15 तारीख से फिर शुरू हुई श्री अरविन्द केजरीवाल की महत्वाकांक्षी सम-विसम योजना, जिसका फर्क न ट्रैफिक पर पड़ा और नहीं प्रदूषण ही कम हो पाया, बड़ी है तो सिर्फ आम जनता की परेशानियां. प्रारंभिक मेट्रो स्टेशनों में लम्बी-लम्बी कतारें, लोगों को प्रवेश द्वार तक पहुँचने में 15 से 20 मिनट्स लग रहे हैं जिससे बुजुर्गों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को कार्यालय पहुँचने में भी विलम्ब हो रहा है. क्यों नहीं प्रवेश द्वारों की संख्या में वृद्धि के लिए दिल्ली मेट्रो के अधिकारियों को कहा गया, यह समझ से परे है? ट्रैन के भीतर तरकारियों की तरह ठूंसे हुए लोगों को देखकर लगता है कि आम आदमी पार्टी सम-विषम के गणित में फेल होती दिखाई दे रही है, इस योजना में कई झोल नजर आ रहे हैं.
दूसरा बड़ा कारण है सुरक्षा जांच के लिए लगाई गयी एक्स-रे मशीने जिनके ख़राब होने के बाद सामान जांचने का कोई विकल्प नहीं है, हाथों के द्वारा सामान की जांच प्रासंगिक और विश्वसनीय दोनों नहीं है हर हफ्ते आतंकवादी आक्रमण सम्बंधित रेड-अलर्ट के बीच छोटी सी सुरक्षा चूक का क्या परिणाम हो सकता है इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है. सवाल फिर वही क्यों नहीं इन एक्स-रे मशीनों का विकल्प रखा गया यह समझ से परे है?
इस तरह की महत्वकांक्षी लागू करने से पहले छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बातों पर काम करने की जरूरत है फोब्स मैगजीन की सूची में अपना नाम देखकर मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल अति उत्साहित हो गए और सम-विसम सिद्धांत के गणित में उलझ गए