जिस प्रकार एनडीटीवी घोखाधड़ी मामले में सेक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (एसएटी) ने पक्षपातपूर्ण ढंग से सुनवाई कर आदेश जारी किया है वह स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश का उल्लंघन है। इससे एसएटी और एनडीटीवी के बीच साठगांठ होने का रहस्य गहरा गया है। इस मामले में सेबी (सेक्योरिटीए एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया ) पर भी सवाल उठने लगा है। अब सवाल उठता है कि जब सेबी आश्वस्त है कि एनडीटीवी का असली मालिक प्रणय व राधिका राय नहीं, बल्कि रिलायंस के स्वामित्व वाली Vishvapradhan Commercials Pvt Ltd (VCPL) है तो फिर उसके खिलाफ कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रहा है?
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि किस प्रकार एनडीटीवी जैसी शेल कंपनियां कानून के साथ कबड्डी खेलती रहती है और सेबी तथा एसएटी जैसी संस्थाएं उसे किसी न किसी रूप में मदद पहुंचा रही हैं! शेल कंपनियां बड़ी चालाकी से एसएटी के कोरम पूरा नहीं होने का इंतजार करती हैं। जैसे ही कोई न्यायिक सदस्य एसएटी से रिटायर होते हैं यह कंपनिया उसी समय में एसएटी में अपना आवेदन डालती है, ताकि या तो सुनवाई टल जाए या फिर उसके हक में फैसला हो जाए। पीगुरु वेबसाइट के माध्यम से श्री अय्यर ने सवाल उठाया है कि कहीं एसएटी और एनडीटीवी में साठगांठ की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा है? उन्होंने वेबसाइट में लिखा है कि जब 11 जुलाई को एसएटी का एक सदस्य रिटायर हो गया तो फिर एसएटी ने एनडीटीवी धोखाधड़ी के मामले की सुनवाई आठ अगस्त को क्यों की?
मुख्य बिंदु
* एनडीटीवी की धोखधड़ी पर एसएटी (सेक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल) के पक्षपाती रवैये से रहस्य और गहराया
* एसएटी ने बगैर कोरम के दिशानिर्देश जारी कर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश का उल्लंघन किया है
* एसएटी के लिए निर्धारित नियम के मुताबिक कोई अकेला सदस्य न आदेश दे सकता है न निर्णय ले सकता है
* सेबी (सेक्योरिटीए एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया ) पर भी उठने लगा है सवाल
सेबी क्यों नहीं निभा रहा अपना दायित्व
श्री अय्यर ने लिखा है कि सेबी इस तथ्य को बेहतर ढंग से जानता है कि एनडीटीवी का असली मालिक वीसीपीएल है। जब सेबी इस तथ्य के प्रति आश्वस्त हो तो फिर उसे 45 दिनों के भीतर एनडीटीवी के शेयर खरीदने का सार्वजनिक प्रस्ताव जारी करना चाहिए। सेबी को यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि उसका प्राथमिक दायित्व शेयरधारकों के प्रति है। क्योंकि वह शेयरधारकों के हितों का ही प्रतिनिधित्व करता है। खामियाजा भुगतने के लिए 10 साल काफी लंबा समय होता है। सेबी और एसएटी दोनों को मिलकर अब इसे खत्म करना चाहिए तथा जन हित में एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए कि मोदी सरकार के कार्यकाल में कॉरपोरेट सेक्टर हो या फिर कोई और लोगों की पूंजी के साथ खेल नहीं खेल नहीं सकते। सेबी और एसएटी के पास लोगों को आश्वस्त करने के लिए यही उचित समय है कि आप कितने बड़े क्यों न हों कानून सभी पर लागू होगा तथा वित्तीय धोखाधड़ी या घोटाला करके आप भाग नहीं सकते हैं।
बगैर कोरम पूरा हुए एसएटी ने क्यों की सुनवाई
एसएटी ने एनडीटीवी धोखाधड़ी के मामले में 8 अगस्त 2018 को सुनवाई कर एडीटीवी को शीघ्र ही अपना आवेदन जमा कराने का आदेश जारी कर दिया। जबकि एसएटी का कोरम भी पूरा नहीं था। क्योंकि 11 जुलाई 2018 को ही एसएटी के सदस्य जेपी देवधर अपना पांच साल कार्यकाल पूरा कर सेवानिवृत्त हो गए थे। लेकिन एसएटी के एकमात्र सदस्य डॉ. सीकेजी नायर ने अवैध रूप से सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों को इस संदर्भ में अपना-अपना आवेदन शीघ्र जमा करने का आदेश जारी करने के साथ अगली सुनवाई की तारीख 13 अगस्त तय कर दी। अवैध सुनवाई इसलिए कहा गया है क्योंकि एसएटी के लिए निर्धारित नियम के अनुसार कोई अकेला सदस्य न तो कोई आदेश जारी कर सकता है न ही कोई फैसला ले सकता है। अगर ऐसा किया जाता है तो वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देश की अवहेलना होगी।
13 अगस्त को सेबी ने क्यों मांगा और समय?
श्री अय्यर के अनुसार 13 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान सेबी को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए तथा एसएटी से वीसीपीएल को अपने शेयरधारकों के पैसों का भुगतान करने के बारे में कहना चाहिए। लेकिन सेबी ने दोनों काम नहीं किया बल्कि अपना उत्तर देने के लिए उल्टे से एसएटी से और ज्यादा समय मांग लिया। आखिर सेबी ने और ज्यादा समय किसलिए मांगा? इसलिए ताकि इस मामले में और अधिक समय लगे। जबकि सेबी खुद आश्वस्त है कि एनडीटीवी तो मुखौटा भर है और उसके असली मालिक वीपीसीएल है और उसे 40 हजार शेयरधारकों का भुगतान करना है।
इसी बीच एसएटी ने एक बार फिर अगली सुनवाई की तारीख 14 सितंबर तय कर दी। ध्यान रहे कि अभी तक एसएटी एक सदस्यी है, इस वजह से इसका कोई फैसला न तो वैध होगा न ही मान्य। और जब एसएटी का कोरम पूरा होगा तो फिर इस मामले में नए सिरे से सुनवाई होगी। इसका मतलब साफ है कि यह मामला अभी लटकता रहेगा। जो एनडीटीवी चाहता है।
सेबी ने अपने आदेश में कई तथ्यों को नजरंदाज कर दिया
मालूम हो कि 26 जून 2015 को शिकायतकर्ता तथा कुछ शेयरधारकों की शिकायत पर सेबी ने कार्रवाई की थी और एक आदेश पारित कर इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए एसएटी से संपर्क किया था। सेबी ने अपने आदेश में कई तथ्यों को नजरंदाज कर दिया था जिससे रिलायंस तथा एनडीटीवी के मददगार साबित हुआ। इसलिए इस बार 13 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान एसएटी के एकल सदस्य ने अपने संवैधानिक अधिकार को बढ़ाते हुए सेबी को कार्रवाई करने से रोक दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की गुहार
श्री अय्यर के अनुसार एक आकलन के मुताबिक 40 हजार शेयरधारकों के करीब 500 करोड़ रुपये फंसे पड़े हैं। अगर इसके ब्याज का हिसाब लगाया जाए तो यह करीब 2 से ढाई सौ करोड़ बैठेगा। इस प्रकार एनडीटीवी पर करीब साढ़े सात सौ करोड़ रुपये की देनदारी बनती है। श्री अय्यर ने इस मामले में अभी तक वित्त मंत्रालय की ओर से की जा रही उपेक्षा को दूर कर उन 40 हजार शेयरहोल्डर को राहत देने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार की है। उन्होंने कहा कि ये 40 हजार शेयरधारक करीब दस साल से अपने पैसे का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने एसएटी में एक ईमानदार जज की नियुक्त करने का भी अनुरोध किया है ताकि सुनवाई जल्द और निष्पक्ष हो सके।
URL: Ndtv scandal and Role of sebi and security appellate tribunal
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