संसद का शीतकालीन सत्र कल से प्रारम्भ हो चुका है। कल संसद के निचले सदन लोकसभा की कार्यवाही सदन की एक वर्तमान सदस्य और कुछ पूर्व सदस्यों के निधन पर शोक व्यक्त करने के बाद दिन भर के लिए स्थगित रही । वहीँ कल का दिन राज्यसभा में बहस का दिन था जहाँ उम्मीदों के मुताबिक बहस का मुद्दा सरकार का विमुद्रीकरण का निर्णय रहा।
बहस की शुरुआत राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता एवं कांग्रेस सांसद श्री आनंद शर्मा ने की। उन्होंने अपनी तक़रीर की शुरुआत करते हुए कहा कि इन दिनों हर जगह उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही नजर आते हैं और उनका इतना दिखना उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा है,उन्हें कोफ़्त होने लगी है। आनंद शर्मा जी के इस बयान के दो मायने हैं अव्वल तो उन्हें यही हजम नहीं हो रहा है कि देश का प्रधानमन्त्री जनता के हर सुख-दुःख में उनसे जुड़े, उनके साथ खड़ा हो, उनसे संवाद करे क्योंकि कांग्रेस मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस में इस प्रकार के प्रावधानों की कोई व्यवस्था ही नहीं है। उनके यहाँ जनता अपने प्रतिनिधि को खोजती है, सालों टकटकी लगाकर इन्तजार करती है कि उनका नेता कुछ बोले लेकिन उनमें बोलने और जनता का सामना करने का साहस ही नहीं होता है। इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री की यह पहल रास नहीं आ रही है।
दूसरा एक ही व्यक्ति को लगातार देखने और सुनने के सन्दर्भ में एक जानकारी भरा सवाल यह भी है कि देश में केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही कुल 58 संस्थाओं एवं परियोजनाओं में से महात्मा गांधी के नाम की 4 परियोजनाओं को छोड़ दिया जाए तो 27 संस्थाएं एवं परियोजनायें ऐसी हैं जो नेहरू-गांधी परिवार के नाम से चल रही हैं इसके अलावा राज्यों की 52 योजनायें, 6 हवाईअड्डे व बंदरगाह, 66 छात्रवृत्तियाँ व फेलोशिप, 47 खेल प्रतियोगिताएँ, पदक और स्टेडियम, 15 राष्ट्रीय पार्क एवं अभयारण्य, 39 अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज, 37 राष्ट्रीय विज्ञान एवं शोध संस्थान, पीठ व महोत्सव तथा 74 सड़कें, भवन व जगहों के नाम नेहरू-इंदिरा और राजीव के नाम से हैं। क्या एक ही परिवार के लोगों के नाम इस प्रकार देश के कण-कण में व्याप्त देखकर आनन्द शर्मा जी का दम नहीं घुटता? घबराहट नहीं होती ? इस घुटन भरे गैस चैम्बर से बाहर आने का मन नहीं करता ? वैसे ही जैसे मोदी जी को देखकर करता है।
आप कहते हो कि ये सरकार और प्रधानमंत्री सवालों से भागते हैं। जबकि यह सरकार हर सवाल का पूरी इमानदारी के साथ सामना करने का एवं उसका जवाब देने का साहस रखती है लेकिन ऐसे बहुत से सवाल हैं जो आपको एवं आपकी पार्टी को बगलें झाँकने के मजबूर कर सकते हैं। आज आप जनता की तकलीफों से हैरान-परेशान होने की बात करते हैं अगर आप वाकई जनता के नेता हैं, उनसे जुड़े हैं तो फिर आपको अपना 32 साल का संसदीय जीवन राज्यसभा में क्यों गुजारना पड़ा और क्यों आपकी तमाम बुद्धिमता और राजनीतिक कौशल राहुल गांधी को अपना नेता स्वीकार करने के लिए अभिशप्त है ? विमुद्रीकरण पर आप सरकार के ऊपर अघोषित आपातकाल लगाने का आरोप मढ़ रहे हैं। क्या आपकी स्मृति इतनी मंद पड़ चुकी है कि आप यह भी नहीं जानते कि देश में आपातकाल कौन लेकर आया ? वह कौन सी पार्टी और लोग थे जिन्होंने देश को 19 महीने तक यातना गृह बना दिया था ? हम सब लोकतंत्र में जी रहे हैं आप खूब सवाल उठाइए लेकिन अपने अतीत को जरूर याद रखिये।
असल में आप के विरोध के पार्श्व में सच्चाई यह है कि आपकी पार्टी और उसके नेता स्वयं को इस देश के ऊपर शासन करने का स्वाभाविक दावेदार मानते हैं और उनको यह तथ्य अभी तक स्वीकार्य नहीं हो रहा है कि किस प्रकार एक गरीब, साधारण परिवार से निकला हुआ व्यक्ति, संघ के अनुशासन में पला बढ़ा शख्स इस देश के सर्वोच्च पद पर बैठ गया है। क्योंकि कांग्रेस के संविधान में, इसके विचार में यह पद गांधी-नेहरू परिवार के लिए आरक्षित है और जब जब इस परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति यहाँ पहुँचता है तो कांग्रेस को राष्ट्रीय पीड़ा का अनुभव होता है। यही नहीं कांग्रेस पार्टी तो इस परिवार के इतर अपने भी लोगों को यहाँ बर्दाश्त नहीं करती है और यही कारण है कि कांग्रेस आलाकमान के इशारे पर नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की जितनी फ़ज़ीहत कांग्रेसियों ने की उतनी तो विपक्षी दलों ने भी नहीं की थी।
जनता से कटे हुए कुछ नेता हवा में जीते हैं और आज हवाई राजनीति ही कर रहे हैं। ये लोग नहीं समझ पा रहे हैं कि तमाम दुश्वारियों के बावजूद भी जनता सरकार के इस फैसले के साथ है क्योंकि जनता को मालूम है कि यह काला धन किसी पेड़ से झड़कर जमा नहीं हुआ है बल्कि भ्रष्टाचारियों ने आम आदमी के हक़ पर डाका डालकर इसे जमा किया है। भाजपा सरकार न केवल जनता के हकों को लूटने वालों के खिलाफ निर्णायक जंग के लिए बल्कि जनता को उसका हक़ ससम्मान लौटाने के लिए भी प्रतिबद्ध है।