संयुक्त राष्ट्र के 175 देशों की सर्वसम्मति 21 जून को विश्व योग दिवस घोषित किया है. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की विशेष प्रयास से यह संभव हुआ है! इस साल हम दूसरा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने जा रहे हैं। इसके साथ ही एक विवाद शुरू हो गया है कि योग मे ॐ का उच्चारण होना चाहिए या नहीं।
योग प्राचीन काल से भारत की आत्मा से सम्बंधित रहे हैं, मन की शुद्धता और विचारों में पवित्रता के लिए ॐ शब्द का उच्चारण किया जाता था। इस शब्द को किसी भी धर्म के साथ जोड़ना तर्क संगत नहीं लगता क्योंकि ॐ प्रकृति के मूल में है. ओम शब्द के महत्ता जानने से पहले आइये जरा ॐ को जानने की कोशिश करते हैं।
ॐ तीन वर्णो से मिल कर बन है अ,उ,म् ; जो पंचतत्वों के तीन तत्व आकाश, अग्नि और वायु का प्रतिनिधित्व करता है और तीन तत्वों से उत्पत्ति होती है दो अन्य तत्वों की, हम सभी के शरीर में यह पांच तत्व विद्यमान है चाहे वह व्यक्ति किसी भी धर्म से सम्बंधित क्यों नो हो! इन पांच तत्वों पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि से बने इस शरीर से अगर किसी का कोई परहेज नहीं, तो ॐ से क्यों? ॐ का उच्चारण स्वयं में एक सम्पूर्ण योग है जो शरीर में मौजूद पञ्चतवों को नियंत्रित करता है। ब्रह्माण्ड के शब्दकोष में अगर कोई सबसे महत्वपूर्ण शब्द है तो वह ॐ है!
हिन्दू ओम शब्द का उच्चारण करते हैं! वही ॐ मुस्लिमों के आमीन में भी निहित है! ईसाइयों के पास पहुंचकर ॐ आमेन बन जाता है! सिखों ने भी एक ओंकार को माना है! जब सभी धर्म विशेष शब्दों का मूल ॐ में निहित है तो इसे बोलने में विवाद कैसा?
यह था शाब्दिक अर्थ अब वैज्ञानिक तथ्यों पर बात करते है, नासा के वैज्ञानिकों की सूरज से निकलने वाली ध्वनि प्रारंभिक शोध 2011 के अनुसार निकलने वाली ध्वनि भी ॐ ही थी ! देखिये इस वीडियो में सूरज की किरणों से निकलने वाली ध्वनि :
https://www.youtube.com/watch?v=Z1fFvZbbouY
ॐ को दवाई के रूप में ग्रहण करना तथा आत्मसात करने में ही मानव मात्र की भलाई है। इससे मानसिक,शारीरिक और आत्मिक लाभ हैं। जिस तरह से दवाई का कोई धर्म नहीं होता ! उसी तरह ॐ का कोई धर्म नहीं है ! जब दवाई लेने में कोई परहेज नहीं है तो ॐ शब्द से कैसे? ॐ के जाप में ऐसा कुछ नहीं जिससे किसी के मजहब या रिलीजन को खतरा हो! ॐ का जाप कीजिये स्वस्थ रहिये क्योंकि इस शब्द में कल्याण और मानवता छुपी हुई है!