एबीपी न्यूज से निकाले जाने के बाद कल पुण्य प्रसून वाजपेयी ने बड़ी ही उबाउ और थकाउ फेसबुक पोस्ट डाला। इस पोस्ट का पूरा लब्बोलुआब यह था कि ‘मैं प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ क्रांतिकारी पत्रकारिता करना चाहता था, लेकिन मालिक ने करने नहीं दिया!’ इतनी लंबी पोस्ट में केवल मोदीगाथा लिखी थी! शायद कोई मोदीभक्त भी किसी एक पोस्ट में या फिर एक दिन में इतनी बार मोदी का नाम नहीं लेगा, जितनी बार प्रसून ने लिया था! फेक न्यूज का मास्टर यह प्रसून, बार-बार एक ही बात दर्शाने की कोशिश कर रहा था कि उसकी रिपोर्टिंग से एबीपी की साख बढ़ रही थी, लेकिन मालिक को मोदी का नाम लेने से दिक्कत थी!
मोदी विरोध में फेक न्यूज गढ़ने की एक घटना
पुण्य प्रसून वाजपेयी नरेंद्र मोदी विरोध में किस स्तर पर उतर कर फेक न्यूज कर सकता है, इसका गवाह तो मैं खुद ही हूं। बात उन दिनों की है, जब 2014 के आम चुनाव का प्रचार अपने पूरे जोर पर था। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का बनारस से चुनाव लड़ना तय हो चुका था। आजतक चैनल पर पुण्य प्रसून वाजपेयी ने एक शो किया, जिसमें दिखाया कि नरेंद्र मोदी को जीत दिलाने के लिए विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और संघ पूरी तरह से जमीन पर उतरा हुआ है। विहिप के महामंत्री इसके लिए बनारस में स्पेशल बैठकों का दौर कर रहे हैं। पुण्य ने दिखाया कि विहिप के महामंत्री चंपत राय गुप्त रूप से बनारस में बैठक ले रहे हैं। फिर अपने खबर की पुष्टि के लिए प्रसून ने एक फोटो दिखाया, जिसमें विहिप महामंत्री कुछ कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे थे।
जिसने भी दिल्ली के रामकृष्णपुरम स्थित विहिप कार्यालय को अंदर से देखा है, उस सबने पकड़ लिया कि वह फोटो तो विहिप कार्यालय का है, जबकि प्रसून उसे बनारस का बता रहा था! मुझे भी शक हुआ और मैंने विहिप के अंदर अपने मित्रों से बात की। दरअसल विहिप के मेरे एक साथी ने ही प्रसून को वह फोटो उपलब्ध कराई थी। उसने मुझे कहानी बतायी। उसने कहा,
“प्रसून मेरे पीछे पड़ा था कि कोई ऐसी फोटो लाकर दो जिसमें विहिप के महामंत्री चंपत राय बैठक कर रहे हों। चाहे वह फोटो कहीं की भी हो। मैंने दिल्ली के विहिप कार्यालय में चंपतजी की बैठक की फोटो उसे उपलब्ध करा दी। अगले दिन देखता हूं कि वह उसे बनारस की बैठक बताकर खबर चला रहा है कि चंपत राय ने मोदी को जिताने के लिए बनारस में गुप्त बैठक की। हम तो हैरान थे कि इतना बड़ा पत्रकार इतनी बड़ी झूठ कैसे बोल सकता है? मैंने प्रसून को फोन किया और कहा, भाई साहब आपने गलत खबर दिखाई है। यह दिल्ली की तस्वीर है और बहुत पुरानी है। इसका चुनाव से कुछ लेना-देना नहीं है। प्रसून ने कहा, चंपतजी नहीं, विहिप की ओर से कोई न कोई मोदी को जिताने के लिए बनारस में बैठक तो ले ही रहा होगा न? इस फोटो को प्रतिकात्मक मान लो! मैं हक्का-बक्का रह गया!”
बाद में शायद विहिप ने इसका खंडन भी आजतक को भेजा, लेकिन फेकन्यूज वाले कहां खंडन छापते या दिखाते हैं, सो नहीं दिखाया। लेकिन नरेंद्र मोदी विरोध में पुण्य प्रसून ने किस तरह से विहिप की दिल्ली की बैठक को बनारस की बैठक बताकर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की और गलत धारणा बनाना चाहा, यह आजतक से लेकर विहिप के अंदर तक हर कोई जानता है। इसलिए जब वह अपने पोस्ट में बार-बार ‘साख का सवाल, साख का सवाल’ लिख रहा है तो लगता है कि कहीं न कहीं लगातार फेक न्यूज से उसकी जो साख गिरी है, उसकी कुंठा में वह बस उसे रट रहा है।
कालेधन के कारोबारी चैनल में काम करने वाला, बार-बार कारपोरेट को गाली देकर आखिर क्या साबित करना चाहता है?
पुण्य प्रसून अपने उस पोस्ट में एक और बात बताने की कोशिश कर रहा है। वह एबीपी चैनल के मालिक सह प्रधान संपादक को प्रोपराइटर कम एडिटर-इन-चीफ लिखकर, यह जताने की कोशिश कर रहा है कि मालिक खुद एडिटर-इन-चीफ बना हुआ है, इसलिए उसकी खबर के प्रति समझ नहीं है। वह यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि मालिक के पास रीढ़ नहीं है, इसलिए उसके शो ‘मास्टरस्ट्रोक’ की तारीफ करने के बावजूद वह बार-बार पीएम मोदी का नाम उस शो में न उठाने के लिए उस पर दबाव बना रहा था।
बेशर्मी देखिए! पुण्य को जब आजतक से भगाया गया और वह एबीपी चैनल में गया तो वह पहले से जानता था कि एबीपी में उसका मालिक ही चैनल का प्रधान संपादक है, फिर यह गया क्यों? जब उसे मालिकों से इतनी ही चिढ़ है तो न तो उसे अरुणपुरी के चैनल मे काम करना चाहिए था और न सहाराश्री के चैनल में! इसे खुद का न्यूज चैनल या अखबार शुरु कर लेना चाहिए ताकि वहां यह खुद ही मालिक और खुद ही प्रधान संपादक बनकर मनभर मोदी को गरियाए! लेकिन महोदय, तुम्हारी बिरादरी के रजत शर्मा हों, अरुणपुरी हों या प्रणय राय, वह भी तो खुद ही मालिक और खुद ही संपादक हैं, फिर तुम ABP News के विरोध में नौटंकी क्यों कर रहे हो?
अब मालिकों की अपनी मजबूरी होती है, यह कोई प्रसून जैसा घाघ नहीं जानता होगा, यह कैसे संभव है? यदि ऐसा न होता तो बाबा रामदेव को काला कारोबारी कहने पर अरुणपुरी के आजतक से वह निकाला नहीं जाता? लेकिन वह तो उंगली कटाकर शहीद होने का नाटक कर रहा है, सो बार-बार मालिक को डरा हुआ बता कर खुद को ‘क्रांतिकारी’ साबित करने की कोशिश में जुटा है! अरे पाखंडी! कारपोरेट मालिकों से इतनी ही नफरत है तो फिर हवाला करोबारी सुब्रत राय के चैनल में क्या तुम रामचरित मानस का पाठ करने गये थे?
ताज्जुब देखिए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जेल भेजे जा चुके सुब्रत राय सहारा के चैनल में वह काम कर चुका है, जबकि हर कोई जानता था कि सहाराश्री का साम्राज्य किन-किन कुकर्म के आधार पर खड़ा हुआ है! बाद में तो यह सुप्रीम कोर्ट से भी साबित हो गया! सहारा के काले कारोबार से उस समय उसने एक करोड़ रुपये सलाना की सैलरी ली, और बेशर्मी देखिए, बार-बार कारपोरेट को गाली देता रहता है। यही लुटियन जर्नलिस्टों का असली पाखंड है! कारपोरेट से पैसा और गरीबों के नाम पर उसे गाली, कारपोरेट से रात के अंधेरे में मिलना और दिन के उजाले में उसे कोसना! हिंदी पत्रकारिता में इस दोगलेपन का वर्तमान में सबसे बड़ा उदाहरण पुण्य प्रसून वाजपेयी ही है!
अभी ABP से नौकरी छूटने पर भी लाखों-करोड़ों की वोल्वो एसयूवी में चलता है, जिसे छूने की हैसियत उसके साथ काम करने वाले कई पत्रकार नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी वह कारपोरेट को गाली देकर गरीबी-किसानी से सहानुभूति का नाटक रचता रहता है! ऐसे दोगलों के कारण ही पूरी पत्रकारिता बदनाम हो चुकी है। खुद तो करोड़ रुपये सलाना की सैलरी चाहिए, उसी कारपोरेट से जिसे गाली देता रहता है और जब साथ के हजार रुपये सैलरी वाले पत्रकारों को सड़क पर निकाल दिया जाता है तो यह चुप रहता है! यह है इसकी दोगली पत्रकारिता!
तुम्हारी दो कौड़ी की क्रांतिकारी पत्रकारिता को लाइव सारा देश देख चुका है!
याद है आपको! अरविंद केजरीवाल के साथ प्रसून के न्यूज-सेटिंग का तमाशा पूरी दुनिया ने देखा है। इसके बावजूद यह कहता है कि उसकी पत्रकारिता निष्पक्ष है! असल में उसकी निष्पक्षता का मतलब बात-बे-बात नरेंद्र मोदी को गाली देना है। इससे अधिक उसकी कोई निष्पक्षता नहीं है। 2004 से 2014 के बीच 50 लाख करोड़ से अधिक का घोटाला हुआ, लेकिन इस तथाकथित निष्पक्ष पत्रकार ने एक भी रिपोर्ट यूपीए सरकार के खिलाफ नहीं चलाई। उल्टा, आजतक पर तीस्ता सीतलवाड़ के एजेंडे को यह चलाता था और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को गाली देता था! वास्तव में यह ‘पेटिकोट पत्रकार’ ‘पेटिकोट सरकार’ की उपज है!
पुण्य प्रसून शुक्र मनाओ कि पत्रकारिता में दोगलों की भरमार है, जहां तुमसे कोई सवाल पूछने वाला नहीं है। यही तो वजह है कि यहां तुम कारपोरेट से एक करोड़ की सैलरी डकार कर भी कारपोरेट को गरिया सकते हो, यहां तुम विदेशी गाड़ी में चढ़ कर एक स्वदेशी बाबा को काला कारोबारी कह सकते हो, यहां तुम सत्ता के पक्ष में 10 साल चुप रहकर भी निष्पक्ष पत्रकार बनने का स्वांग रचा सकते हो, यहां तुम कैमरे के सामने एक नेता के साथ न्यूज फिक्सिंग करके भी बेशर्मी से क्रांतिकारी पत्रकारिता का बाजा बजा सकते हो, यहां तुम एक व्यक्ति को लगातार 15 से अधिक वर्षों से गाली देकर भी हाथ मलते हुए ‘साख का सवाल-साख का सवाल’ रट सकते हो! तुम और तुम्हारी बिरादरी के लुटियन एलिट पत्रकार पूरी तरह से दोगले हैं, लेकिन याद रखना दोगलों को सोशल मीडिया ने नंगा करना शुरु कर दिया है!
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