जारी कर सकती है! इसके बावजूद भी यदि तथाकथित पत्रकारों ने अपना एजेंडा जारी रखा तो सरकार कठोर कदम उठाने पर भी विचार कर रही है! देखते हैं, सरकार का अगला कदम क्या होता है?