विवेक सक्सेना,रिपोर्टर डायरी,नया इंडिया । गजवा-ए-हिन्द की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। कुछ इस्लामी धर्मगुरुओं का दावा है कि पैगम्बर-ए-इस्लाम ने यह भविष्यवाणी की थी कि 21 वीं शताब्दी में भारत का संपूर्ण रुप से इस्लामीकरण हो जाएगा। इसे ही गजवा-ए-हिन्द का नाम दिया गया है और इस संदर्भ में एक हदीस का हवाला उलेमा लोग देते हैं। मुस्लिम नेताओं को विश्वास है कि मुस्लिम-दलित गठबंधन से गजवा-ए-हिन्द के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
वैसे खुद मुसलमानों के भीतर की स्थिति कोई छुपी हुई नहीं है। देवबंदियों और बरेलवियों के कटु संबंधों को भला कौन नहीं जानता? हैरानी की बात यह है कि 72 फिरकों में बंटा हुआ मुस्लिम समाज अब दलितों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए बेकरार हो रहा है। सभी मुस्लिम नेता एक स्वर से एक ही राग अलगा रहे हैं कि उत्पीड़न का सामना करने के लिए दलितों और मुसलमानों की एकता बेहद जरुरी है।
अरशद मदनी हों या इत्तेहादुल मुसलमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी या फिर जमाते इस्लामी प्रमुख जलालुद्दीन उमरी या फिर बरेलवी मुसलमानों के प्रमुख तौकरी रजा खां, सभी यह राग अलपा रहे हैं कि देश को भाजपा से मुक्त करने के लिए दलितों, मुसलमानों, ईसाइयों एवं सिखों को एक मंच पर इकट्ठा होना चाहिए। हाल ही में कई महत्वपूर्ण मुस्लिम संगठनों जैसे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड पर कांग्रेस ने कब्जा किया है। 18 मुस्लिम संगठनों के मंच मुस्लिम मजलिस मुशावरात पर जमाते इस्लामी की कृपा से एक पुराने कांग्रेसी नावेद हामिद ने अध्यक्ष के रुप में कब्जा जमाया है। देश भर में फैली हुई पांच लाख मस्जिदों के इमामों की सहायता से दलितों और सभी अल्पसंख्यकों को एकजुट करने का प्रयास जोरदार ढंग से चल रहा है। कई लोगों को शक है कि इस अभियान के पीछे सउदी अरब के शासकों और उनके वाहबी मिशन का हाथ है।
मुस्लिम नेतृत्व डा. बी आर अम्बेडकर के पोते प्रकाश अम्बेडकर से भी संपर्क स्थापित कर चुका है। उनका दावा है कि प्रकाश अम्बेडकर ने इस महागठबंधन में सहयोग करने का आश्वासन दिया है। जमीयत उलेमा के मुस्लिम नेता अरशद मदनी ने घोषणा की है कि देश को हिन्दू सांप्रदायिकता से बचाने के लिए यह जरुरी है कि मुसलमान, दलित और ईसाई एकजुट हो। इस लक्ष्य से दिल्ली में 28 अगस्त को एक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इसके बाद राजधानी में संसद के सामने एक जोरदार प्रदर्शन किया जाएगा।
अब भला इस अभियान में जमाते इस्लामी कैसे पीछे रहती? गत सप्ताह दिल्ली में आयोजित जमाते इस्लामी के छात्र विंग मुस्लिम स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन आफ इंडिया ने यह फैसला किया है कि देशभर में दलितों के साथ ‘पानी पियो’ अभियान की शुरुआत की जाएगी। इस अभियान के तहत मुसलमान छात्र दलितों के घर घर जाकर उनका जूठा पानी पियेंगे ताकि उनके साथ एकात्मकता स्थापित की जा सके।
विदेशियों के इशारे पर दलितों और मुसलमानों के गठजोड़ के प्रयास नए नहीं है। इनकी शुरुआत 1960 में कुख्यात तस्कर हाजी मस्तान ने महाराष्ट्र में की थी। उस गठबंधन को विख्यात फिल्म स्टार युसुफ खां उर्फ दिलीप कुमार का खुला समर्थन प्राप्त था। इस मोर्चे में रिपब्लिकन पार्टी भी शामिल थी। जब महाराष्ट्र में सत्ता हथियाने का अवसर आया तो रिपब्लिकन पार्टी मुसलमानों का दामन झटक कर कांग्रेस की गोद में जा बैठी और मुस्लिम-दलित गठबंधन का यह मंसूबा धूल में मिल गया।
इसके बाद 1962 में जमाते इस्लामी मुत्ताहिदा मुहाज बनाकर दलितों और मुसलमानो को चुनावी मैदान में एक साथ लाने का प्रयास किया था मगर वह भी विफल रहा। 2012 में जमाते इस्लामी ने एक नया दांव खेला और अपनी एक अलग राजनीतिक पार्टी वैलफेयर पार्टी आफ इंडिया का गठन किया जिसमें मुसलमानों के साथ-साथ दलितों और ईसाइयों को भी शामिल किया गया। चुनावों में यह पार्टी बुरी तरह से पिटी।
तेलंगाना का अतिवादी मुस्लिम संगठन आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन ने भी अपने दरवाजें दलितों के लिए खोल दिए है। दलित समुदाय में अपने पैर पसारने के लिए मजलिस ने हैदराबाद महानगर पालिका का महापौर एक दलित को बनाया। महाराष्ट्र में हुए हाल के विधानसभा चुनाव में मजलिस ने 27 दलित उम्मीदवार खड़े किए थे जो कि बुरी तरह से हार गए। यही परीक्षण बिहार विधानसभा चुनाव में भी किया गया। मगर मजलिस के 26 उम्मीदवारों में से किसी की जमानत तक नहीं बच पाई।
यह कड़वी सच्चाई है कि आज विश्वभर में जो इस्लामी उग्रवाद पनप रहा है उसके तार सउदी अरब की वहाबी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। सबसे रोचक बात यह है कि विश्वभर में मुसलमान ईसाइयों से टकरा रहे हैं। मगर भारत में ये दोनों एकजुट है। सुन्नी संप्रदाय के विदेशी आकाओं ने यह महसूस किया है कि जब तक भारत के 80 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान एकजुट नहीं होंगे तब तक भारत में इस्लाम का वर्चस्व स्थापित नहीं किया जा सकता है।
हाल ही में महाराष्ट्र पुलिस ने डा जाकिर नाइक के संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े हुए चार कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है। जिन पर आरोप है कि उन्होंने केरल के रहने वाले 21 मुसलमान युवकों को खलीफा अबू बकर अल बगदादी के कुख्यात इस्लामी संगठन इस्लामिक स्टेट आफ इराक एण्ड सीरिया की सेनाओं में भर्ती के लिए भिजवाया था। महाराष्ट्र विधानसभा में यह आरोप भी लगाया गया कि महाराष्ट्र के सौ से अधिक नौजवान रहस्यमंय ढंग से लपाता होकर आईएसआईएस में जिहादी लश्कर में शामिल हो चुके हैं।
महाराष्ट्र सरकार की इस घोषणा के साथ मीडिया में स्वार्थी तत्वों द्वारा किए जा रहे भ्रामक प्रचार का भी पर्दाफाश हो गया कि महाराष्ट्र सीआईडी ने डा. जाकिर नाइक को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि उनका किसी आतंकवादी संगठन से कोई संबंध नहीं है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने इस बात की भी पुष्टि की है कि विदेशी सूत्रों से डा जाकिर नाइक के संगठनों को करोड़ों रुपयों की आर्थिक सहायता प्राप्त होती रही है। उल्लेखनीय है कि डा. जाकिर नाइक की भूमिका भी शुरु से ही दलित-मुस्लिम महागठबंधन के समर्थकों में रही है।
दारुल उलूम देवबंद प्रमुख अबुल कासिम नोमानी ने यह दावा किया था कि डा. जाकिर नाइक सिर्फ इस्लाम का प्रचार करते हैं। इस्लाम के किसी प्रचारक का आतंकवाद से कोई संबंध हो ही नहीं सकता। इसलिए मीडिया जानबूझकर उन्हें बदनाम कर रहा है। जमीयत उलेमा के अध्यक्ष अरशद मदनी भला इस मामले में कैसे पीछे रहते। उन्होंने भी यह फरमान जारी किया कि क्योंकि डा. जाकिर नाइक हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित कर रहे हैं इसलिए वह संघ परिवार की सरकार के निशाने पर है।
साभार नया इंडिया