हमारे देश में स्कूली बच्चों का इतिहास के माध्यम से शुरू से ब्रेनवाश करने की कोशिश की गई है। स्वतंत्रता के बाद से भारतीय अकादमिक संस्थाओँ पर मार्क्सवादियों के बर्चस्व के कारण उसी वर्ग के लेखकों को आधिकारिक इतिहासकार माना गया। जबकि सच्चाई ये है कि सरकारी संरक्षण प्राप्त ये लेखक इतिहास की किताबें लिखी नहीं हैं बल्कि उसकी रचना की है। इस लिहाज से उन्होंने तथ्यात्मकता को कभी तरजीह दी ही नहीं। उन्होंने कहानीनुमा किताबों की रचना कर अपने संरक्षक को खुश किया। उस समय की सरकार तथा इतिहासकारों का प्रपंच आज भी तथ्यात्मक चूक के रूप में विद्यमान है। उसी प्रपंच का खुलासा किया है दो युवा विद्वान नीरज अत्री तथा मुनीश्वर सागर द्वारा लिखित किताब ‘ब्रेनवाश रिपब्लिक’ ने। दोनों विद्वानों ने कक्षा VI से कक्षा 12वीं तक के पाठ्यपुस्तकों में व्याप्त तथ्यात्मक और वैचारिक विकृतियों को अपनी किताब के माध्यम से उजागर किया है।
मुख्य बिंदु
* कांग्रेस के संरक्षण प्राप्त वामपंथी लेखकों ने न केवल गलत तथ्य पेश किया है बल्कि वैचारिक विकृत फैलाने का भी प्रयास किया है
* प्राचीन भारतीय इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास के साथ हुए छेड़छाड़ को ‘ब्रेनवाश रिपब्लिक’ में उजागर किया गया है
अत्री और सागर ने अपनी किताब में महज तथ्यात्मक और वैचारिक विकृतियों को उजागर ही नहीं किया है बल्कि इतिहास को पढ़ने और समझने की दृष्टि भी विकसित करने का प्रयास किया है। उन्होंने स्कूली बच्चों के लिए तैयार किए गए पाठ्यपुस्तों में विद्यमान कमियों को दूर करने के वास्तविक समाधान भी प्रदान किया है। ज्ञात हो कि स्कूली पाठ्यपुस्तक में व्याप्त जिस तथ्यात्मक और वैचारिक विकृति की बात दोनों युवा विद्वान ने अपनी किताब में उठाई है उस तरफ कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विद्वानों का ध्यान आकृष्टि किया था। हालांकि मार्क्सवादी विद्वानों द्वारा लिखे गए पाठ्यपुस्तकों में व्याप्त विकृतियों के बारे में वर्षों से काफी कुछ लिखा गया है, जिन्होंने कांग्रेस के संरक्षण के तहत दशकों तक अकादमिक पर प्रभुत्व बनाए रखा था। जिसे बीच-बीच में आई अन्य सरकारें भी हिला नहीं पाईं। लेकिन जब भारतीय जनता पार्टी की बहुमत वाली सरकार सत्ता में आई तो यह उम्मीद जगी थी कि अब समाधान निकलेगा, लेकिन इस सरकार में कुछ किया नहीं जा सका।
राष्ट्र निर्माण के लिए इतिहास एक महत्वपूर्ण साधन होता है। लेकिन इस महत्वपूर्ण साधन के तथ्यों के साथ शुरू से ही छेड़ाछड़ शुरू कर दी गई। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू में आरसी मजूमदार जैसे पिट्ठूओं द्वारा शुरू की गई छेड़छाड़ी इंदिरा गांधी के शासनकाल तक जारी रही। इनकी अगुआई में शोध आधारित नहीं बल्कि अनुसंधान आधारित विकृत इतिहास लिखने का जो प्रचलन शुरू हुआ वह साल 1970 तक अनवरत रूप से फलता-फूलता रहा। ध्यान रहे कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को खुद को राजनीति में स्थापित करने के लिए वाम-पार्टियों के समर्थन की आवश्यकता थी। इसलिए शिक्षा विभाग को वाम पार्टियों के हवाले कर उनसे समर्थन प्राप्त करने में सफल हो गई। इस तरह उन्होंने खुद को तो स्थापित कर लिया लेकिन भारतीय शिक्षा और इतिहास को गर्त में ढकेल दिया।
कांग्रेस के संरक्षण प्राप्त वामपंथी इतिहासकारों ने प्राचीन भारतीय इतिहास तथा मध्यकालीन भारत से लेकर आधुनिक भारत के इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने में कभी गुरेज नहीं किया। वह चाहे आर्य-द्रविड़ संघर्ष का मामला हो या फिर आर्यों के मूल पर सवाल उठाने का मामला हो। विजय नगर साम्राज्य के बारे में भ्रांतिया फैलाने का मामला हो या अकबर के महिममंडन का मामला हो। वामपंथी इतिहासाकरों ने इनसे संबंधित तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश किया है।
नीरज अत्री तथा मुनीश्वर जैसे युवा विद्वानों ने वामपंथी इतिहासकारों के इसी तथ्यात्मक तथा वैचारिक त्रुटियों को उजागर कर उसे सुधारने का प्रयास किया है। इन्होंने वामपंथी इतिहासकारों के उलट अपने देश के गरिमापूर्ण इतिहास के साथ ही देश की महानता को अपनी किताब की माध्यम से स्थापित करने का प्रयास किया है।
URL: Neeraj Atri and Munishwar Sagar’s historic book ‘Brainwashed Republic’ highlighting the fraudulence of Marxist historians
Keywords: History text book, indian history, Neeraj Atri, Munishwar Sagar, Leftist historian, Indian history, marxist scholars,ब्रैनवाश्ड रिपब्लिक, इतिहास पाठ्य पुस्तक, भारतीय इतिहास, नीरज अत्री, मुनीश्वर सागर, वामपंथी इतिहासकार, भारतीय इतिहास, मार्क्सवादी विद्वान
नीरज अत्री जी से निवेदन है कि अपनी पुस्तक “Brainwashed republic” का हिंदी संस्करण शीघ्र आएं।