नीरजा फिल्म रिव्यू
संजीव जोशी। महिला जीवटता, और उसके समर्पण की पूरी तस्वीर प्रस्तुत करती है राम माधवानी की फिल्म नीरजा। तेईस साल की उम्र में देश और लोगों के प्रति उनके देखने का नजरिया असाधारण था। इसी सोच ने उन्हें सच में असाधारण बना दिया। तेईस साल की उम्र में नीरजा को न केवल भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र (मरणोपरांत), बल्कि पाकिस्तान और अमेरिका का भी श्रेष्ठ नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ। नीरजा इतिहास के पन्नो में सदा के लिए अमर हो गयीं।
सन् 1986 में भारत से अमेरिका जाने वाले विमान Pan Am Flight 73 को चार हथियारबंद आंतकवादियों ने पाकिस्तान के करांची में अपने कब्जे में कर लिया। नीरजा भनोट इस विमान की मुख्य परिचारिका थीं। 379 यात्रियों से भरे इस जहाज में कई विदेशी यात्री थे। नीरजा ने अपने कौशल, साहस और प्रबल इछाशक्ति का परिचय देते हुए 359 यात्रियों की जान बचाई और अंत में तीन मासूम बच्चों के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए शहीद हो गयीं।
श्री माधवानी विमान में बंधक बने लोगों का दर्द उभारने में सफल रहे हैं। माँ बेटी का भावनात्मक लगाव और एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना को सोनम कपूर और शबाना आजमी ने जीवंत किया है। दर्शक इस रिश्ते को महससू करते हैं और और उनकी आंखें भी भींग जाती हैं। योगेन्द्र टिकू ने पिता की भूमिका में गहराई प्रदान की है।
यह सोनम कपूर की अब तक की सबसे अच्छी फिल्म है। उन्होंने नीरजा भनोट के किरदार को साकार किया है। दाम्पत्य जीवन के बिखराव को नीरजा ने अपने व्यावसायिक जीवन से भिन्न रखा है। दो विपरीत धाराओं में बहती नीरजा एक बेहतरीन प्रस्तुति और प्रेरणा है युवा पीढ़ी की युवतियों के लिए।
‘भाग मिल्खा भाग’, ‘मेरीकॉम’ और अब ‘नीरजा’- वाकई कितने आदर्श हैं हमारे पास जिनके किरदारों को परदे पर उतार सिनेमा अपनी सार्थक प्रस्तुति दे सकता है। यह सही मायने में समाज में एक आदर्श प्रस्तुति है इसके लिए ‘नीरजा’ की पूरी टीम बधाई की पात्र है।