14 अप्रैल को संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती पर पहली बार देश के किसी प्रधानमंत्री ने उनके जन्मस्थान महू से उस स्वप्न को आगे रखा, जिसे कभी डॉ अंबेडकर की आंखों ने देखा था। बाबा साहब ने जातिविहीन, सशक्त, समतावादी समाज और ग्रामोन्मुख अर्थव्यवस्था का सपना देखा था। ताज्जुब है कि देश को आजाद हुए 68 साल से अधिक हो गए, लेकिन न तो जाति का बंधन टूटा, न शोषित, वंचित और समाज के हासिल पर पड़ा समाज सशक्त व समान हुआ और न ही गांवों के देश भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ओर किसी ने ध्यान दिया। डॉ अंबेडकर का सपना था कि 10 साल तक आरक्षण देकर दलित, शोषित, पिछड़े तबके को इतना सशक्त बना दिया जाए कि वह समाज में बराबरी के स्तर को प्राप्त कर सके। लेकिन आजादी के बाद हमारे राजनेताओं ने आरक्षण को एक ऐसे बेड़ी और वोट बैंक के रूप में विकसित किया कि डॉ अंबेडकर के जातिविहीन समाज का सपना टूट ही गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह डॉ बाबा साहब अंबेडकर द्वारा संविधान में प्रदान किया गया अधिकार ही है, एक गरीब और दूसरों के घरों में काम करके अपने परिवार का पेट पालने वाली मां का बेटा आज देश का प्रधानमंत्री है। यही सही है कि नरेंद्र मोदी आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो उस गरीब व पिछड़े तबके से आए हैं, जिसे सशक्त करने का सपना डॉ अंबेडकर ने देखा था, लेकिन बाबा साहब के इस सपने को पूरे होने में भी करीब 68 साल लग गए! डॉ. अम्बेडकर ने समाज में अन्याय के खिलाफ लड़़ाई लड़ी थी। उन्होंने समानता और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ी थी। उनकी यह लडाई सही अर्थों में 16 मई 2014 को पूरा हुआ, जब दूसरे के घरों में बर्तन मांजने वाली एक गरीब मां का बेटा प्रधानमंत्री बना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद संभाले दो साल होने को हैं और उनकी योजनाओं को देखकर कह सकते हैं कि वह डॉ अंबेडकर के समतामूलक समाज की ओर उन्मुख हैं।
मोदी सरकार आजाद भारत की पहली ऐसी सरकार बन गई है, जिसका पूरा बजट ग्रामोन्मुख है और यही सपना डॉ अंबेडकर और महात्मा गांधी ने देखा था। बजट 2016 पूरी तरह से गांव व किसानों को समर्पित है। पहली बार ग्राम पंचायतों-नगर निगमों के अनुदान में 228 फीसदी का इजाफा किया गया है। करीब 70 फीसदी ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाले भारत को विदेशी खाद, कीटनाशक, बीज के भरोसे इतना पंगू बना दिया गया कि आज न केवल किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है, बल्कि इस से पैदा होने वाली फसलों से पूरी की पूरी पीढ़ी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में तेजी से आती जा रही है। बिहार का मुजफ्फरपुर हो या फिर पंजाब- कई ऐसे गांव हैं, जहां की पूरी की पूरी आबादी कैंसर की चपेट में फंसती चली जा रही है।
मोदी सरकार ने पहली बार इसकी फिक्र की और यूरिया को नीम कोटिंग तो किया ही, 2016 के बजट में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए खास प्रावधान किया ताकि फिर से प्राकृतिक खेती को जिंदा कर जमीन से लेकर किसान तक की सेहत को निरोग किया जा सके। बजट- 2016 में यह 5 लाख एकड़ जमीन में जैविक खेती को प्रोजेक्ट करने का लक्ष्य रखा गया है। पहली बार किसानों के लिए फसल बीमा की शुरुआत की गई है, जिसके लिए 5500 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं। यही नहीं, यूपीए सरकार के समय जो मनरेगा खड्डा खोद-खोद कर भ्रष्टाचार की कमाई का जरिया बन गया था, उसे मोदी सरकार ने कृषि से तो जोड़ा ही है, वर्षा जल के संरक्षण के लिए कुओं व तालाबों की खुदाई को भी इससे जोड़ कर दुनिया के समक्ष उत्पन्न दीर्घगामी जलसंकट से निजात पाने की ओर भी कदम बढ़ाया है।
पिछले दो दशक में कई लाख किसानेां ने कर्ज में डूबे होने और मानसून की अनिश्चितता के कारण फसल के बर्बाद होने की वजह से आत्महत्या की है। कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला देश आज भी खेती के लिए वर्षा पर निर्भर है और यह बेहद शर्मनाक है। मोदी सरकार ने सिंचाई के लिए 17 हजार करोड़ निर्धारित किए गए हैं ताकि सिंचाई का जाल बिछाया जा सके और किसानों को मानसून पर निर्भर न रहना पड़े। किसानों के विकास के लिए पहली बार 35 हजार 984 रुपए का प्रावधान किया गया है। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि अगले पांच साल में किसानों की आय को दोगुना करना है। प्रधानमंत्री ने किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य का उल्लेख किया और कहा कि ग्रामीणों की क्रय क्षमता को निश्चित तौर पर बढ़ाना है, क्योंकि इससे भारत की अर्थव्यवस्था को नई गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि पंचायती राज से जुड़े संस्थानों को और ज्यादा मजबूत एवं ज्यादा जीवंत बनाया जाना चाहिए।
एक गरीब ग्रामीण मां, जो आज भी लकड़ी के चुल्हे पर अपनी आंखें जलाते हुए खाना पकाती है, आजाद भारत में पहली बार उन्हें भी रसोई गैस का कनेक्शन उपलब्ध कराया गया है। वास्तव में यह सपना देखा था राष्ट्रपिता महात्मागांधी और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने, जिसे आजादी के इतने सालों बाद पूरा करने का कार्य चल रहा है।
यूरोपीय देशों में जब औद्योगीकरण की हवा चली तो गांव के गांव उजड़ते और शहर के शहर भीड़ के हवाले होते चले गए। आजादी के बाद पंडित नेहरू की सरकार ने अर्थव्यवस्था में ब्रिटेन के इसी मॉडल को अपनाया, जबकि गांधीजी का मत था कि ग्राम स्वराज के जरिए ही देश अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। ब्रिटेन व फ्रांस को वि-शहरीकरण की योजना बाद में लागू करनी पड़ी, अर्थात अर्थव्यवस्था के केंद्र को शहर से गांव की ओर स्थानांतरित करने की शुरुआत करनी पड़ी। दुख तो यह है कि आजादी के इतने सालों बाद पहली बार इस सरकार ने वि-शहरीकरण की योजना को लागू किया है। इससे पहले की सभी सरकारें लोगों को नारकीय शहरी जीवन की ओर ही ढकेलती रही है। डॉ अंबेडकर की जयंती पर उनके जन्मस्थान महू से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस ‘ग्राम उदय से भारत उदय अभियान’ का शुभारंभ किया, जो निकट भविष्य में भारत की अर्थव्यवस्था को ग्रामीण केंद्रित और पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़ा करने वाला साबित हो सकता है।
प्रधानमंत्री के अनुसार, 14 अप्रैल से आने वाली 24 अप्रैल तक भारत सरकार के द्वारा सभी राज्यों सरकारों के सहयोग के साथ “ग्राम उदय से भारत उदय”, एक व्यापक अभियान प्रारंभ हो रहा है और मुझे खुशी है कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने हमें जो संविधान दिया। महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज की जो भावना हमें दी, ये सब अभी भी पूरा होना बाकी है। आजादी के इतने सालों के बाद जिस प्रकार से हमारे गांव के जीवन में परिवर्तन आना चाहिए था, जो बदलाव आना चाहिए था, वह नहीं आया है। बदले हुए युग के साथ ग्रामीण जीवन को भी आगे ले जाना आवश्यक है। यह दुख की बात है अभी भी बहुत कुछ करना बाकि है। भारत का आर्थिक विकास 5-50 बड़े शहरों से होने वाला नहीं है। भारत का विकास 5-50 बढ़े उद्योगकारों से भी नहीं होने वाला। भारत का विकास अगर हमें सच्चे अर्थ में करना है और लंबे समय तक स्थायी विकास करना है तो गांव की नींव को मजबूत करना होगा। तब जा करके उस पर विकास की स्थायी इमारत बना सकते है।
प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार, इस सरकार का बजट पूरी तरह गांव को समर्पित है, किसान को समर्पित है। एक लंबे समय तक देश के ग्रामीण अर्थकारण को नई ऊर्जा मिले, नई गति मिले, नई ताकत मिले, उस पर बल दिया गया है। मैं साफ देख रहा हूं, जो भावना महात्मा गांधी की अभिव्यक्ति में आती थी, जो अपेक्षा बाबा साहेब अम्बेडकर संविधान में प्रकट हुई है, उसको चरितार्थ करने के लिए, टुकड़ो में काम करने से चलने वाला नहीं है। हमें जितने भी विकास के स्रोत हैं, सारे विकास के स्रोत को गांव की ओर मोड़ना है।
कितनी अफसोस की बात है कि आजादी के 68 साल बाद आज भी भारत के करीब 18 हजार गांव ऐसे हैं, जहां अंधेरा पसार है। वहां के लोगों ने आज तक बिजली नहीं देखी है। बल्ब तो छोडि़ए, बिजली का खंभा भी इन गांवों में नहीं पहुंचा है। अभी तक उन 18,000 गांव के लोगों ने उजियारा देखा नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, 20वीं सदी चली गई, 19वीं शताब्दी चली गई, 21वीं शताब्दी के 15-16 साल बीत गए, लेकिन उनके नसीब में एक लट्टू (बल्ब) भी नहीं था। प्रधानमंत्री कहते हैं, मेरा बैचेन होना स्वाभाविक था। जिस बाबा साहेब अम्बेडकर ने वंचितों के लिए जिंदगी गुजारने का संदेश दिया हो, उस शासन में 18,000 गांव अंधेरे में गुजारा करते हों, ये कैसे मंजूर हो सकता है।
आज इन गांवों में बिजली पहुंचाने का कार्य शुरू हो चुका है। प्रधानमंत्री ने केवल 1000 दिन में इन सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जबकि इस देश की लालफीताशाही वाली नौकरशाही मान रही थी कि इसके लिए कम से कम सात साल का वक्त लगेगा। आज स्थिति यह है कि देश की कोई भी जनता अपने मोबाइल पर ‘गर्व’ – ‘GARV’ App लांच अपलोड कर सकता है कि और देख सकता है कि किस गांव में खंभा पहुंचा, किस गांव में तार पहुंचा, कहां बिजली पहुंची। भारतीय इतिहास में पहली बार देश की जनता को इतना पारदर्शी शासन मिला है, जहां सरकार के एक-एक कदम पर जनता नजर रख सकती है। सोशल मीडिया के जरिए सरकार से संवाद स्थापित कर सकती है और सरकार भी आगे बढ़ कर एक-एक जनता को मदद पहुंचा रही है। रेल मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ऐसे सैकड़ों उदाहरण से भरे पड़े हैं। यही सपना तो भारत के संविधान निर्माताओं ने देखा था, जिसे पूरा होने में करीब-करीब 70 साल लग गए।
प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, बाबा साहेब अम्बेडकर कहते थे कि शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो। साथ-साथ उनका सपना ये भी था कि भारत आर्थिक रूप से समृद्ध हो, सामाजिक रूप से सशक्त और तकनीकी रूप से सक्षम हो। वे सामाजिक समता, सामाजिक न्याय के पक्षकार थे, वे आर्थिक समृद्धि के पक्षकार थे और वे आधुनिक विज्ञान के पक्षकार थे, आधुनिक तकनीक के पक्षकार थे। इसलिए सरकार ने भी ये 14 अप्रैल से 24 अप्रैल, 14 अप्रैल बाबा अम्बेडकर साहेब की 125वीं जन्म जन्म जयंती और 24 अप्रैल पंचायती राज दिवस, इन दोनों का मेल करके बाबा साहेब अम्बेडकर के सामाजिक-आर्थिक कल्याण का संदेश गांव-गांव ले जाने का निर्णय लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई अर्थों में जो कर रहे हैं, पहली बार कर रहे हैं और संविधान निर्माताओं ने जो सपना देखा था, उसे वास्तव में साकार करने की कोशिश कर रहे हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ताकत, ग्राम उदय से भारत उदय, कौशल भारत, डिजिटल भारत, मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, हर घर को गैस कनेक्शन, हर व्यक्ति को रोजगार, हर व्यक्ति का बैंक खाता, हर घर में शौचालय आदि ऐसी बुनियादी योजनाएं हैं, जिसका संकल्प तो संविधान निर्माण के साथ ही संविधान निर्माताओं ने लिया था, लेकिन उसे लागू करने में करीब 70 साल लग गए।
यही कारण है कि जब प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि बाबा साहेब अम्बेडकर एक व्यक्ति नहीं, संकल्प का दूसरा नाम थे। बाबा साहेब अम्बेडकर जीवन जीते नहीं थे, वो जीवन को संघर्ष जोत देते थे। बाबा साहेब अम्बेडकर अपने मान-सम्मान, मर्यादाओं के लिए नहीं, बल्कि समाज की बुराईयों को नष्ट करने के लिए लड़ रहे थे ताकि आखिरी झोर पर बैठा दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित को सम्मान मिले, उसे बराबरी का हक मिले, उसे अपमानित न होना पड़े। प्रधानमंत्री जब कहते हैं कि डॉ अंबेडकर ने पग-पग पर सामाजिक अपमान को सहा, लेकिन जब वह संविधान का निर्माण करने बैठे तो उसमें किसी के प्रति द्वेष का इजहार नहीं किया। आज उन्हीं के कारण एक गरीब चाय वाला का बेटा भी प्रधानमंत्री बन सकता है।
तो दलित वोटों की थोक ठेकेदार मायावती हों, या महादलित और अति पिछड़े के रूप में बंटे हुए समाज को और बांटने वाले नीतीश कुमार हों, या फिर घोर जातिवादी लालू यादव, या सर्वहारा की बात करने वाले कम्यूनिस्ट या भ्रष्टाचार मुक्त समाज का नारा गढ़ने वाले अरविंद केजरीवाल या 60 साल तक समाज के पिछड़े तबके को हासिए पर ढकेल कर रखने वाली कांग्रेस पार्टी या फिर कांग्रेस के शासन में भ्रष्टाचार के आरोपों में उनके सहयोगी के रूप में उभरे मीडिया हाउस– सब एक साथ मिलकर प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोल देते हैं। सही मायने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डॉ अंबेडकर व महात्मा गांधी द्वारा देखे गए उस सपने को पूरा करने में जुटे हैं, जिसमें आखिरी छोर पर खड़े समाज के दबे-कुचले व्यक्ति को ऊपर उठाने की तड़प थी। पहले ही 68 साल की देरी हो चुकी है, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की रफतार बहुत तेज है और इस तेज रफतार से ही विरोधी खौफ खा रहे हैं। यदि समाज से गरीबी, अशिक्षा और शोषण मिट गया तो फिर 68 साल से जो लोग इसके आधार पर राजनीति कर रहे हैं, वो क्या करेंगे। यही मोदी विरोधियों का वास्तविक डर है।
Web Title: pm narendra modi and ambedkar vision has same for develop india
Keywords: pm narendra modi| Dr BR Ambedkar vision| Prime Minister Narendra Modi paid his tributes to BR Ambedkar, the chief architect of India’s Constitution