आजकल कांग्रेस अध्यक्ष और उनके ‘पीडी पत्रकारों’ के झूठ बोलने का तरीका एक-सा हो गया है! और यह एकदम वही तरीका है, जिसे हिटलर के प्रचारमंत्री गोयबल्स ने अपनाया था। यानी- ‘एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच बन जाएगा।’ जर्मनी के तानाशाह हिटलर और सोवियत संघ के कम्युनिस्ट अधिनायकवादी जोसेफ स्टालिन, चीनी माओ-त्से-तुंग आदि ने इसी झूठ का सहारा लेकर अपने आसपास के लोगों से लेकर लाखों लोगों तक का नरसंहार किया था। इन तानाशाहों ने झूठ में खुद को ही प्राथमिक स्रोत बनाकर इसे और अधिक विश्वसनीय बनाने का खेल रचा, जिसमें उसके विरोधी फंसते चले गये। भारत की राजनीति में राहुल गांधी और उनके पीडी पत्रकार आजकल इसी झूठ का इस्तेमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निपटाने के लिए जमकर कर रहे हैं।
आइए पहले इस झूठ के मनोविज्ञान को समझें
मनोविज्ञान में झूठ के कई विश्लेषणों में एक झूठ वह है, जिसमें दूसरे या तीसरे स्रोत अविश्वसनीय स्रोत या मनगढंत बातों का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि दूसरा व्यक्तिनिष्ठ झूठ है, जिसमें खुद को ही प्राथमिक स्रोत बना कर झूठ का चक्रव्यूह रचता है। किसी झूठ को स्थापित करने के लिए खुद को एक स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने वालों को मनोविज्ञान में Subjective liar(व्यक्तिनिष्ठ झूठ) कहा जाता है जबकि किसी दूसरे-तीसरे अविश्वसनीय स्रोत के जरिए कुछ भी पेश करने वालों को Objective liar(वस्तुनिष्ठ झूठ) कहा जाता है।
ऑब्जेक्टिव लायर समाज को गुमराह करने के लिए झूठ बोलता है, उसे तरह-तरह से प्रचारित भी करता या कराता है, लेकिन सब्जेक्टिव लायर उस झूठ को और प्रभावी बनाने के लिए खुद को ही स्रोत के रूप में उसमें शामिल कर लेता है और वही सच-झूठ का विधाता बन जाता है!
इसे पुरुष-स्त्री मनोविज्ञान के जरिए समझिए
व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) झूठ के लिए ही हिंदी में कानाफूसी और अंग्रेजी में गॉसिप शब्द का इस्तेमाल किया गया है। मनोविज्ञान में झूठ को पुरुष और स्त्रियों के व्यवहार का उदाहरण देकर बेहतरीन तरीके से विश्लेषित किया गया है। मनोविज्ञान ऐसा मानता है कि स्त्रियों में कानाफूसी और गॉसिप की आदत पुरुषों से अधिक होती है, इसलिए उनका झूठ वस्तुनिष्ठ की जगह व्यक्तिनिष्ठ ज्यादा होता है। व्यक्तिनिष्ठ झूठ इस तरह से बोला जाता है कि आप उसे फेक भी नहीं कह सकते, जबकि आप जानते हैं कि बोलने वाला व्यक्ति झूठ बोल रहा है। व्यक्तिनष्ठ झूठ इतना प्रभावी होता है कि सामने वाला उसका काट ढूंढ ही नहीं पाता, उसका प्रतिवाद ठीक से नहीं कर पाता और झूठ बोलने वाला पूरे समाज में अपने झूठ को आसानी से स्थापित कर देता है।
संस्कृत में स्त्रियों के नकारात्मक गुणों के लिए जिस संज्ञा का प्रयोग हुआ है, वह त्रियाचरित्र है और उसमें व्यक्तिनिष्ठ झूठ सबसे प्रभावी हथियार है। रामायण में कैकेयी की दासी मंथरा ने इसका राम के खिलाफ जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया था। उसने कैकेयी को भड़काने के लिए भरत को राजगद्दी न मिलने पर खुद की पीड़ा को सामने रखा और कैकेयी मतिभ्रम का शिकार हो गयी। इसी तरह रामायण में सूर्पनखा ने लक्ष्मण द्वारा अपनी नाक काटे जाने का बदला लेने के लिए रावण के मन में सीता के प्रति आसक्ति के बीज-वपन का खेल खेला और रावण उसके जाल में फंस गया।
आज की राजनीति में केजरीवाल ने की इसकी शुरुआत
हाल के दिनों में भारत की राजनीति में इस कानाफूसी झूठ यानी व्यक्तिनिष्ठ झूठ की शुरुआत अरविंद केजरीवाल ने की, जिसमें उन्हें जबरदस्त सफलता मिली। उनकी सफलता से प्रेरित होकर इसे कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनाया और उनकी सफलता में अपनी सफलता ढूंढ़ने वाले गांधी परिवार के पीडी पत्रकारों’ ने भी हवा का रुख बनाने के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल किया। आइए केजरीवाल के कुछ उदाहरण से समझते हैंः-
1 ‘मुझे बीजेपी के एक नेता ने बताया है जी’
2 ‘मुझे एक ऑटो वालो ने कहा है जी’
3 हमें दिल्ली के अधिकारियों ने बताया है जी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन से लेकर आज तक इस पैटर्न का खूब इस्तेमाल किया है। इसमें प्राइमरी सोर्स वह खुद ही हैं, जिन्हें कोई न कोई कुछ बता रहा है। इससे उन्होंने जनता में यह संदेश देने का प्रयास किया कि भाजपा के अंदर के नेता भी भाजपा से दुखी हैं, आम जनता से वह सीधे मिलते हैं, उनकी बात सुनते हैं और दिल्ली के अधिकारी भी उपराज्यपाल के खिलाफ हैं। जबकि सच्चाई इसके उलट है। अभी तक कोई भाजपा नेता उनकी पार्टी को ज्वाइन करने नहीं गया है, आम जनता के दरबार को वह अधूरा छोड़कर भागने वाले और सरकार के सचिव को पिटवाने वाले वो पहले मुख्यमंत्री हो चुके हैं। अब केजरीवाल खुद ही स्रोत हैं, इसलिए न तो वह उस भाजपा नेता का नाम बताएंगे, न उस ऑटो वाले का, न अधिकारी का, इसलिए यह व्यक्तिनिष्ठ झूठ का बेहतरीन उदाहरण है।
व्यक्तिनिष्ठ झूठ के रास्ते पर राहुल गांधी और भी तेज
दिल्ली के चुनाव में जब 67 सीटों के साथ अरविंद केजरीवाल की पार्टी जीत गयी तो राहुल गांधी ने कहा कि हमें आम आदमी पार्टी से सीखने की जरूरत है। और इसके बाद राहुल गांधी ने सबसे पहले व्यक्तिनिष्ठ झूठ को सबसे पहले अपनाया। अब उदाहरण देखिए-
* फ्रांस के राष्ट्रपति ने मुझे कहा कि राफेल डील को सार्वजनिक कीजिए
* भाजपा के सांसद आकर कहते हैं कि वह अपने प्रधानमंत्री से दुखी हैं
अब देखिए। ऐसे सभी बयान में राहुल गांधी जो लोगों को बता रहे हैं, उसके प्राथमिक स्रोत वह खुद ही हैं। अब चाहे फ्रांस की सरकार की ओर से राफेल डील पर खंडन आ गया कि राहुल गांधी से ऐसी कोई बात नहीं हुई, लेकिन वह राफेल डील पर संसद के अंदर से झूठ फैलाने में सफल हो गये। वह संसद के अंदर से यह झूठ फैलाने में सफल हो गये कि मोदी सरकार में केवल प्रधानमंत्री ही सबकुछ है। उनकी पार्टी के सांसद भी दुखी हैं। राहुल लगातार इस पैटर्न का उपयोग कर रहे हैं, क्योंकि इस सरकार के खिलाफ उनके पास कोई भी ठोस सबूत नहीं है। इसलिए वह गॉसिप के जरिए इस सरकार को बदनाम करने की कोशिश में जुटे हैं, जिसमें उन्हें उनके दरबारी लुटियन मीडिया का भरपूर सहयोग मिल रहा है।
लुटियन मीडिया राहुल गांधी के रास्ते पर
राहुल गांधी के पीडी पत्रकारों की हालत देख लीजिए
* मेरे एक मुसलिम दोस्त ने बताया कि उसने अपनी बेटी की शादी में मीट हटा दिया कि क्या पता कोई बीफ समझ कर हमला कर दे-रवीश कुमार
* गोयनकाजी ने एक पत्रकार को हटा दिया, क्योंकि एक नेता ने उसकी तारीफ कर दी थी। यह कहीं खोजने से नहीं मिलेगा, चूंकि मैं इंडियन एक्सप्रेस का संपादक हूं, इसलिए यह मैं दावे से कह रहा हूं- राजकमल झा
* संघ के एक स्वयंसेवक ने बताया कि विश्व हिंदू परिषद मंदिर बनाने की पूरी तैयारी कर चुकी है- पुण्य प्रसून वाजपेयी
* मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि मेरा प्रोजेक्ट पास नहीं होगा- बरखा दत्त
* मुझे भाजपा के प्रवक्ताओं और मोदी सरकार के मंत्रियों ने कहा कि मुझसे प्रधानमंत्री मोदी नाराज हैं- करण थापर
कांग्रेस के दरबारी लुटियन मीडिया और पत्रकारों के ऐसे अनेकों उदाहरण सामने हैं, जिसमें झूठ बोलने के लिए इन्होंने खुद को ही प्राइमरी सोर्स बना कर पेश कर दिया, ताकि फेक न्यूज का प्रसार कर देश और मोदी सरकार को बदनाम कर सके।
इनसे निपटा कैसे जाए?
खुद को प्राइमरी सोर्स बनाकर बोले जा रहे झूठ से मुकाबला करने का कोई उपाय नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर खुद को प्राइमरी सोर्स बनाकर झूठ बोलने को नष्ट करने का केवल और केवल एक ही तरीका है कि आप इस पर सफाई पेश करने की जगह खुद को प्राइमरी सोर्स बनाइए और आक्रामक होइए। यही इसकी एक मात्र काट है।
आखिर में कम्युनिस्ट तानाशाह स्टालिन ने अपने गुरू लेनिन के विश्वासपात्रों को पार्टी के अंदर से खत्म करने के लिए कहा था कि उसकी जान को इनसे खतरा है और उनके लोगों ने ही उसे बताया है। लेनिन के लोग इसका काट नहीं ढूंढ पाए और पूरी दुनिया में ढूंढ़-ढूंढ़ कर स्टालिन ने उन्हें मरवा दिया और जनता में यह संदेश दिया कि वो लोग सोवियत संघ के खिलाफ थे, इसलिए मारे गये।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील है कि भले ही उनकी सरकार ने सोनिया गांधी की मनमोहन सरकार के मुकाबले 59 करोड़ कम में रफेल विमान खरीदे हों, लेकिन जब तक राहुल गांधी और रवीश कुमार जैसे कांग्रेसी दरबारी खुद को ही प्राइमरी सोर्स बनाकर व्यक्तिनिष्ठ झूठ बोलते रहेंगे तब तक आप सफाई ही पेश करते रह जाएंगे। यही उनका चाल, चरित्र और चेहरा है। इसे पहचानिए और चेतिए!
नोट: आज के राजनितिक सन्दर्भ में राहुल और उसके पीडी पत्रकारों के मनोविज्ञान को समझने के लिए अधोलिखित लेखों को जरूर पढें:
क्या ‘कैस्ट्रेशन कांप्लेक्स’ जैसी यौन-ग्रंथि के शिकार हैं राहुल गांधी?
Political psychology-rahul gandhis behaviour and the media-2
Keywords: Narendra Modi, No Confidence Motion, Rahul Gandhi, ravish kumar, arvind kejriwal, Psychology of lies, fraud psychology, congress media nexus, presstitutes,