न्यायपालिका की अवमनना के भय से अब चुप रहने का मतलब लोकतंत्र को कुछ लोमड़ियों के हाथ में छोड़ देने के समान है! ये ऐसी लोमड़ियां हैं, जिन्होंने ‘न्याय’ का अपहरण कर लिया है। तो आज से एक नया शंखनाद, न्यायपालिका में छिपे लोमड़ियों के खिलाफ!
व्यवस्था में घुन लगता है तो उसके खिलाफ खड़ा होना ही पड़ता है। कहीं न कही से शुरुवात तो करनी होगी भारत का संविधान भारत की जनता को न्यायपालिका के खिलाफ सवाल करने का अधिकार देती है! न्यायपालिका ने अवमानना की तलवार जनता के सर पर लटकाकर लोकतंत्र को बंधक बनाया हुआ है वरना प्रशांत भूषण जैसे वकील सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सरेआम बेइज्जत करता है और अवमानना का कोई मामला भी दर्ज नहीं होता।
तो क्या प्रशांत भूषण जैसे वकील के आगे न्यायपालिका बौनी हो गयी है जो राष्ट्रपति के बाद दूसरे गरिमा वाले पद के व्यक्ति को अपमानित करने वाले के खिलाफ कार्यवाही करने से डरती है? ऐसे कई सवाल हैं जो खड़े है और यह हमारी आपकी जवाबदेही है कि सवाल पूछे जायें…
देखिये न्यायपालिका में लगे दीमक को उजागर करने वाला वीडियो: