सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश कुमार का दम लगता लालू यादव की पार्टनरशिप में घुटने लगा है! लालू यादव की साझीदारी से चल रही नीतीश सरकार को इस बात की चिंता है कि बिहार सुशासन की पटरी से उतरने लगा है। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बने लालू यादव और उनके बेटों का राज आने के बाद से बिहार में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही हैं, लेकिन जिस सरलता और अपराध पर नियंत्रण वाली सरकार वह भाजपा के साथ मिलकर चला रहे थे, वह लालू यादव के राजद के साथ मिलकर चलाने में वह असमर्थ साबित हो रहे हैं! नीतीश सरकार ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी राजद के विधायक राज बल्लभ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच कर लालू यादव को बता दिया है कि अब अपराध के मामले में पानी सिर से उपर बहने लगा है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा!
गौरतलब है कि राजद के विधायक राज बल्लभ पर बलात्कार का आरोप है। राज बल्लभ को गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद 30 सितंबर को पटना हाईकोर्ट ने उसे जमानत दे दी। पटना हाईकोर्ट के इस आदेश को नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसकी जमानत को दो सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया और उसे जेल में ही रहने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी व न्यायमूर्ति ए.एम.सप्रे की पीठ ने जमानत को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में पटना हाईकोर्ट को फिलहाल अभियुक्त को जमानत नहीं देनी चाहिए थी। हाईकोर्ट ने उसे जमानत देकर भारी भूल की है। पीठ ने कहा कि हमारी पहली प्राथमिकता निष्पक्ष ट्रायल और न्याय को सुनिश्चित करना है और यह तभी हो सकता है जब गवाह निडर होकर अदालत में गवाही दे। इस मामले में यह तभी संभव है जब अभियुक्त जमानत पर जेल से बाहर न हो। पीठ ने यह भी कहा कि वह इस तथ्य से वाकिफ है कि अभियुक्त अभी विचाराधीन है और उसकी स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ ही समाज का हित और मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मामले में हाईकोर्ट से मिली जमानत को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट नीतीश कुमार की सरकार पहुंची थी। जबकि इस सरकार में सबसे बड़े दल राजद के विधायक को जमानत मिली थी! इससे इस बात की आशंका को बल मिल रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब किसी भी तरह के अपराध व अपराधियों से समझौता न करने पर अमल करना चाहते हैं, वहीं अपराधी शाहबुद्दीन, राज बल्लभ आदि को जेल से निकलवाने और बिहार में फिर से अपराध बढ़ाने में लालू यादव की पार्टी की बड़ी भूमिका कही जा रही है! इससे बिहार सरकार के अंदर टकराव की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
लालू के दो बेटे सरकार में मंत्री भी हैं और लालू का दल सबसे बड़ा दल है, नीतीश कुमार इसे समझते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी अकेले में हुई मुलाकात और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एवं बिहार के अन्य भाजपाई नेताओं से उनकी गुपचुप गपशप को लालू यादव पर दबाव बनाने की राणनीति माना जा रहा है। नीतीश कुमार की छवि जिस तरह से भाजपा के साथ सरकार चलाने में चमक रही थी, लालू यादव के साथ सरकार चलाने में उनकी छवि उतनी ही धूमिल हुई है! खासकर, बिहार के बोर्ड परीक्षा में नकल, इंजीनियरों की हत्या, अपहरण, रंगदारी, लगातार हत्याओं का दौर, दंगे, बलात्कार जैसी घटनाओं के बढ़ने से बिहार की खासी बदनामी हुई है! और यह सब लालू यादव के समर्थन वाली सरकार के सत्ता में आते ही शुरू हो गया था।
जानकार यह भी बताते हैं कि नीतीश सरकार जिस तरह से राजद विधायक राज बल्लभ मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंच कर जमानत रद्द कराने में सफल रहे उससे इस आशंका को बल मिला है कि उनकी अंदर ही अंदर भाजपा नेताओं से बातचीत हो चुकी है। वह कभी भी लालू यादव एवं उनकी पार्टी को बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं और फिर से भाजपा के साथ मिलकर सरकार सरकार चलाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं!
वैसे भी नीतीश कुमार के लिए भाजपा के साथ सरकार चलाना ज्यादा आसान था, क्योंकि भाजपा भी अपराध नियंत्रण और कानून व्यवस्था को लेकर उतनी ही सचेत रही है, जितनी कि नीतीश कुमार। इसके उलट, लालू व उनके परिवार के 15 साल के शासन को स्वयं अदालत जंगलराज कह चुका है और इस बार भी बिहार में जंगल राज का प्रभाव उनकी पार्टी की सत्ता में साझेदारी के बाद से ही दिखने लगा है। अभी हाल ही में, लालू यादव व उनकी पार्टी राजद ने विमुद्रीकरण पर जहां प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला, वहीं नीतीश कुमार ने खुलकर प्रधानमंत्री के इस कदम की सराहना की। यह दर्शाता है कि नीतीश व लालू के बीच दरार पड़ चुकी है और वह दिनों-दिन चौड़ी होती जा रही है!